(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒भगवान्के
प्रेमके अलावा भी उनकी प्राप्तिका कोई उपाय है क्या ?
स्वामीजी‒हाँ, कर्मयोग और ज्ञानयोग उपाय है । भगवान्में प्रेम होना भक्तियोग
है ।
श्रोता‒संसारके
सम्बन्धका जो प्रभाव है, वही
मन है और परमात्माके सम्बन्धका जो प्रभाव है, वही
साधन है‒इसे समझना चाहते हैं ।
स्वामीजी‒मन कोई तत्त्व नहीं है । प्रभाव पड़नेसे ही मन अच्छा या मन्दा होता है । प्रभाव
पड़े बिना मन क्या करे ? मन न भजन करता है, न संसारका काम करता है । इसपर प्रभाव पड़ता है,
तभी काम करता है । इसपर संसारका प्रभाव पड़ता है तो यह संसारकी
तरफ जाता है, भगवान्का प्रभाव पड़ता है तो भगवान्की तरफ जाता है ।
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श्रोता‒यहाँ
प्रतिदिन बड़ी संख्यामें गोहत्या हो रही है ! आपसे प्रार्थना है कि गोरक्षाके लिये प्रेरणा
करें ।
स्वामीजी‒वास्तवमें किसी भी जीवको कष्ट देना शास्त्र-निषिद्ध है । आपको कोई मारे तो आपको
अच्छा लगता है क्या ? अच्छा नहीं लगता तो किसीको भी मत मारो । आपको जो बुरा लगे, वह दूसरोंके
प्रति मत करो‒यह धर्मका सार है । किसी भी जीवका नाश मत करो । किसीकी भी हिंसा करना पाप है,
अन्याय है । जैसे आपको प्राण प्यारे हैं,
ऐसे सबको प्राण प्यारे हैं । जीवोंकी हत्या करनेसे अन्तमें दुःख
पाना पड़ेगा । यहाँ बच जाओ तो यमराजके यहाँ दुःख पाना पड़ेगा ।
सब पशुओंमें गायके द्वारा दूसरोंका बहुत ज्यादा हित होता है,
इसलिये उसकी हत्याका बहुत ज्यादा पाप है । गायकी तो हवा लगनेसे
मनुष्य पवित्र हो जाता है ! जो बड़े-बड़े रोगी हैं,
वे रोजाना जाकर सुबह और शाम दोनों समय गायको सहलायें,
प्यार करें, पैर दबायें तो उनका रोग मिट जायगा,
आप करके देख लो ! गायकी रक्षा करनेसे बहुत लाभ होता है । मनुष्य
गायकी रक्षा करे तो वह भी मनुष्यकी रक्षा करती है । ऐसी अनेक घटनाएँ हुई हैं । इसलिये
गायकों मारना बहुत बड़ा पाप है । हिंसाका परिणाम बहुत खराब होता है । आप गायोंको बचानेका उद्योग करो, नहीं
तो देशकी बड़ी दुर्दशा होगी ! बड़ा भारी उपद्रव होगा ! आप गायोंकी रक्षा करो तो आपका
देश सुरक्षित होगा ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे |