।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
       पौष कृष्ण सप्तमी, वि.सं.-२०७४, रविवार
   भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय


भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय

(गत ब्लॉगसे आगेका)

४. भगवन्नामका जप करना

कुटुम्बका सम्बन्ध तो नदी-नाव-संयोग’ की तरह है । नदीके इस पार सब एक साथ नौकापर बैठ जाते हैं और उस पार पहुँचते ही उतर जाते हैं । जबतक नदीसे पार नहीं होते, तभीतक हमारा सम्बन्ध रहता है । ऐसे ही कुटुम्बका सम्बन्ध है, जो आगे रहेगा नहीं, छूट जायगा । यह सच्ची बात है । अगर आप इस बातको मान लें कि मैं शरीर-संसारका नहीं हूँ और शरीर-संसार मेरे नहीं हैं, मैं परमात्माका हूँ और परमात्मा मेरे हैं, मैं अपने परमात्माका नाम लेता हूँ’ तो भगवान्‌की ताकत नहीं कि वे आपकी तरफ कृपा-दृष्टिसे न देखें !

भगवान्‌के होकर भगवान्‌के नामका जप करो‒होहि राम को नाम जपु’ । बच्चा माँके साथ जितना अधिक घनिष्ठ सम्बन्ध रखता है, माँ उतनी ही जल्दी उसके पास आती है । बालक जोरसे रो पड़ता है तो माँ अपनी बड़ी लड़कीको भेजती है कि बेटी ! जा, भाईको समझा, राजी कर । वह आकर भाईके हाथमें झुनझुनियाँ देती है, पर वह उसे फेंक देता है । वह लड्‌डू देती है तो उसे भी फेंक देता है । बहन उसको गोदीमें लेती है तो वह लात मारता है और माँ-माँ करता है । तब माँको उसके पास आना ही पड़ता है । अगर वह झुनझुनियाँसे राजी हो जाय अथवा बहनकी गोदमें चला जाय तो फिर माँ उसके पास नहीं आती । बहनकी गोदमें माँका दूध थोड़े ही है, वह प्यार थोड़े ही है ! इस तरह नाम-जप करनेवालेका लोगोंमें आदर होता है कि वाह सा ! ये तो भगतजी हैं, भजन करनेवाले हैं ! बस, अब झुनझुना बजाओ बैठे ! लोग आदर-सम्मान करने लगते हैं, दण्डवत् प्रणाम करते हैं, पूजन करते हैं, प्रशंसा करते हैं कि ये बड़े भारी महात्मा हैं । यह मायारूपी बहन आती है और गोदमें ले लेती है । उसमें राजी हो जाते हो तो फिर भगवान् नहीं आते । नामकी बिक्री करके उसके बदले आदर लेते हो, भेंट-नमस्कार लेते हो, सुख लेते हो तो बताओ, नामका संग्रह कैसे हो ?

(२)

भगवान् हैं’इतना आप मान लो, भले ही उनका अनुभव अभी न हो । सन्त-महात्मा कहते हैं, वेद-पुराण कहते हैं, बड़े-बड़े जानकार कहते हैं कि वह है’ । बस वह है’ऐसा मानते हुए लगनपूर्वक राम-राम जप करो तो बहुत जल्दी अनुभव हो जायगा । उसका अनुभव कैसे हो ? क्या करूँ ? कैसे करूँ ? किससे पूछूँ यह जिज्ञासा जोरदार हो जाय । राम-नामको छोड़ो मत; क्योंकि इसके सिवाय संसारमें और कोई सहारा नहीं है । मरनेपर भी कहते हैं‒‘राम-नाम सत्य है’ । शरीर-संसार असत्य है । अतः रामराम करते रहो । र’ में, ‘आ’ में, ‘म’ में, जीभमें, मनमें, स्कुरणामें, चिन्तनमें, बुद्धिमें, मैपनमें‒सब जगह वह परमात्मा परिपूर्ण है । जो सबमें रमण करता है और जिसमें सभी रहते हैं, उसका नाम राम’ है ।

आप यह बात चाहे श्रद्धासे मान लो, चाहे विश्वाससे मान लो, चाहे युक्तिसे मान लो, चाहे अनुभवसे मान लो, चाहे सोच-समझकर मान लो कि परमात्मा सब जगह हैं । जहाँ आप हो, वहीं परमात्मा हैं । आपकी एकता परमात्माके साथ है, बदलनेवाले शरीरके साथ नहीं । शास्त्र भी डंकेकी चोटसे कहता है कि परमात्मा सब जगह हैं, सबमें हैं, सबके अपने हैं, सबके सुहृद् हैं । आप इसको दृढ़तासे मान लो । साधकसे बड़ी भूल यही होती है कि वह भजन करेंगे, फिर परमात्मा मिलेंगे’ऐसा मान लेता है । यह भविष्यकी आशा ही महान् बाधक है । शास्त्रोंसे, सन्तोंके कहनेसे, किसीके कहनेसे यह मान लो कि परमात्मा तो मिले हुए ही हैं, केवल हमें दीखते नहीं । वर्तमानमें परमात्माका अभाव स्वीकार मत करो । अपनेको उनका अनुभव नहीं हो रहा है; अतः अनुभव कैसे हो‒इसके लिये रात-दिन राम-राम रटना शुरू कर दो । फिर देखो तमाशा ! कितनी जल्दी अनुभव होता है !

जो जिव चाहे मुक्ति को, तो सुमिरीजै राम ।
हरिया   गैले  चालतां,   जैसे   आवै  गाम ॥


  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे