।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     माघ शुक्ल तृतीया, वि.सं.-२०७४, शनिवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

ईश्वरकोटिके पाँच देवता हैं‒विष्णु, शंकर, सूर्य, गणेश और शक्ति । अगर शक्तिको इष्ट मानें तो शक्ति ईश्वर हो गयी और शेष चारों देवता हो गये । विष्णुको इष्ट मानें तो विष्णु ईश्वर हुए और शेष चारों देवता हो गये । मन्दिर-निर्माणके विषयमें शास्त्रमें आता है कि जो ईश्वर है, उसका बीचमें मन्दिर बनेगा और शेष चारोंका चारों तरफ मन्दिर बनेगा । वे साधकोंकी भावनाके अनुसार अलग-अलग हैं, पर स्वरूपसे अलग-अलग नहीं हैं । मूलमें एक ही तत्त्व है । इसलिये खूब प्रेमसे, आदरसे अपने साधन को किये जाओ । जो भी रूप सामने आये, उसको माँका ही रूप मानो ।

श्रोताकामनाके रहते हुए परमात्माकी प्राप्ति हो सकती है क्या ?

स्वामीजीसाधक प्राप्तिके नजदीक पहुँच जाता है, और परमात्माकी कृपासे कामना नष्ट हो जाती है । यह भक्तोंकी बात है ! ज्ञानमार्गमें पहले अहंकारका नाश होता है, पीछे ममताका नाश होता है । भक्तिमार्गमें पहले ममताका नाश होता है, पीछे कामनाका नाश होता है । यह गीतामें आया है ।

श्रोता भगवान्के हृदयमें रहते हुए भी माया हमें दबा देती है तो क्या माया भगवान्से भी प्रबल है ?

स्वामीजीमाया भगवान्से प्रबल नहीं है । आप ही इस मायाको स्वीकार करके इसको प्रबल बना देते हो । भगवान्से प्रार्थना करो तो ठीक हो जायगा ।

मान-बड़ाई और कनक-कामिनीयह खास माया है । कनककी अपेक्षा भी कामिनी विशेष है । आपने अपनेको मायाके वशमें कर लिया । आप सुखके लिये मायाके वशमें हो जाते हैं । अच्छे-अच्छे साधकोंके लिये यह सुखासक्ति ही बाधक है । रो करके, हृदय खोल करके ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’ पुकारो । ठीक हो जायगा । इसमें दस, बीस, पचीस अथवा चालीस वर्ष भी लग जायँ तो भले ही लग जायँ पर अन्तमें विजय आपकी ही होगी, इसमें सन्देह नहीं है । आपकी प्रार्थना कमजोर होगी तो ज्यादा दिन लगेंगे, और प्रार्थना जोरदार होगी तो जल्दी हो जायगा ।

सबके लिये सुखासक्ति ही बाधक है । सुखकी आसक्तिके कारण ही साधन ठीक नहीं बनता । इससे ही बाधा लगती है ।

श्रोतामेरा बेटा तम्बाकू, पान-मसाला खाने लग गया है, बुरी आदत पड़ गयी है, कहनेपर छोड़ता नहीं है ! अब क्या उपाय करें ?

स्वामीजी आपमें ताकत हो तो मान लो कि वह मेरा नहीं है । वह कोई मुसलमान है, जो हमारे यहाँ आ गया है ! उसमें अपनापन बिल्कुल छोड़ दो और भगवान्को दे दो तो वह शुद्ध, निर्मल हो जायगा । वास्तवमें वह आपका नहीं है । उसको अपना माननेसे अशुद्धि आ गयी । यह वस्तु मेरी हैऐसा मानते ही वस्तु अशुद्ध हो जाती है ! लड़केको मेरा माननेसे वह बिगड़ा हुआ है । अगर हृदयसे मेरा न मानकर भगवान्का मान लें तो उसका स्वभाव सुधर जायगा । ममता छोडनेसे वस्तु शुद्ध हो जाती है । भगवान्के अर्पण करनेसे वस्तु प्रसाद बन जाती है । जो सबमें ममता छोड़ देते हैं, वे सन्त हो जाते हैं । ममता वस्तुओंको भी अशुद्ध करती है और अपनेको भी अशुद्ध करती है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे