।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
      पौष कृष्ण द्वादशी, वि.सं.-२०७४, गुरुवार
                सफला एकादशी-व्रत (वैष्णव)
   भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय


भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय

(गत ब्लॉगसे आगेका)

६. भगवान्‌की कृपाका आश्रय लेना

(२)

भगवान्‌की प्राप्ति हमारे बलसे नहीं होगी, प्रत्युत भगवान्‌के बलसे, उनकी कृपासे होगी । उनकी कृपासे ही सब काम हुआ है, हो रहा है और होगा । हम अपने जीवनपर दृष्टि डालें कि हमें यह मानवशरीर कैसे मिला ? क्या हमने जानकर यहाँ जन्म लिया था ? बचपनसे लेकर आजतक हमारा पालन-पोषण कैसे हुआ ? गीता, रामायण आदिसे परिचय कैसे हुआ ? सत्संग कैसे मिला ? अच्छी पुस्तकें कैसे मिलीं ? अच्छा संग कैसे मिला ? उसके लिये क्या हमने कोई पुरुषार्थ किया था ? कोई उद्योग किया था ? कुछ बल लगाया था ? कुछ रुपये खर्च किये थे ? कुछ परिश्रम किया था ? सब भगवान्‌की कृपासे ही हुआ है । जब उनकी इतनी कृपा मिली है, तो फिर अब चिन्ता क्यों करें ? कोई आदमी किसी ब्राह्मणको भोजनका निमन्त्रण देकर घरपर बुलाये । उसको आसनपर बैठा दे । पत्तल सामने रख दे । जल भी रख दे । अब वह भोजन देगा कि नहीं‒इसकी चिन्ता करनेकी क्या जरूरत ? अगर उसका भोजन देनेका मन नहीं होता तो वह निमन्त्रण क्यों देता ? पत्तल सामने क्यों रखता ? ऐसे ही भगवान्‌ने अपनी कृपासे हमें मनुष्यशरीर दिया है, गीता, रामायण‒जैसे ग्रन्थोंसे परिचय कराया है, सत्संगकी बातोंसे परिचय कराया है । हमने उनसे कब कहा था कि आप ऐसा करो ? अतः जिसने इतना दिया है, वह आगे भी देगा । नहीं देगा तो लाज किसकी जायगी ? द्रौपदी भगवान्‌से कहती है‒जायगी लाज तिहारी नाथ मेरो कहा बिगड़ैगो ? इसलिये हम चिन्ता क्यों करें ? विश्वास न हो तो भगवान्‌से कहो कि हे नाथ ! आप मेरेको विश्वास दो, प्रेम दो; नहीं दोगे तो और कौन देगा ? जैसे माँका दूध माँके लिये नहीं है, प्रत्युत बच्चेके लिये ही है, ऐसे ही भगवान्‌की शक्ति हमारे लिये ही है । हमारा काम तो बस यही है कि हम उनकी शरण हो जायँ ।

(३)

परमात्माकी प्राप्ति ऐसे है, जैसे बालक अपनी माँकी गोदीमें जाय ! क्या बालक माँकी गोदीमें अपनी योग्यता, शक्ति, बुद्धिमानीके बलपर जाता है ? इसमें केवल माँकी कृपा है । इसी तरह आप यह न मानें कि हम दूजे हैं, भगवान् दूजे हैं । भगवान् हमारी माँ हैं‒‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव भगवान्‌के पास जाना अपनी माँके पास जाना है । माँकी गोदीमें जानेके लिये बालकको तैयारी नहीं करनी पड़ती । माँकी गोदीमें जानेमें क्या संकोच ? पूत कपूत हो सकता है, पर माता कुमाता नहीं होती‒‘कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति’ । भगवान्‌की प्राप्ति हमारी योग्यतासे नहीं होती । वे अपनी कृपासे ही मिलते हैं । इसलिये अपनी योग्यताका भरोसा नहीं रखें । हम भगवान्‌के हैं, भगवान् हमारे हैं‒यह बात आप दृढ़तासे मान लें और उनकी कृपाकी तरफ देखते रहें । जितने भी सन्त भगवान्‌को प्राप्त हुए हैं, वे सब भगवान्‌की कृपासे ही हुए हैं, चाहे वे मानें या न मानें । 

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे