।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
  फाल्गुन कृष्ण नवमी, वि.सं.-२०७४, शुक्रवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

साधक विदेह, देहरहित ही होता है । देह छूटनेपर भी साधन नहीं छूटता, प्रत्युत योगभ्रष्ट होकर पुनः साधनमें लग जाता है (गीता ६ । ४१४४) । इसलिये अपने-आपको साधक मानो, शरीरको साधक मत मानो । आप स्वयं साधक हैं, शरीर साधक नहीं है । साधक स्वयं देहरहित, अवयवरहित, आकाररहित, निराकार रहता है । इसलिये साधकमें शरीरका मोह नहीं रहना चाहिये । शरीरका मोह रहेगा तो काम, क्रोध, लोभ आदि भी रहेंगे । साधन तभी होगा, जब आप अपनेको निराकार मानेंगे । शरीरको अपना मानते हुए साधन ठीक नहीं बनता । शरीर मैं नहीं है, शरीर मेरा नहीं है और शरीर मेरे लिये नहीं है । यह केवल संसारकी सेवाके लिये ही है ।

देह तो मकानकी तरह है । जैसे आप मकानमें रहते हुए भी मकानसे अलग हैं, ऐसे ही देहमें रहते हुए आप देहसे अलग हैं । इतने दिन विचार नहीं किया, अब आप विचार करो तो बात समझमें आ जायगी । पहले बात अटपटी लगती है, फिर धीरे-धीरे ठीक हो जाता है, साफ दीखने लगता है कि देह अलग है, हम अलग हैं ।

कोई बालकसे जवान हो जाय तो रोते नहीं कि बालक मर गया ! अब वह पुनः बालक नहीं होगा । ऐसे ही कोई जवानसे बूढ़ा हो जाय तो जवानी मर गयी ! ये अवस्थाएँ तो सदा ही बदलती हैं । जब अवस्था बदलनेपर कोई रोता नहीं, फिर मरनेपर क्या रोना ? बदलना तो संसारका स्वरूप है । शरीर वही नहीं रहता, पर आप वही रहते हो । शरीर निरन्तर ही बदलता है और आप निरन्तर ही रहते हो । दोनों एक साथ कभी रह सकते ही नहीं ! इस बातको स्वीकार कर लो तो आप जीवन्मुक्त हो जाओगे, निहाल हो जाओगे !

शरीर आदि सब-के-सब जड़ पदार्थ संसारकी सेवाके लिये हैं । सेवा करो चाहे नहीं करो, वे तो रहेंगे नहीं । न धन रहेगा, न घर रहेगा, न कुटुम्ब रहेगा, न प्रेमी रहेंगे । सच्ची बात है ! अतः इनको अपना नहीं मानना हैइतना ही तो काम है ! सच्ची बात माननेमें क्या बाधा है ? समझमें नहीं आये तो भी सच्ची बात मान लो, फिर साफ वैसा ही दीखने लग जायगा । निहाल हो जाओगे ! मौज हो जायगी !

अब मेरा विचार व्याख्यान देनेका नहीं है । अब यही विचार आया है कि साधन बताना है, और वही बता रहा हूँ । ऐसी बात आपको हर जगह मिलती है क्या ? हमारेको तो मिली नहीं ! एक आदमीने कहा कि यह तो आपकी कृपासे होगा तो मैंने कहा कि ठीक है, हमारी कृपासे हो जायगा ! दो और दो चार ही होते हैं, इसमें कृपाका क्या लेना-देना ? जितनी आपकी तेज इच्छा (लगन) होगी, उतना जल्दी अनुभव होगा । जितनी बेपरवाह होगी, उतनी देरी लगेगी ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे