(गत ब्लॉगसे आगेका)
साधक विदेह, देहरहित ही होता है । देह छूटनेपर भी
साधन नहीं छूटता, प्रत्युत योगभ्रष्ट होकर पुनः साधनमें लग जाता
है (गीता ६ । ४१‒४४) । इसलिये अपने-आपको साधक मानो, शरीरको साधक
मत मानो । आप स्वयं साधक हैं, शरीर
साधक नहीं है । साधक स्वयं देहरहित, अवयवरहित, आकाररहित, निराकार रहता है । इसलिये साधकमें शरीरका मोह
नहीं रहना चाहिये । शरीरका मोह रहेगा तो काम, क्रोध, लोभ आदि भी रहेंगे । साधन तभी होगा, जब आप अपनेको निराकार मानेंगे । शरीरको अपना मानते
हुए साधन ठीक नहीं बनता । शरीर मैं नहीं है, शरीर मेरा नहीं है और शरीर मेरे लिये नहीं है । यह केवल संसारकी सेवाके लिये
ही है ।
देह तो मकानकी तरह है । जैसे आप मकानमें रहते हुए भी मकानसे
अलग हैं, ऐसे ही देहमें रहते
हुए आप देहसे अलग हैं । इतने दिन विचार नहीं किया, अब आप विचार
करो तो बात समझमें आ जायगी । पहले बात अटपटी लगती है, फिर धीरे-धीरे ठीक हो जाता है, साफ दीखने लगता है कि देह अलग है,
हम अलग हैं ।
कोई बालकसे जवान हो जाय तो रोते नहीं कि बालक मर गया ! अब वह पुनः बालक नहीं
होगा । ऐसे ही कोई जवानसे बूढ़ा हो जाय तो जवानी मर गयी ! ये अवस्थाएँ
तो सदा ही बदलती हैं । जब अवस्था बदलनेपर कोई रोता नहीं, फिर
मरनेपर क्या रोना ? बदलना तो संसारका स्वरूप है । शरीर वही नहीं
रहता, पर आप वही रहते हो । शरीर निरन्तर ही बदलता है और आप निरन्तर
ही रहते हो । दोनों एक साथ कभी रह सकते ही नहीं ! इस बातको स्वीकार
कर लो तो आप जीवन्मुक्त हो जाओगे, निहाल हो जाओगे !
शरीर आदि सब-के-सब जड़ पदार्थ
संसारकी सेवाके लिये हैं । सेवा करो चाहे नहीं करो, वे तो रहेंगे
नहीं । न धन रहेगा, न घर रहेगा, न कुटुम्ब
रहेगा, न प्रेमी रहेंगे । सच्ची बात है ! अतः इनको अपना नहीं मानना है‒इतना ही तो काम है !
सच्ची बात माननेमें क्या बाधा है ? समझमें नहीं
आये तो भी सच्ची बात मान लो, फिर साफ वैसा ही दीखने लग जायगा
। निहाल हो जाओगे ! मौज हो जायगी !
अब मेरा विचार व्याख्यान देनेका नहीं है । अब यही विचार
आया है कि साधन बताना है, और वही बता रहा हूँ । ऐसी बात आपको हर जगह मिलती है क्या ?
हमारेको तो मिली नहीं ! एक आदमीने कहा कि यह तो
आपकी कृपासे होगा तो मैंने कहा कि ठीक है, हमारी कृपासे हो जायगा
! दो और दो चार ही होते हैं, इसमें कृपाका
क्या लेना-देना ? जितनी आपकी तेज इच्छा
(लगन) होगी, उतना जल्दी अनुभव
होगा । जितनी बेपरवाह होगी, उतनी देरी लगेगी ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
|