।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
       पौष शुक्ल सप्तमी, वि.सं.-२०७४, सोमवार
  भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय


भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय

(गत ब्लॉगसे आगेका)

११. प्रकीर्ण

(१)

हमें यह जन्म भगवान्‌ने दिया है । कोई यह नहीं कह सकता कि मैंने अपनी मरजीसे जन्म लिया है और मैं इतने वर्ष जीऊँगा । हम भगवान्‌की मरजीसे आये हैं, भगवान्‌की मरजीसे जी रहे हैं और भगवान्‌की मरजीसे जायँगे । इसलिये हम भगवान्‌के हैं । भगवान्‌के भरोसे निश्चिन्त हो जाओ । हम भगवान्‌की मरजीसे बैठे हैं । आज मर जायँ तो कोई दुःख नहीं, सन्ताप नहीं ! भगवान्‌की जैसी मरजी हो, वैसा करें । तीन बातें मान लें‒कोई शुद्ध-सात्त्विक खिलाना चाहे तो खा लें, सुनना चाहे तो सुना दें, मिलना चाहे तो मिल लें । अपना कोई काम नहीं ! केवल इसी बातसे आप निहाल हो जाओगे ! कुछ बाकी नहीं रहेगा ! इसमें क्या परिश्रम है, क्या कठिनता है ? हमें न खानेकी इच्छा है, न सुनानेकी इच्छा है, न मिलनेकी इच्छा है । अपनी कोई इच्छा नहीं, किसी चीजकी जरूरत नहीं । केवल इतनी बातसे भगवान्‌की प्राप्ति हो जायगी ।

(२)

संसारकी आसक्तिके कारण परमात्मप्राप्तिको कठिन मानते हैं, वास्तवमें कठिन है नहीं । परमात्मप्राप्ति हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है । हम परमात्माके अंश हैं । नाशवान्‌को सत्ता और महत्ता देकर उसके साथ सम्बन्ध जोड़ लिया, इसीसे बाधा लग रही है । संसारकी जितनी विघ्न-बाधाएँ हैं, वे सब-की-सब नाशवान् हैं; परन्तु हम अविनाशी हैं, परमात्माके अंश हैं । फिर ये विघ्न-बाधाएँ हमारा क्या बिगाड़ सकती हैं ? काम-क्रोधादि जितनी बाधाएँ हैं, सब नाशवान् हैं, अविनाशी नहीं, फिर उनसे क्या डरना ? अविनाशी बाधा कोई है ही नहीं । कोई बाधा ठहरनेवाली है ही नहीं, हो सकती ही नहीं । बाधाएँ आती-जाती हैं, पर हम हरदम रहते हैं‒यह सबके अनुभवकी बात है । अविनाशीके सामने विनाशीकी क्या इज्जत है ? विनाशीसे डरना, उसको ज्यादा महत्त्व देना ही गलती है । उसको महत्व न देकर परमात्माको महत्व दें और उन्हें पुकारें तो वे मदद करनेको हरदम तैयार हैं ।

(३)

मेरा कुछ नहीं है, मेरेको कुछ नहीं चाहिये’यह बात मान लो तो आप निहाल हो जाओगे ! यह बहुत ऊँची और तत्काल शान्ति देनेवाली बात है । विचार करें, जो वस्तु मेरी दीखती है, वह सदा आपके साथ रहेगी क्या ? आप सदा उसके साथ रहोगे क्या ? इस बातको पकड़ लो तो ममता मिट जायगी । अगर आपको जल्दी तत्त्वका अनुभव करना हो तो यह बहुत बढ़िया उपाय है । आपने साधन करते इतने वर्ष बिता दिये, अब मेरे कहनेसे दो-तीन दिन यह करके देख लो कि मेरा कुछ नहीं है, मेरेको कुछ नहीं चाहिये’ जो लाभ वर्षोंसे नहीं हुआ, वह केवल इस बातको माननेसे हो जायगा कि मेरा कुछ नहीं है, मेरेको कुछ नहीं चाहिये’ इस बातको माननेसे लाभ ही होगा, नुकसान किंचिन्मात्र भी नहीं होगा । जो चीज दीखे, ‘यह मेरी नहीं है’; क्योंकि कोई भी चीज आपके साथ रहनेवाली नहीं है ।


चाहे आप यह मान लो कि मेरा कुछ नहीं है, मेरेको कुछ नहीं चाहिये’, चाहे आप यह मान लो कि ‘भगवान् मेरे हैं, मैं भगवान्‌का हूँ’ । दोनोंमें आपको जो बढ़िया लगे, वह बात मान लो । चाहे दोनों बातें एक साथ मान लो ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे