।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     पौष शुक्ल षष्ठी, वि.सं.-२०७४, रविवार
  भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय


भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय

(गत ब्लॉगसे आगेका)

१०. भगवान्‌की आवश्यकताका अनुभव करना

(१)

जब मनुष्य इस बातको जान लेता है कि इतने बड़े संसारमें, अनन्त ब्रह्माण्डोंमें कोई भी वस्तु अपनी नहीं है, प्रत्युत जिसके एक अंशमें अनन्त ब्रह्माण्ड हैं, वही अपना है, तब उसके भीतर भगवान्‌की आवश्यकताका अनुभव होता है । कारण कि अपनी वस्तु वही हो सकती है, जो सदा हमारे साथ रहे और हम सदा उसके साथ रहें । जो कभी हमारेसे अलग न हो और हम कभी उससे अलग न हों । ऐसी वस्तु भगवान् ही हो सकते हैं ।

अब प्रश्न यह उठता है कि जब मनुष्यको भगवान्‌की आवश्यकता है, तो फिर भगवान् मिलते क्यों नहीं ? इसका कारण यह है कि मनुष्य भगवान्‌की प्राप्तिके बिना सुख-आरामसे रहता है, वह अपनी आवश्यकताको भूले रहता है । वह मिली हुई वस्तु, योग्यता और सामर्थ्यमें ही सन्तोष कर लेता है । अगर वह भगवान्‌की आवश्यकताका अनुभव करे, उनके बिना चैनसे न रह सके तो भगवान्‌की प्राप्तिमें देरी नहीं है । कारण कि जो नित्यप्राप्त है, उसकी प्राप्तिमें क्या देरी ? भगवान् कोई वृक्ष तो हैं नहीं कि आज बोयेंगे और वर्षोंके बाद फल मिलेगा ! वे तो सब देशमें सब समयमें, सब वस्तुओंमें, सब अवस्थाओंमें, सब परिस्थितियोंमें ज्यों-के-त्यों विद्यमान हैं । हम ही उनसे विमुख हुए हैं, वे हमसे कभी विमुख नहीं हुए ।

(२)

आपमें केवल भगवत्प्राप्तिकी लालसा हो जाय । वह लालसा ऐसी हो, जिसकी कभी विस्मृति न हो । तात्पर्य है कि मुझे भगवान्‌की प्राप्ति हो जाय, तत्त्वज्ञान हो जाय, उनके चरणोंमें मेरा प्रेम हो जाय‒इसको केवल याद रखना है, भूलना नहीं है । हम सब भगवान्‌रूपी कल्पवृक्षकी छायामें बैठे हैं, इसलिये हमारी लालसा अवश्य पूरी होगी; क्योंकि इसीके लिये मनुष्यजन्म मिला है । अगर आपकी सच्ची लगन होगी तो दो-चार दिनमें काम सिद्ध हो जायगा । कितनी सुगम बात है ! इसमें कठिनता क्या है ? इसमें लाभ-ही-लाभ है, हानि कोई है ही नहीं । इससे बढ़िया, सुगम उपाय मुझे कहीं मिला नहीं !

केवल एक बात पकड़ लें कि मेरा भगवान्‌में प्रेम हो जाय । इस एक बातमें सब कुछ आ जायगा । इसमें पुरुषार्थ इतना ही है कि इस बातको भूलें नहीं, केवल याद रखें । ऐसा करोगे तो मैं अपनेपर आपकी बड़ी कृपा मानूँगा, एहसान मानूँगा ! केवल याद रखना है, इतनी ही बात है । ऊँची-से-ऊँची सिद्धि इससे हो जायगी । सदाके लिये दुःख मिट जायगा । कर्मयोग, ज्ञानयोग तथा भक्तियोग‒ये तीनों योग सिद्ध हो जायँगे । केवल अपनी आवश्यकताको याद रखें, भूलें नहीं । इसके सिद्ध होनेमें कम या ज्यादा दिन लग सकते हैं, पर इसमें कोई अयोग्य नहीं है । यह बात मामूली नहीं है ।

(३)

हमारी आवश्यकता परमात्मतत्त्वकी है । इस आवश्यकताको हम कभी भूलें नहीं, इसको हरदम जाग्रत् रखें । नींद आ जाय तो आने दें, पर अपनी तरफसे आवश्यकताकी भूली मत होने दें । भगवान्‌की प्राप्ति हो जाय, उनमें प्रेम हो जाय‒इस प्रकार आठ पहर इसको जाग्रत् रखें तो काम पूरा हो जायगा ! बीचमें दूसरी इच्छाएँ होती रहेंगी तो ज्यादा समय लग जायगा । दूसरी इच्छा पैदा हो तो जबान हिला दें कि नहीं-नहीं, मेरी कोई इच्छा नहीं ! अगर दूसरी इच्छा न रहे तो आठ पहर भी नहीं लगेंगे !

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे