।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
       पौष शुक्ल नवमी, वि.सं.-२०७४, बुधवार
  भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय


भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय

(गत ब्लॉगसे आगेका)

११. प्रकीर्ण

वास्तवमें रुपये और भोग बाधक नहीं हैं, इनकी इच्छा बाधक है । संसार बाधक नहीं है, संसारका सम्बन्ध, प्रियता, महत्त्व बाधक है । बैंकमें कितने ही रुपये पड़े हों, उनसे हमारा बन्धन नहीं होता । जिन रुपयोंको अपना मानते हैं, उनसे पतन होता है । रुपयों और भोगोंकी आसक्ति अगर मिट रही है तो साधन ठीक है, अगर नहीं मिट रही है तो साधन शुरू ही नहीं हुआ है ! किया हुआ साधन, सत्संग व्यर्थ तो नहीं जायगा, पर कई जन्मोंमें उद्धार होगा ! अगर इसी जन्ममें उद्धार चाहते हो तो इनकी आसक्तिका त्याग करो ।

(८)

बहुत-से ऐसे भाई-बहन हैं, जो लक्ष्य बनाये बिना ही जीवन व्यतीत कर रहे हैं । जीवन तो जा रहा है और मौत भी आयेगी ही, इसलिये जीवनका लक्ष्य पहले ही बना लेना चाहिये कि हमें परमात्माको प्राप्त करना है । लक्ष्य बननेपर बहुत फायदा होता है । अगर लक्ष्य बन गया तो वह खाली नहीं जायगा, कमी रह जायगी तो योगभ्रष्ट हो जाओगे, पर परमात्माकी प्राप्ति जरूर होगी । लक्ष्य बननेपर फिर समय बर्बाद नहीं होता, सार्थक होता है । वृत्तियाँ स्वाभाविक ठीक हो जाती हैं । अवगुण स्वतः दूर होते हैं । संसारका खिंचाव कम होता है । आस्तिकभाव बढ़ता है । अगर यह फर्क नहीं पड़ा है तो लक्ष्य नहीं बना है, साधन हाथ नहीं लगा है, सत्संग नहीं मिला है ।

(९)

वास्तवमें भगवत्प्राप्तिके लिये नया काम कुछ करना ही नहीं है ! भगवत्प्राप्तिके लिये समयकी जरूरत नहीं है । हम भगवान्‌के हैं और भगवान्‌का काम करते हैं‒यह मान लो । मैं पंचामृत’ बताया करता हूँ‒

        १)   हम भगवान्‌के ही हैं ।

        २)   हम जहाँ भी रहते हैं, भगवान्‌के ही दरबारमें रहते हैं ।

        ३)   हम जो भी शुभ काम करते हैं, भगवान्‌का ही काम करते हैं ।

        ४)   शुद्ध-सात्त्विक जो भी पाते हैं, भगवान्‌का ही प्रसाद पाते हैं ।

        ५)   भगवान्‌के दिये प्रसादसे भगवान्‌के ही जनोंकी सेवा करते हैं ।

‒ये पाँच बातें मान लो तो आप बिकुल भगवान्‌का नाम मत लो, कल्याण हो जायगा ! समयकी जरूरत नहीं है । अपने-आपको बदलनेके बाद समयकी जरूरत नहीं रहती । अपनेको तो संसारी मानते हैं और भगवान्‌का भजन करना चाहते है तो वह पूरा भजन नहीं होता । समय लगाते हैं तो वह पूरा भजन नहीं होता ! अपने-आपको लगा देते हैं तो पूरा भजन होता है । साधकका पूरा समय ही साधन है । वह चौबीस घण्टे जो कुछ करता है, वह भगवान्‌का ही काम होता है । भगवान् संसारके मालिक हैं तो हमारे भी मालिक भगवान् हुए । अतः उनके लिये ही हम सब काम करते हैं । उपर्युक्त पंचामृत’ की एक-एक बात कल्याण करनेवाली है । भावकी जरूरत है, समयकी नहीं । आप भाव बदल दो तो सब समय भगवान्‌का भजन हो जायगा । भाव बदल दो तो दुनिया बदल जायगी‒वासुदेवः सर्वम्’ (गीता ७ । ११) ! भगवत्प्राप्तिके समान सरल कोई काम है ही नहीं !

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे