भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय
(गत ब्लॉगसे आगेका)
४. भगवन्नामका जप करना
(१)
पारमार्थिक साधनोंमें ‘क्रिया’ की प्रधानता नहीं है,
प्रत्युत ‘भाव’ और ‘ज्ञान’ की प्रधानता है । क्रियाकी प्रधानता तो सांसारिक कार्योंमें
है । भगवन्नामका जप क्रिया होते हुए भी भावको,
ज्ञानको जाग्रत् करनेका विलक्षण साधन है । नाम-जपमें ‘भाव’
की प्रधानता है । भावकी कमी रहनेसे नाम-जप करते हुए भी विशेष लाभ नहीं होता ।
भावके विषयमें बहुत-सी बातें हैं । पहली बात यह है कि भगवान्के
साथ अपनापन हो । अपनापन रखकर नाम-जप किया जाय तो उसका भगवान्पर असर पड़ता है
। एक बालक माँ-माँ पुकारता है । यहाँ बैठी जिन बहनोंके बालक हैं,
उन सभीका नाम माँ है,
पर उस बालककी पुकार सुनकर वे सब नहीं दौड़ती । जिसको वह माँ कहता
है, वही उठकर दौड़ती है और उसको प्यारसे दुलारकर हृदयसे लगाती है । तात्पर्य है कि माँका
होकर माँको पुकारा जाय तो उसका माँपर असर पड़ता है । खेलते समय भी बालक माँ-माँ कहता
है । माँ देख लेती है कि वह खेलमें लगा हुआ है;
अतः माँ-माँ कहनेपर भी माँपर इतना असर नहीं पड़ता ।
नाम-जपकी खास विधि है‒भगवान्का होकर भगवान्का नाम
लें । केवल भगवान् ही हमारे हैं और
हम भगवान्के ही हैं; संसार हमारा नहीं है और हम संसारके नहीं हैं‒यह अगर पक्का विचार
हो जाय तो तत्काल लाभ होता है । गोस्वामीजी महाराजने कहा है‒
बिगरी जनम अनेक की
सुधरे अबहीं आजु ।
होहि राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु ॥
(दोहावली २२)
अनेक जन्मोंकी बिगड़ी हुई बात आज सुधर जाय और आज भी अभी-अभी,
इसी क्षण सुधर जाय । कैसे सुधर जाय
? तो कहते हैं कि तू रामजीका
होकर रामजीको पुकार । परन्तु हमारेसे भूल यह होती है कि हम संसारके होकर भगवान्को
पुकारते हैं । संसारके काम-धन्धोंके कारण वक्त नहीं मिलता, हम
तो संसारी आदमी हैं, कलियुगी जीव हैं‒इस प्रकार अपने-आपको संसारी और कलियुगी
मानोगे तो आपपर संसारका और कलियुगका प्रभाव ज्यादा पड़ेगा; क्योंकि
उनके साथ आपने सम्बन्ध जोड़ लिया । बिजलीके तारसे सम्बन्ध जुड़ जाता है तो करेण्ट आ जाता है,
ऐसे ही संसार और कलियुगसे सम्बन्ध जोड़ेंगे तो उनका असर जरूर
आयेगा । कहते हैं, महाराज ! हम तो खाली राम-राम करते हैं,
तो ठोस भरा हुआ क्यों नहीं करते भाई
? मानो भगवान्के नाममें तो खालीपना
है और सम्बन्ध हमारा संसार और कलियुगसे है ! यह बहुत बड़ी गलती है ।
वास्तवमें भगवान् ही हमारे हैं । जब हमने संसारमें जन्म नहीं
लिया था, तब भी वे हमारे थे और जब मर जायँगे,
तब भी वे हमारे रहेंगे । यह संसार पहले भी हमारा नहीं था,
आगे भी हमारा नहीं रहेगा और अभी भी प्रतिक्षण हमारेसे अलग हो
रहा है । उम्र भी बीतती चली जा रही है, शरीर भी बीतता चला जा रहा है और कलियुगका समय
भी बीतता चला जा रहा है । संसारका सम्बन्ध आपके साथ है ही
नहीं । इस बातको आप खयालमें रखें ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे
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