Dec
27
भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय
(गत ब्लॉगसे आगेका)
११. प्रकीर्ण
वास्तवमें रुपये और भोग बाधक नहीं हैं, इनकी
इच्छा बाधक है । संसार बाधक नहीं है,
संसारका सम्बन्ध, प्रियता, महत्त्व
बाधक है । बैंकमें कितने
ही रुपये पड़े हों, उनसे हमारा बन्धन नहीं होता । जिन रुपयोंको अपना मानते हैं,
उनसे पतन होता है । रुपयों और भोगोंकी आसक्ति अगर मिट रही है
तो साधन ठीक है, अगर नहीं मिट रही है तो साधन शुरू ही नहीं हुआ है ! किया हुआ
साधन, सत्संग व्यर्थ तो नहीं जायगा,
पर कई जन्मोंमें उद्धार होगा ! अगर इसी जन्ममें उद्धार चाहते
हो तो इनकी आसक्तिका त्याग करो ।
(८)
बहुत-से ऐसे भाई-बहन हैं,
जो लक्ष्य बनाये बिना ही जीवन व्यतीत कर रहे हैं । जीवन तो जा
रहा है और मौत भी आयेगी ही, इसलिये जीवनका लक्ष्य पहले ही बना
लेना चाहिये कि हमें परमात्माको प्राप्त करना है । लक्ष्य बननेपर बहुत फायदा
होता है । अगर लक्ष्य बन गया तो वह खाली नहीं जायगा,
कमी रह जायगी तो योगभ्रष्ट हो जाओगे,
पर परमात्माकी प्राप्ति जरूर होगी । लक्ष्य बननेपर फिर समय बर्बाद नहीं होता, सार्थक
होता है । वृत्तियाँ स्वाभाविक ठीक हो जाती हैं । अवगुण स्वतः दूर होते हैं । संसारका
खिंचाव कम होता है । आस्तिकभाव बढ़ता है । अगर यह फर्क नहीं पड़ा है तो लक्ष्य नहीं बना
है, साधन हाथ नहीं लगा है, सत्संग
नहीं मिला है ।
(९)
वास्तवमें भगवत्प्राप्तिके लिये नया काम कुछ करना
ही नहीं है ! भगवत्प्राप्तिके लिये समयकी जरूरत नहीं है । हम भगवान्के हैं और भगवान्का
काम करते हैं‒यह मान लो । मैं ‘पंचामृत’ बताया करता हूँ‒
१)
हम भगवान्के ही हैं ।
२) हम जहाँ भी रहते हैं, भगवान्के
ही दरबारमें रहते हैं ।
३)
हम जो भी शुभ काम करते हैं, भगवान्का
ही काम करते हैं ।
४)
शुद्ध-सात्त्विक जो भी पाते हैं, भगवान्का
ही प्रसाद पाते हैं ।
५)
भगवान्के दिये प्रसादसे भगवान्के ही जनोंकी सेवा करते हैं
।
‒ये पाँच बातें मान
लो तो आप बिकुल भगवान्का नाम मत लो, कल्याण हो जायगा ! समयकी जरूरत नहीं है । अपने-आपको बदलनेके बाद समयकी जरूरत नहीं
रहती । अपनेको तो संसारी मानते हैं और भगवान्का भजन करना
चाहते है तो वह पूरा भजन नहीं होता । समय लगाते हैं तो वह पूरा भजन नहीं होता
! अपने-आपको लगा देते हैं तो पूरा भजन होता है । साधकका पूरा समय ही साधन है । वह चौबीस
घण्टे जो कुछ करता है, वह भगवान्का ही काम होता है । भगवान् संसारके मालिक हैं तो
हमारे भी मालिक भगवान् हुए । अतः उनके लिये ही हम सब काम करते हैं । उपर्युक्त ‘पंचामृत’
की एक-एक बात कल्याण करनेवाली है । भावकी जरूरत है,
समयकी नहीं । आप भाव बदल दो तो सब
समय भगवान्का भजन हो जायगा । भाव बदल दो तो दुनिया बदल जायगी‒‘वासुदेवः
सर्वम्’ (गीता ७ । ११) ! भगवत्प्राप्तिके समान सरल कोई काम है ही नहीं !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे
|