(गत ब्लॉगसे आगेका)
ईश्वरकोटिके पाँच देवता हैं‒विष्णु, शंकर, सूर्य, गणेश और शक्ति । अगर शक्तिको इष्ट मानें तो शक्ति ईश्वर हो गयी और शेष चारों
देवता हो गये । विष्णुको इष्ट मानें तो विष्णु ईश्वर हुए और शेष चारों देवता हो गये
। मन्दिर-निर्माणके विषयमें शास्त्रमें आता है कि जो ईश्वर है,
उसका बीचमें मन्दिर बनेगा और शेष चारोंका चारों तरफ मन्दिर बनेगा । वे
साधकोंकी भावनाके अनुसार अलग-अलग हैं, पर
स्वरूपसे अलग-अलग नहीं हैं । मूलमें एक ही तत्त्व है । इसलिये
खूब प्रेमसे, आदरसे अपने साधन को किये जाओ । जो भी रूप सामने
आये, उसको माँका ही रूप मानो ।
श्रोता‒कामनाके रहते हुए परमात्माकी प्राप्ति हो सकती है
क्या ?
स्वामीजी‒साधक प्राप्तिके नजदीक पहुँच जाता है, और परमात्माकी कृपासे
कामना नष्ट हो जाती है । यह भक्तोंकी बात है ! ज्ञानमार्गमें
पहले अहंकारका नाश होता है, पीछे ममताका नाश होता है । भक्तिमार्गमें
पहले ममताका नाश होता है, पीछे कामनाका नाश होता है । यह गीतामें
आया है ।
श्रोता‒ भगवान्के हृदयमें
रहते हुए भी माया हमें
दबा देती है तो क्या
माया भगवान्से भी प्रबल है ?
स्वामीजी‒माया भगवान्से प्रबल नहीं है ।
आप ही इस मायाको स्वीकार करके इसको प्रबल बना देते हो । भगवान्से प्रार्थना करो तो ठीक हो जायगा ।
मान-बड़ाई और कनक-कामिनी‒यह खास माया है । कनककी अपेक्षा भी कामिनी विशेष है । आपने अपनेको मायाके वशमें
कर लिया । आप सुखके लिये मायाके वशमें हो जाते हैं । अच्छे-अच्छे साधकोंके लिये यह सुखासक्ति ही बाधक है ।
रो करके, हृदय खोल करके ‘हे नाथ ! हे मेरे
नाथ !’ पुकारो । ठीक हो जायगा ।
इसमें दस, बीस, पचीस अथवा चालीस वर्ष भी
लग जायँ तो भले ही लग जायँ पर अन्तमें विजय आपकी ही होगी, इसमें
सन्देह नहीं है । आपकी प्रार्थना कमजोर होगी तो ज्यादा दिन लगेंगे, और प्रार्थना जोरदार होगी तो जल्दी हो जायगा ।
सबके लिये सुखासक्ति ही बाधक है । सुखकी आसक्तिके कारण
ही साधन ठीक नहीं बनता । इससे ही बाधा लगती है ।
श्रोता‒मेरा बेटा तम्बाकू, पान-मसाला खाने
लग गया है, बुरी आदत पड़
गयी है, कहनेपर छोड़ता नहीं है ! अब क्या उपाय
करें ?
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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