भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय
(गत ब्लॉगसे आगेका)
८. भगवान्को अपना मानना
(७)
हम भगवान्के हैं, भगवान् हमारे हैं‒यह मामूली बात नहीं है । यह बहुत ऊँचा भजन
है । इसके समान कोई साधन नहीं है । हम भगवान्के हैं, भगवान्
हमारे हैं‒यह पता लग गया तो अब हमारा दूसरा जन्म क्यों होगा ?
(८)
एक भगवान्के सिवाय कोई चीज मेरी नहीं‒यह मान लो तो निहाल हो
जाओगे । इसके समान आनन्दकी, शान्तिकी दूसरी कोई बात है ही नहीं ! यह सब शास्त्रोंकी,
सन्त-महात्माओंकी सार बात है । नामजप,
भजन, कीर्तन आदि कोई साधनकी जरूरत नहीं,
मन चाहे वशमें करो या न करो,
बस, इतना मान लो कि भगवान्के सिवाय कोई चीज हमारी है ही नहीं ।
भगवान् कैसे हैं, इससे
हमें कोई मतलब नहीं । वे जैसे भी हैं,
हमारे हैं ।
(९)
केवल भगवान् ही मेरे हैं और मैं भगवान्का ही हूँ; दूसरा
कोई भी मेरा नहीं है और मैं किसीका भी नहीं हूँ‒इस प्रकार भगवान्में अपनापन करनेसे
उनकी प्राप्ति शीघ्र एवं सुगमतासे हो जाती है ।
(१०)
‘हे
प्रभो, मैं आपका हूँ’‒इस
प्रकार आप भगवान्के चरणोंके आश्रित हो जायँ तो सब काम भगवान् करेंगे, भजन
भी आपको नहीं करना पड़ेगा ।
(११)
एक ऐसी बढ़िया बात है कि आप मान लें तो निहाल हो जायँगे ! केवल
स्वीकार करना है, और कुछ नहीं करना है । आप पापी-पुण्यात्मा कैसे ही हों,
यह मान लें कि हम भगवान्के हैं । भगवान् कहते हैं कि जीवमात्र
मेरा अंश है‒‘ममैवांशो जीवलोके’ (गीता
१५ । ७) । आप भले ही कुछ
नहीं हों, सन्त-महात्मा नहीं हों,
भजनानन्दी नहीं हों,
शुद्ध नहीं हों, पर जीव तो हो ही ! कपूत क्या पूत नहीं होता
? मल-मूत्रसे भरा बच्चा क्या
माँका बेटा नहीं होता ? मूलमें आप निर्दोष हैं,
दोष पीछेसे आये हुए हैं । स्नानघरमें जब आप साबुन लगाते हो तो
काँचमें देखनेपर क्या आप मानते हो कि मेरा चेहरा खराब हो गया
?
आप दृढ़ताके साथ भगवान्को अपना स्वीकार कर लें तो
इसका महान् फल होगा, आपका जीवन सफल हो जायगा ! इससे मेरे चित्तमें बहुत
प्रसन्नता होगी और आपको भी प्रसन्नता होगी, आनन्द
होगा ! इस बातको स्वीकार
करनेमें लाभ-ही-लाभ है, नुकसान कोई है ही नहीं ! यह कोई मामूली बात नहीं है । यह वेदोंका,
गीताका, रामायणका भी सार है ! आप नहीं मानो तो भी सच्ची बात सच्ची ही
रहेगी, कभी झूठी नहीं हो सकती । आप अपनी तरफसे मान लो,
फिर आपके माननेमें कोई कमी रहेगी तो उसे भगवान् पूरी करेंगे
। पर एक बार स्वीकार करके फिर आप इसे छोड़ना मत । मैं भगवान्का हूँ‒यह मानते रहो तो
आप अपने-आप शुद्ध, निर्मल हो जाओगे । जो लोहेका सोना बना दे,
उस पारससे भी क्या भगवान् कमजोर हैं
? भगवान्के सम्बन्धसे जैसी शुद्धि
होती है, वैसी अपने उद्योगसे नहीं होती । वर्षोंतक
सत्संग करनेसे जो लाभ नहीं होता,
वह भगवान्को अपना मान लेनेसे एक दिनमें हो जाता
है !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे
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