भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय
(गत ब्लॉगसे आगेका)
६. भगवान्की कृपाका आश्रय लेना
(२)
भगवान्की प्राप्ति हमारे बलसे नहीं होगी, प्रत्युत
भगवान्के बलसे, उनकी कृपासे होगी । उनकी कृपासे ही सब काम हुआ है, हो
रहा है और होगा । हम अपने जीवनपर
दृष्टि डालें कि हमें यह मानवशरीर कैसे मिला
? क्या हमने जानकर यहाँ जन्म
लिया था ? बचपनसे लेकर आजतक हमारा पालन-पोषण कैसे हुआ
? गीता,
रामायण आदिसे परिचय कैसे हुआ
? सत्संग कैसे मिला
? अच्छी पुस्तकें कैसे मिलीं
? अच्छा संग कैसे मिला
? उसके लिये क्या हमने कोई पुरुषार्थ
किया था ? कोई उद्योग किया था
? कुछ बल लगाया था
? कुछ रुपये खर्च किये थे
? कुछ परिश्रम किया था
? सब भगवान्की कृपासे ही हुआ
है । जब उनकी इतनी कृपा मिली है, तो
फिर अब चिन्ता क्यों करें ? कोई आदमी किसी ब्राह्मणको भोजनका निमन्त्रण देकर घरपर बुलाये
। उसको आसनपर बैठा दे । पत्तल सामने रख दे । जल भी रख दे । अब वह भोजन देगा कि नहीं‒इसकी
चिन्ता करनेकी क्या जरूरत ? अगर उसका भोजन देनेका मन नहीं होता तो वह निमन्त्रण क्यों देता
? पत्तल सामने क्यों रखता
? ऐसे ही भगवान्ने अपनी कृपासे
हमें मनुष्यशरीर दिया है, गीता, रामायण‒जैसे ग्रन्थोंसे परिचय कराया है,
सत्संगकी बातोंसे परिचय कराया है । हमने उनसे कब कहा था कि आप
ऐसा करो ? अतः जिसने इतना दिया है, वह
आगे भी देगा । नहीं देगा तो लाज किसकी जायगी ? द्रौपदी भगवान्से कहती है‒‘जायगी
लाज तिहारी नाथ मेरो कहा बिगड़ैगो ?’ इसलिये हम चिन्ता क्यों करें
? विश्वास न हो तो
भगवान्से कहो कि हे नाथ ! आप मेरेको विश्वास दो, प्रेम
दो; नहीं दोगे तो और कौन देगा ? जैसे माँका दूध
माँके लिये नहीं है, प्रत्युत बच्चेके लिये ही है,
ऐसे ही भगवान्की शक्ति हमारे लिये
ही है । हमारा काम तो बस यही है कि हम उनकी शरण हो जायँ ।
(३)
परमात्माकी प्राप्ति ऐसे है,
जैसे बालक अपनी माँकी गोदीमें जाय ! क्या बालक माँकी गोदीमें
अपनी योग्यता, शक्ति, बुद्धिमानीके बलपर जाता है
? इसमें केवल माँकी कृपा है ।
इसी तरह आप यह न मानें कि हम दूजे हैं, भगवान् दूजे हैं । भगवान् हमारी माँ हैं‒‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव॰’ । भगवान्के पास जाना अपनी माँके पास जाना है । माँकी गोदीमें जानेके लिये बालकको
तैयारी नहीं करनी पड़ती । माँकी गोदीमें जानेमें क्या संकोच
? पूत कपूत हो सकता है,
पर माता कुमाता नहीं होती‒‘कुपुत्रो
जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति’ । भगवान्की प्राप्ति हमारी योग्यतासे नहीं होती । वे अपनी कृपासे ही मिलते हैं । इसलिये अपनी योग्यताका भरोसा नहीं
रखें । हम भगवान्के हैं, भगवान् हमारे हैं‒यह बात आप दृढ़तासे मान लें और उनकी
कृपाकी तरफ देखते रहें । जितने भी
सन्त भगवान्को प्राप्त हुए हैं, वे सब भगवान्की कृपासे ही हुए हैं,
चाहे वे मानें या न मानें ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे
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