।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     पौष शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.-२०७४, मंगलवार
  भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय


भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय

(गत ब्लॉगसे आगेका)

८. भगवान्‌को अपना मानना

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हम भगवान्‌के हैं, भगवान् हमारे हैं‒यह मामूली बात नहीं है । यह बहुत ऊँचा भजन है । इसके समान कोई साधन नहीं है । हम भगवान्‌के हैं, भगवान् हमारे हैं‒यह पता लग गया तो अब हमारा दूसरा जन्म क्यों होगा ?

(८)

एक भगवान्‌के सिवाय कोई चीज मेरी नहीं‒यह मान लो तो निहाल हो जाओगे । इसके समान आनन्दकी, शान्तिकी दूसरी कोई बात है ही नहीं ! यह सब शास्त्रोंकी, सन्त-महात्माओंकी सार बात है । नामजप, भजन, कीर्तन आदि कोई साधनकी जरूरत नहीं, मन चाहे वशमें करो या न करो, बस, इतना मान लो कि भगवान्‌के सिवाय कोई चीज हमारी है ही नहीं । भगवान् कैसे हैं, इससे हमें कोई मतलब नहीं । वे जैसे भी हैं, हमारे हैं ।

(९)

केवल भगवान् ही मेरे हैं और मैं भगवान्‌का ही हूँ; दूसरा कोई भी मेरा नहीं है और मैं किसीका भी नहीं हूँ‒इस प्रकार भगवान्‌में अपनापन करनेसे उनकी प्राप्ति शीघ्र एवं सुगमतासे हो जाती है ।

(१०)

हे प्रभो, मैं आपका हूँ’इस प्रकार आप भगवान्‌के चरणोंके आश्रित हो जायँ तो सब काम भगवान् करेंगे, भजन भी आपको नहीं करना पड़ेगा ।

(११)

एक ऐसी बढ़िया बात है कि आप मान लें तो निहाल हो जायँगे ! केवल स्वीकार करना है, और कुछ नहीं करना है । आप पापी-पुण्यात्मा कैसे ही हों, यह मान लें कि हम भगवान्‌के हैं । भगवान् कहते हैं कि जीवमात्र मेरा अंश है‒‘ममैवांशो जीवलोके’ (गीता १५ । ७) । आप भले ही कुछ नहीं हों, सन्त-महात्मा नहीं हों, भजनानन्दी नहीं हों, शुद्ध नहीं हों, पर जीव तो हो ही ! कपूत क्या पूत नहीं होता ? मल-मूत्रसे भरा बच्चा क्या माँका बेटा नहीं होता ? मूलमें आप निर्दोष हैं, दोष पीछेसे आये हुए हैं । स्नानघरमें जब आप साबुन लगाते हो तो काँचमें देखनेपर क्या आप मानते हो कि मेरा चेहरा खराब हो गया ?

आप दृढ़ताके साथ भगवान्‌को अपना स्वीकार कर लें तो इसका महान् फल होगा, आपका जीवन सफल हो जायगा ! इससे मेरे चित्तमें बहुत प्रसन्नता होगी और आपको भी प्रसन्नता होगी, आनन्द होगा ! इस बातको स्वीकार करनेमें लाभ-ही-लाभ है, नुकसान कोई है ही नहीं ! यह कोई मामूली बात नहीं है । यह वेदोंका, गीताका, रामायणका भी सार है ! आप नहीं मानो तो भी सच्ची बात सच्ची ही रहेगी, कभी झूठी नहीं हो सकती । आप अपनी तरफसे मान लो, फिर आपके माननेमें कोई कमी रहेगी तो उसे भगवान् पूरी करेंगे । पर एक बार स्वीकार करके फिर आप इसे छोड़ना मत । मैं भगवान्‌का हूँ‒यह मानते रहो तो आप अपने-आप शुद्ध, निर्मल हो जाओगे । जो लोहेका सोना बना दे, उस पारससे भी क्या भगवान् कमजोर हैं ? भगवान्‌के सम्बन्धसे जैसी शुद्धि होती है, वैसी अपने उद्योगसे नहीं होती । वर्षोंतक सत्संग करनेसे जो लाभ नहीं होता, वह भगवान्‌को अपना मान लेनेसे एक दिनमें हो जाता है !

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे