।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
  फाल्गुन कृष्ण पंचमी, वि.सं.-२०७४, सोमवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

कीर्तन अभ्याससे ऊँची चीज है । अभ्याससे परमात्माकी प्राप्ति नहीं होती, पर कीर्तनसे परमात्माकी प्राप्ति होती है‘कलौ तद्धरिकीर्तनात्’ ( श्रीमद्भा १२ । ३ । ५२) ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’यह उपासना है । भगवान्के साथ सम्बन्ध जोड़ लो तो वह उपासना हो जायगी । मन लगाना, प्राणायाम करना, त्राटक करना आदि सब अभ्यास है, जिससे विलक्षणता आ जायगी, पर मुक्ति नहीं होगी । भगवान्के साथ सम्बन्ध जोड़ोगे तो मुक्तिसे भी विशेष ‘भक्ति’ प्राप्त हो जायगी !

माँ मेरी है, पिता मेरा है, स्त्री मेरी हैइसका अभ्यास करते हो क्या ? यह अभ्यास नहीं है, सम्बन्ध है । सम्बन्धमें बिना याद किये याद रहता है । मेरा अमुक नाम है, अमुक जाति हैइसको भूलते हो क्या ? मैं ब्राह्मण हूँ, मैं साधु हूँ, मैं गृहस्थ हूँइसको भूलते हो क्या ? क्या इसका अभ्यास किया है ? यह सम्बन्ध है, अभ्यास नहीं । सम्बन्ध तत्काल होता है और मिटानेपर भी मिटता नहीं । ‘हे नाथ ! हे नाथ !यह पुकार है । पुकार उपासनासे भी तेज होती है ! आर्त होकर पुकारे तो तत्काल सिद्धि होती है ।

श्रोतासुबह आपने बताया कि हमारा तीनों शरीरोंसे सम्बन्ध नहीं है इसका अनुभव कैसे हो ?

स्वामीजीजिसका विवेक तेज होगा, उसको अनुभव होगा । विवेकसे वैराग्य हो जाता है और जड़ताका सम्बन्ध टूट जाता है ।

श्रोताहम शरीरसे अलग हैंयह स्वीकार कर लिया, पर जब शरीरका कोई अंग टूटता-फूटता है, तब भयंकर दर्द होता है ! ऐसी स्थितिमें क्या करें ?

स्वामीजीदर्द होना और चीज है । एक दर्द होता है, एक दुःख, घबराहट, चिन्ता होती है । दर्द तो शरीरके अंगमें होता है, पर दुःख, घबराहट, चिन्ता हृदयमें होती है । देहाभिमान न रहनेपर शरीरमें पीड़ा तो होगी, पर हृदयकी पीड़ा मिट जायगी अर्थात् दुःख नहीं होगा । देहाभिमानीको जैसा दर्द होता है, वैसा दर्द देहाभिमान न रहनेपर नहीं होता ।

श्रोताशरीरका दर्द भी नहीं होऐसी भी स्थिति हो सकती है क्या ?

स्वामीजी क्लोरोफार्म सूँघ लो !! पर इसमें फायदा नहीं है !

यह नियम है कि जो चीज कम होनेवाली होती है, वह मिटनेवाली होती है । जो मिटनेवाली नहीं होती, वह कम भी नहीं होती । दर्द कम होता है तो इससे सिद्ध होता है कि वह मिटनेवाला है । सत्संग करनेवाले और सत्संग न करनेवालेदोनोंमें प्रत्यक्ष फर्क दीखता है । सत्संग करनेवालोंका अनुभव है कि पहले जितनी चिन्ता होती थी, उतनी अब नहीं होती ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे