(गत ब्लॉगसे आगेका)
कीर्तन अभ्याससे ऊँची चीज है । अभ्याससे परमात्माकी प्राप्ति
नहीं होती,
पर कीर्तनसे परमात्माकी प्राप्ति होती है‒‘कलौ तद्धरिकीर्तनात्’ ( श्रीमद्भा॰ १२ । ३ । ५२) । ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’‒यह उपासना है । भगवान्के साथ सम्बन्ध जोड़ लो तो वह उपासना
हो जायगी । मन लगाना, प्राणायाम करना, त्राटक
करना आदि सब अभ्यास है, जिससे विलक्षणता आ जायगी, पर मुक्ति नहीं होगी । भगवान्के साथ सम्बन्ध जोड़ोगे तो मुक्तिसे भी विशेष ‘भक्ति’
प्राप्त हो जायगी !
माँ मेरी है, पिता मेरा है, स्त्री
मेरी है‒इसका अभ्यास करते हो क्या ? यह
अभ्यास नहीं है, सम्बन्ध है । सम्बन्धमें बिना याद किये याद रहता
है । मेरा अमुक नाम है, अमुक जाति है‒इसको
भूलते हो क्या ? मैं ब्राह्मण हूँ, मैं साधु हूँ, मैं गृहस्थ
हूँ‒इसको भूलते हो क्या ? क्या इसका अभ्यास
किया है ? यह सम्बन्ध है, अभ्यास नहीं ।
सम्बन्ध तत्काल होता है और मिटानेपर भी मिटता नहीं । ‘हे
नाथ ! हे नाथ !’‒यह पुकार है । पुकार उपासनासे भी तेज होती है !
आर्त होकर पुकारे तो तत्काल सिद्धि होती है ।
श्रोता‒सुबह आपने बताया कि हमारा तीनों शरीरोंसे सम्बन्ध नहीं है
। इसका
अनुभव कैसे हो ?
स्वामीजी‒जिसका विवेक तेज होगा, उसको अनुभव होगा ।
विवेकसे वैराग्य हो जाता है और जड़ताका सम्बन्ध टूट जाता है ।
श्रोता‒हम शरीरसे
अलग हैं‒यह स्वीकार कर लिया, पर जब शरीरका
कोई अंग टूटता-फूटता
है, तब भयंकर दर्द होता है
! ऐसी स्थितिमें क्या करें
?
स्वामीजी‒दर्द होना और चीज है । एक दर्द होता
है, एक दुःख, घबराहट, चिन्ता होती है । दर्द तो शरीरके अंगमें होता
है, पर दुःख, घबराहट, चिन्ता हृदयमें होती है । देहाभिमान न रहनेपर शरीरमें
पीड़ा तो होगी, पर हृदयकी पीड़ा
मिट जायगी अर्थात् दुःख नहीं होगा । देहाभिमानीको जैसा दर्द होता है, वैसा दर्द देहाभिमान न रहनेपर नहीं होता ।
श्रोता‒शरीरका दर्द भी नहीं
हो‒ऐसी भी
स्थिति हो सकती है क्या
?
स्वामीजी‒ क्लोरोफार्म सूँघ लो
!! पर इसमें फायदा नहीं है !
यह नियम है कि जो चीज कम होनेवाली होती है, वह मिटनेवाली होती
है । जो मिटनेवाली नहीं होती, वह कम भी नहीं होती । दर्द कम होता
है तो इससे सिद्ध होता है कि वह मिटनेवाला है । सत्संग करनेवाले और सत्संग न करनेवाले‒दोनोंमें प्रत्यक्ष फर्क दीखता है । सत्संग करनेवालोंका अनुभव है कि पहले जितनी
चिन्ता होती थी, उतनी अब नहीं होती ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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