।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     पौष शुक्ल द्वितीया, वि.सं.-२०७४, बुधवार
  भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय


भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय

(गत ब्लॉगसे आगेका)

८. भगवान्‌को अपना मानना

(१२)

अगर आप सुगमतासे भगवत्प्राप्ति चाहते हैं तो मेरी प्रार्थना है कि आप मैं भगवान्‌का हूँ’यह मान लें । यह चुप साधन’ अथवा मूक सत्संग’ से भी बढ़िया साधन है ! जैसे आपके घरकी कन्या विवाह होनेपर मैं ससुरालकी हूँ’यह मान लेती है, ऐसे आप मैं भगवान्‌का हूँ’यह मान लें । यह सबसे सुगम और सबसे बढ़िया साधन है । इसको भगवान्‌ने सबसे अधिक गोपनीय साधन कहा है‒‘सर्वगुह्यतमम्’ (गीता १८ । ६४) । गीताभरमें यह सर्वगुह्यतमम्’ पद एक ही बार आया है । मैं हाथ जोड़कर प्रेमसे कहता हूँ कि मेरी जानकारीमें यह सबसे बढ़िया साधन है ।

(१३)

मनुष्योंमें एक धारणा बैठी हुई है कि हम तो संसारी आदमी हैं, परमात्मासे बहुत दूर हैं, और परमात्मा बहुत उद्योग करनेसे तथा समय लगानेसे मिलेंगे । वास्तवमें यह बात नहीं है । हम परमात्माके साक्षात् अंश हैं । परमात्मा हमारे हैं और हम परमात्माके हैं । वे परमात्मा पहलेसे ही सभीको मिले हुए हैं और कभी बिछुड़ेंगे नहीं । उन परमात्माको अपना मान लें । परमात्मा हमारे भीतर हैं, वे बाहर दौड़नेसे नहीं मिलते । पापी-से-पापीके हृदयमें भी परमात्मा हैं और सन्त-महात्मा, तत्त्वज्ञ, जीवन्मुक्त, भगवत्प्रेमी भक्तके हृदयमें भी परमात्मा हैं; और वे परमात्मा अपने हैं । वे कभी हमें छोड़ेंगे नहीं । आप कृपा करके उन्हें अपना मान लो तो निहाल हो जाओगे !

(१४)

परमात्मप्राप्ति बहुत सुगम है‒यह बात भी आती है, और परमात्मप्राप्ति बहुत कठिन है‒यह बात भी आती है । कानून-कायदेके अनुसार देखा जाय तो परमात्मप्राप्ति बहुत कठिन है । परन्तु हृदयका भाव हो तो बहुत सुगमतासे प्राप्ति हो जाय । जैसे बालक कहता है कि मेरी माँ है, ऐसे भगवान् हमारे हैं‒ऐसा सीधा-सरल भाव हो जाय । हृदयके भावके बिना प्राप्ति बड़ी कठिन है । भगवान् भावग्राही हैं । बालक मानता है कि मेरी माँ है तो इसमें क्या कानून लगेगा ? बच्चेको अपनी योग्यता, पात्रताकी तरफ ध्यान ही नहीं है । वह अपनेपनके बलसे माँपर पूरा कब्जा कर लेता है । इस तरह भगवान् अपने हैं‒ऐसा मान लो । बालक रोता है तो माँको सब काम छोड़कर आना पड़ता है । इसलिये सीधे-सरल भावसे भगवान्‌को ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ  !’ पुकारो । भगवान् मेरे हैं‒इससे सब बातें पीछे छूट जाती हैं !

(१५)

भगवान्‌को प्रकट करनेके लिये, उनका प्रेम प्राप्त करनेके लिये भगवान्‌को अपना मानना बहुत जरूरी है । जैसे बालक कहता है कि माँ मेरी है, ऐसे भगवान् मेरे हैं । भगवान्‌में मेरापन प्रेमका मन्त्र है, जिससे भगवान् प्रकट हो जाते हैं । आपके भीतर यह भाव आना चाहिये कि मेरी माँ मेरेको गोदमें क्यों नहीं लेती ?

(१६)

हमने साधना की है, हमने जप किया है, हमने कीर्तन किया है, हमने अभ्यास किया है, हम गीताको जानते हैं, हम अनेक शास्त्रोंको जानते हैं‒ऐसी हेकड़ीसे भगवान् वशमें हो जायें यह असम्भव बात है । भगवान् वशमें होते हैं तो कृपा-परवश ही होते हैं । उनकी कृपा उसीपर होती है, जो सर्वथा उनका हो जाता है । वे सस्ते हैं तो इतने सस्ते हैं कि ‘हे नाथ ! मैं आपका हूँ’इतना सुनते ही भगवान् कहते हैं कि ‘हाँ बेटा ! मैं तेरा हूँ’

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे