।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
 मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.-२०७४,रविवार
             भगवत्प्राप्ति सुगम कैसे ?



भगवत्प्राप्ति सुगम कैसे ?

(गत ब्लॉगसे आगेका)


(३)

जो चीज जितनी श्रेष्ठ और आवश्यक होती है, उतनी ही वह सस्ती मिलती है । हीरा-पन्ना हमें उम्रभर देखनेको न मिलें तो भी हम जी सकते हैं, इसलिये वे बहुत महँगे मिलते हैं । अन्न उससे भी सस्ता मिलता है; क्योंकि अन्नके बिना हम जी नहीं सकते । अन्नसे भी जल ज्यादा आवश्यक है, इसलिये वह अन्नसे भी सस्ता मिलता है । जलके बिना तो हम कुछ रह सकते हैं, पर हवाके बिना तो रह ही नहीं सकते, इसलिये हवा मुफ्तमें मिलती है तथा सब जगह मिलती है । परन्तु परमात्मा उससे भी सस्ते हैं ! हवा कहीं कम मिलती है, कहीं ज्यादा; कभी तेज चलती है, कभी मन्द; परन्तु परमात्मा सब जगह तथा सब समय समान रीतिसे ज्यों-के-त्यों परिपूर्ण हैं, और वे सबके अपने हैं । उनके बिना कोई भी चीज नहीं है । पृथ्वी, जल, हवा, अग्नि और आकाश तो सदा नहीं रहेंगे, पर परमात्मा सदा ज्यों-के-त्यों रहेंगे । अतः परमात्मा सबसे आवश्यक हैं और सबसे सस्ते हैं । आपने सांसारिक चीजोंको ज्यादा महत्व दे रखा है, इसलिये परमात्मा दीखते नहीं । इनको इतना महत्त्व मत दो, परमात्मा दीख जायँगे, उनकी प्राप्ति हो जायगी ।

(४)

निर्माण और खोज‒दोनोंमें बहुत अन्तर है । निर्माण उस वस्तुका होता है, जिसका पहलेसे अभाव होता है और खोज उस वस्तुकी होती है, जो पहलेसे ही विद्यमान होती है । परमात्मा नित्यप्राप्त और स्वतःसिद्ध हैं, इसलिये उनकी खोज होती है, निर्माण नहीं होता । जब साधक परमात्माकी सत्ताको स्वीकार करता है, तब खोज होती है । खोज करनेके दो प्रकार हैं‒एक तो कण्ठी कहीं रखकर भूल जायँ तो हम जगह-जगह उसकी खोज करते हैं; और दूसरा, कण्ठी गलेमें ही हो, पर वहम हो जाय कि कण्ठी खो गयी तो हम जगह-जगह उसकी खोज करते हैं । परमात्माकी खोज गलेमें पड़ी कण्ठीकी खोजके समान है । वास्तवमें परमात्मा खोया नहीं है । संसारमें अपने रागके कारण परमात्माकी तरफ दृष्टि नहीं जाती । उधर दृष्टि न जाना ही उसका खोना है । तात्पर्य है कि जिस परमात्माको हम चाहते हैं और जिसकी हम खोज करते हैं, वह परमात्मा नित्य-निरन्तर अपनेमें ही मौजूद है ! परन्तु संसार अपनेमें नहीं है । जो अपनेमें है, उसकी खोज करनेसे परिणाममें वह मिल जाता है । परन्तु जो अपनेमें नहीं है, उसकी खोज करनेसे परिणाममें वह मिलता नहीं; क्योंकि वास्तवमें उसकी सत्ता ही नहीं है ।


    (शेष आगेके ब्लॉगमें)                 
‒ ‘लक्ष्य अब दूर नहीं’ पुस्तकसे