भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय
(गत ब्लॉगसे आगेका)
११. प्रकीर्ण
(१)
हमें यह जन्म भगवान्ने दिया है । कोई यह नहीं कह सकता कि मैंने
अपनी मरजीसे जन्म लिया है और मैं इतने वर्ष जीऊँगा । हम भगवान्की मरजीसे आये हैं,
भगवान्की मरजीसे जी रहे हैं और भगवान्की मरजीसे जायँगे । इसलिये
हम भगवान्के हैं । भगवान्के भरोसे निश्चिन्त हो जाओ । हम भगवान्की मरजीसे बैठे हैं
। आज मर जायँ तो कोई दुःख नहीं, सन्ताप नहीं ! भगवान्की जैसी मरजी हो,
वैसा करें । तीन बातें मान लें‒कोई
शुद्ध-सात्त्विक खिलाना चाहे तो खा लें, सुनना
चाहे तो सुना दें, मिलना चाहे तो मिल लें । अपना कोई काम नहीं ! केवल
इसी बातसे आप निहाल हो जाओगे ! कुछ बाकी नहीं रहेगा ! इसमें क्या परिश्रम है,
क्या कठिनता है ? हमें न खानेकी इच्छा है,
न सुनानेकी इच्छा है,
न मिलनेकी इच्छा है । अपनी कोई इच्छा नहीं,
किसी चीजकी जरूरत नहीं । केवल इतनी बातसे भगवान्की प्राप्ति हो जायगी ।
(२)
संसारकी आसक्तिके कारण परमात्मप्राप्तिको कठिन मानते हैं,
वास्तवमें कठिन है नहीं । परमात्मप्राप्ति
हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है । हम परमात्माके अंश हैं । नाशवान्को सत्ता और महत्ता
देकर उसके साथ सम्बन्ध जोड़ लिया, इसीसे बाधा लग रही है । संसारकी जितनी विघ्न-बाधाएँ हैं,
वे सब-की-सब नाशवान् हैं;
परन्तु हम अविनाशी हैं,
परमात्माके अंश हैं । फिर ये विघ्न-बाधाएँ हमारा क्या बिगाड़
सकती हैं ? काम-क्रोधादि जितनी बाधाएँ हैं,
सब नाशवान् हैं, अविनाशी नहीं, फिर उनसे क्या डरना
? अविनाशी बाधा कोई है ही नहीं
। कोई बाधा ठहरनेवाली है ही नहीं, हो सकती ही नहीं । बाधाएँ आती-जाती हैं,
पर हम हरदम रहते हैं‒यह सबके अनुभवकी बात है । अविनाशीके सामने
विनाशीकी क्या इज्जत है ? विनाशीसे डरना, उसको
ज्यादा महत्त्व देना ही गलती है । उसको महत्व न देकर परमात्माको महत्व दें और उन्हें
पुकारें तो वे मदद करनेको हरदम तैयार हैं ।
(३)
‘मेरा कुछ नहीं है, मेरेको कुछ नहीं चाहिये’‒यह बात मान लो तो आप निहाल हो जाओगे ! यह बहुत ऊँची और तत्काल
शान्ति देनेवाली बात है । विचार करें, जो वस्तु मेरी दीखती है,
वह सदा आपके साथ रहेगी क्या
? आप सदा उसके साथ रहोगे क्या
? इस बातको पकड़ लो तो ममता मिट
जायगी । अगर आपको जल्दी तत्त्वका अनुभव करना हो तो यह बहुत बढ़िया उपाय है । आपने साधन
करते इतने वर्ष बिता दिये, अब मेरे कहनेसे दो-तीन दिन यह करके देख लो कि ‘मेरा कुछ नहीं है, मेरेको कुछ नहीं चाहिये’
। जो लाभ वर्षोंसे नहीं हुआ, वह
केवल इस बातको माननेसे हो जायगा कि ‘मेरा कुछ नहीं है, मेरेको
कुछ नहीं चाहिये’ । इस बातको माननेसे लाभ ही होगा, नुकसान किंचिन्मात्र भी नहीं होगा । जो चीज दीखे,
‘यह मेरी नहीं है’;
क्योंकि कोई भी चीज आपके साथ रहनेवाली नहीं है ।
चाहे आप यह मान लो कि ‘मेरा कुछ नहीं है, मेरेको कुछ नहीं चाहिये’,
चाहे आप यह मान लो कि ‘भगवान् मेरे हैं,
मैं भगवान्का हूँ’ । दोनोंमें आपको जो बढ़िया लगे,
वह बात मान लो । चाहे दोनों बातें एक साथ मान लो ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे
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