(गत ब्लॉगसे आगेका)
बीमारी आ गयी तो बहुत ठीक है,
बीमारी चली गयी तो बहुत ठीक है । किसीने अपमान कर दिया तो बहुत
ठीक है, किसीने सम्मान कर दिया तो बहुत ठीक है । कोई मान करे,
कोई अपमान करे । कोई भोजन दे,
कोई भोजन न दे । कोई सुनना चाहे,
कोई सुनना न चाहे । कोई मिलना चाहे,
कोई मिलना न चाहे । अपना उससे क्या मतलब ?
अपनी कोई जरूरत नहीं । कोई परवाह नहीं । हमारा न जीनेसे मतलब है, न मरनेसे
मतलब है । न किसीके आनेसे मललब है, न किसीके जानेसे मतलब है । न मिलनेसे मतलब है, न नहीं
मिलनेसे मतलब है । न करनेसे मतलब है,
न नहीं करनेसे मतलब है ।
नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन ।
न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रय ॥
(गीता ३ । १८)
‘उस महापुरुषका इस संसारमें न तो कर्म करनेसे
कोई प्रयोजन रहता है और न कर्म न करनेसे ही कोई प्रयोजन रहता है तथा सम्पूर्ण प्राणियोंमें
किसी भी प्राणीके साथ इसका किंचिन्मात्र भी स्वार्थका सम्बन्ध नहीं रहता ।’
सब काम भगवान्के लिये ही करना है । अपने लिये कुछ
करना है ही नहीं । न कहीं जाना है, न आना है, न रहना
है । फिर सब झंझट मिट जायगी । निरन्तर आनन्द रहेगा, मौज
रहेगी । हमारी कोई जरूरत नहीं, न भोजनकी जरूरत, न व्याख्यानकी
जरूरत, न मिलनेकी जरूरत । कोई खिलाना चाहे तो खायेंगे, सुनना
चाहे तो सुनायेंगे, मिलना चाहे तो मिलेंगे । इतनेसे ही जन्म सफल हो जायगा
! कोई शास्त्रीय अनुष्ठान करनेकी
जरूरत नहीं । कहीं जाना नहीं, कहीं आना नहीं । कहीं देना नहीं,
कहीं लेना नहीं । अमुक जगह जाना है,
उनसे मिलना है‒यह है ही नहीं । हमारी कोई मरजी है ही नहीं ।
इससे मुक्ति नहीं होगी तो और क्या होगा ?
भगवान्ने कृपा करके मानव-जन्म दिया है । उस मानवजन्मको सफल
कर लेना मनुष्यका कर्तव्य है । वह मानवजन्म इस बातसे सफल
हो जायगा कि मेरा कुछ नहीं है,
मेरेको कुछ नहीं चाहिये और मेरेको अपने लिये कुछ
नहीं करना है । कोई ठीक करे या
बेठीक करे, मरजी आये सो करे, हमें किसीसे कुछ नहीं कहना है । कभी मनमें आ जाय तो कह दे कि
भाई, ऐसा मत करो । वह कहे कि ‘जा-जा, तेरी बात नहीं मानता’
तो बहुत ठीक है, मौज हो गयी । इसमें क्या कठिनता है ?
सदा दीवाली सन्तके आठों पहर आनन्द ।
आठों पहर आनन्द-ही-आनन्द,
मौज-ही-मौज है । कोई पूछे कि आपको कहीं जाना है तो कहे कि ना,
हमारेको न जाना है,
न आना है । कोई कहे ‘बैठ जाओ’
तो बैठ जाय, ‘सो जाओ’ तो सो जाय, ‘चलो’ तो चलो, ‘नहीं चलो’ तो नहीं चलो । कितनी सुगम बात है ! ‘जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ।’
यह सबको सुख देनेवाली,
आनन्द देनेवाली बात है । कोई भोजन कराना चाहे तो अच्छी बात,
नहीं कराना चाहे तो अच्छी बात । कोई सुनना चाहे तो अच्छी बात,
नहीं सुनना चाहे तो अच्छी बात । कोई मिलना चाहे तो अच्छी बात,
नहीं मिलना चाहे तो अच्छी बात । अपने मस्तीसे भजन करो,
कीर्तन करो, नामजप करो । इसीसे मनुष्यजन्म सफल हो जायगा ।
नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
‒‘सत्यकी खोज’ पुस्तकसे
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