।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
       पौष कृष्ण षष्ठी, वि.सं.-२०७४, शनिवार
   भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय



भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय

(गत ब्लॉगसे आगेका)

४. भगवन्नामका जप करना

(१)

पारमार्थिक साधनोंमें ‘क्रिया’ की प्रधानता नहीं है, प्रत्युत भाव’ और ज्ञान’ की प्रधानता है । क्रियाकी प्रधानता तो सांसारिक कार्योंमें है । भगवन्नामका जप क्रिया होते हुए भी भावको, ज्ञानको जाग्रत् करनेका विलक्षण साधन है । नाम-जपमें भाव’ की प्रधानता है । भावकी कमी रहनेसे नाम-जप करते हुए भी विशेष लाभ नहीं होता । भावके विषयमें बहुत-सी बातें हैं । पहली बात यह है कि भगवान्‌के साथ अपनापन हो । अपनापन रखकर नाम-जप किया जाय तो उसका भगवान्‌पर असर पड़ता है । एक बालक माँ-माँ पुकारता है । यहाँ बैठी जिन बहनोंके बालक हैं, उन सभीका नाम माँ है, पर उस बालककी पुकार सुनकर वे सब नहीं दौड़ती । जिसको वह माँ कहता है, वही उठकर दौड़ती है और उसको प्यारसे दुलारकर हृदयसे लगाती है । तात्पर्य है कि माँका होकर माँको पुकारा जाय तो उसका माँपर असर पड़ता है । खेलते समय भी बालक माँ-माँ कहता है । माँ देख लेती है कि वह खेलमें लगा हुआ है; अतः माँ-माँ कहनेपर भी माँपर इतना असर नहीं पड़ता ।

नाम-जपकी खास विधि है‒भगवान्‌का होकर भगवान्‌का नाम लें । केवल भगवान् ही हमारे हैं और हम भगवान्‌के ही हैं; संसार हमारा नहीं है और हम संसारके नहीं हैं‒यह अगर पक्का विचार हो जाय तो तत्काल लाभ होता है । गोस्वामीजी महाराजने कहा है‒

बिगरी  जनम  अनेक  की  सुधरे  अबहीं  आजु ।
होहि राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु ॥
                                                  (दोहावली २२)

अनेक जन्मोंकी बिगड़ी हुई बात आज सुधर जाय और आज भी अभी-अभी, इसी क्षण सुधर जाय । कैसे सुधर जाय ? तो कहते हैं कि तू रामजीका होकर रामजीको पुकार । परन्तु हमारेसे भूल यह होती है कि हम संसारके होकर भगवान्‌को पुकारते हैं । संसारके काम-धन्धोंके कारण वक्त नहीं मिलता, हम तो संसारी आदमी हैं, कलियुगी जीव हैं‒इस प्रकार अपने-आपको संसारी और कलियुगी मानोगे तो आपपर संसारका और कलियुगका प्रभाव ज्यादा पड़ेगा; क्योंकि उनके साथ आपने सम्बन्ध जोड़ लिया । बिजलीके तारसे सम्बन्ध जुड़ जाता है तो करेण्ट आ जाता है, ऐसे ही संसार और कलियुगसे सम्बन्ध जोड़ेंगे तो उनका असर जरूर आयेगा । कहते हैं, महाराज ! हम तो खाली राम-राम करते हैं, तो ठोस भरा हुआ क्यों नहीं करते भाई ? मानो भगवान्‌के नाममें तो खालीपना है और सम्बन्ध हमारा संसार और कलियुगसे है ! यह बहुत बड़ी गलती है ।

वास्तवमें भगवान् ही हमारे हैं । जब हमने संसारमें जन्म नहीं लिया था, तब भी वे हमारे थे और जब मर जायँगे, तब भी वे हमारे रहेंगे । यह संसार पहले भी हमारा नहीं था, आगे भी हमारा नहीं रहेगा और अभी भी प्रतिक्षण हमारेसे अलग हो रहा है । उम्र भी बीतती चली जा रही है, शरीर भी बीतता चला जा रहा है और कलियुगका समय भी बीतता चला जा रहा है । संसारका सम्बन्ध आपके साथ है ही नहीं । इस बातको आप खयालमें रखें ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे