(गत ब्लॉगसे आगेका)
नशा-सेवन
दूसरा महापाप है‒मदिरा पीना । ऋषिकेशमें
एक सन्तसे बात हुई तो उन्होंने कहा कि अपने-आप मरी हुई गायका मांस खानेसे हिन्दूको
जो पाप लगता है, उससे भी ज्यादा पाप मदिरा पीनेसे लगता है । इसलिये भाइयो ! मदिराका त्याग करो । मदिरा पीनेमें महान् नुकसान
है । शरीरका नुकसान है । पैसोंका नुकसान है । तीस-चालीस रुपये रोजाना मजदूरीमें लेते
हैं, पर घरमें तंगी रहती है । मदिरामें रुपये खो देते हैं । मदिराके कारण बड़े-बड़े राज्य
चले गये । मदिरा पीनेमें बड़ी भारी हानि है । मदिरा पीकर पुरुष आपसमें लड़ते हैं,
गालियाँ निकालते हैं,
स्त्रियोंको मारते हैं;
बच्चोंको मारते हैं ! घरमें भी कलह करते हैं,
बाहर भी कलह करते हैं । ऐसा खराब व्यसन मत करो ।
अन्न और जल‒इन दोनोंके सिवाय और किसी चीजका व्यसन
नहीं होना चाहिये । अन्न और जलके
बिना काम नहीं चलता । जीनेके लिये इन्हें लेना ही पड़ता है । परन्तु चाय,
काफी, बीड़ी, सिगरेट, जर्दा, तम्बाकू, अफीम, चिलम आदि न लें तो मनुष्य मरता थोड़े ही है ?
नशा काढ़ लीवी नसां, नशा किया
सब नाश ।
नशा नाकिया नरक में, अड़ी नशा में आश ॥
नशा-सेवन करके अपनी आदत खराब कर रहे हो,
समय खराब कर रहे हो,
पैसा खराब कर रहे हो,
शरीर खराब कर रहे हो । नशा-सेवनसे कई बीमारियाँ लग जाती हैं
। जो चाय पीते हैं, मदिरा
पीते हैं, उनकी भीतरी आतें जल जाती हैं, जिससे
उनको कोई दवाई नहीं लगती । एक बार नशेसे थोड़ा भभका-सा आता है, पर वह शक्ति स्थायी नहीं होती । जोधपुरमें मेरा काम पड़ा तो नहीं
कहनेलायक बात मैंने कह दी ! मैंने कहा कि जो ज्यादा-से-ज्यादा नशा करनेवाला हो,
वह चाहे तो मेरे साथ कुश्तीके लिये आ जाय ! जैसे मैं बोलता हूँ,
वैसे वह बोले; जितना मैं चलता हूँ,
उतना वह चले । किसी काममें मेरे साथ बराबरी करके दिखाये ! परन्तु
उन बेचारोंके पास बल कहाँ है ? खर्चा लगा-लगाकर कमजोरी खरीदते हैं ! दाम दे-देकर परतन्त्रता
खरीदते हैं ! जगत्में पराधीन होनेके समान कोई दुःख नहीं है‒‘पराधीन सपनेहुँ सुखु नाहीं’ (मानस १
। १०२ । ३) । परन्तु आप मदिराके
वशमें हो गये, चिलमके वशमें हो गये,
हुक्काके वशमें हो गये,
बीड़ी-सिगरेटके वशमें हो गये ! इनके बिना रहा नहीं जाता । मालवेकी
भाषामें कहा है‒
हुक्को हिड़क्यो टेकड़ो, चिलम बणी
है चंगी ।
पीवणवाला ऐसे लपके, ज्यूँ
बाज पर भंगी ॥
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे
|