।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
      पौष शुक्ल अष्टमी, वि.सं.-२०७४, मंगलवार
  भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय


भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय

(गत ब्लॉगसे आगेका)

११. प्रकीर्ण

(४)

जबतक निषेध नहीं होता, तबतक विधिकी सिद्धि नहीं होती । मीराबाईने कहा है‒मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ तो इसमें दूसरो न कोई’‒यह निषेध है । इस निषेधसे ऐसी सिद्धि हुई कि उनका शरीर भी चिन्मय होकर भगवान्‌के विग्रहमें लीन हो गया ! कारण कि जड़ताकी निवृत्ति होनेपर चिन्मयता ही शेष रहती है । मेरे तो गिरधर गोपाल’‒ऐसा तो बहुत-से मनुष्य मानते हैं, पर इससे भगवान्‌की प्राप्ति नहीं हो जाती । अगर इसके साथ दूसरो न कोई’‒ऐसा भाव नहीं होगा तो संसारके अन्य सम्बन्धकी तरह भगवान्‌का भी एक और नया सम्बन्ध हो जायगा ! अगर मेरा कोई नहीं है’इस तरह सर्वथा निषेध हो जाय तो बोध हो जायगा । बोध होते ही नित्यप्राप्तकी प्राप्ति हो जायगी । कारण कि जबतक दूसरी सत्ताकी मान्यता है, तभीतक विवेक है । दूसरी सत्ताकी मान्यता न रहे तो वह तत्त्वबोध ही है ।

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सब-के-सब भाई-बहन तीन बातोंका खूब मनन करें‒१) हम अपने साथ कुछ लाये नहीं थे, २) हम अपने साथ कुछ नहीं ले जा सकेंगे, और ३) जो चीज मिलती है और बिछुड़ जाती है, वह अपनी नहीं होती । अगर आप कल्याण चाहते हो तो चलते-फिरते, उठते-बैठते इन तीन बातोंका मनन करो । इससे बहुत लाभ होगा ।

(६)

आप एक बात दृढ़तासे पकड़ लें कि हमारी चीज कोई नहीं है । जब कोई चीज हमारी नहीं है तो फिर हमें क्या चाहिये ? ‘मेरा कुछ नहीं है’यह बात समझनेके बाद मेरेको कुछ भी नहीं चाहिये’यह बात समझमें आ जायगी । यह समझमें आते ही मैं कुछ नहीं है’यह समझमें आ जायगा और पूर्णता हो जायगी, कुछ बाकी नहीं रहेगा । श्रवण, मनन, निदिध्यासन आदि किसीकी जरूरत नहीं है, केवल इतनेसे काम हो जायगा !

(७)

कोई परमात्माको प्राप्त करना चाहता हो तो उसको सबसे पहले संसारका त्याग करना होगा । त्याग करनेका यह अर्थ नहीं कि साधु होकर चले जायँ । मनमें रुपयोंका और भोगोंका महत्त्व न रहे । रुपयों और भोगोंकी आसक्ति जितनी मिटेगी, उतनी परमात्माकी तरफ उन्नति होगी । जबतक रुपये और भोग अच्छे लगेंगे, तबतक पारमार्थिक उन्नति नहीं होगी । चाहे साधु हो, चाहे गृहस्थ हो; चाहे भाई हो, चाहे बहन हो; चाहे ब्राह्मण हो, चाहे क्षत्रिय आदि हो, सबके लिये यह बात है । जिसकी वृत्ति पतनकी तरफ है, वह ऊँचा कैसे जायगा ? जिसको रुपये प्यारे लगते हैं, चेला-चेली प्यारे लगते हैं, अपने अनुयायी प्यारे लगते हैं, उसकी पारमार्थिक उन्नति कैसे होगी ? यह सम्भव नहीं है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे