नववर्षकी शुभ कामनाएँ
विक्रम संवत-२०७५, श्रीकृष्ण संवत-५२४४
(गत ब्लॉगसे आगेका)
कुछ बातें हैं, जिनको आप ठीक समझ लो तो बहुत जल्दी पारमार्थिक
उन्नति हो सकती है, इसमें कोई सन्देह नहीं है । पहली बात है कि
एक तिल-जितनी, एक धागे-जितनी, एक केश-जितनी चीज भी अपनी नहीं है । इतना माननेसे आप निहाल हो जाओगे.....निहाल हो जाओगे.....निहाल हो जाओगे ! सदाके लिये शान्ति हो जायगी !
जो मिलती है और बिछुड़ जाती है, वह चीज अपनी होती ही नहीं । दूसरी बात, मेरेको कुछ नहीं चाहिये । ये दो बातें आप
मान लो तो बेड़ा पार हो जायगा !
बहुत वर्षों पहले मैंने यह बात कही थी कि पाँच-सात वर्ष और जी जाऊँगा
तो परमात्मप्राप्तिकी बहुत सुगम बात बता दूँगा । आज मैं सुगम बात बता रहा हूँ !
मेरा कुछ नहीं है और मेरेको कुछ नहीं चाहिये‒इन दो बातोंमें बड़ा भारी हित भरा हुआ है !
ये दो बातें आप कर सकते हो । आपको वहम है कि हम इसको नहीं कर सकते ।
इसको करनेमें आप सब योग्य हो, आपको अधिकार है, आपका दायित्व है, आपमें शक्ति है । केवल आपका पक्का विचार
होना चाहिये । उपाय कई हैं, पर ऐसा सुगम और अचूक उपाय दूसरा कोई
नहीं है ! यह रामबाण उपाय है, कभी निष्फल नहीं जाता ।
मेरा कुछ नहीं है और मेरेको कुछ नहीं चाहिये‒इन दो बातोंमें इतने
भाव भरे हुए हैं कि बड़े-बड़े ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं !
ये बातें बड़ी कठिन दीखती हैं, पर वास्तवमें बड़ी
सुगम हैं ! इनका पालन करनेमें भगवान् सन्त-महात्मा, शास्त्र और धर्म हमारी सहायता करनेके लिये तैयार
हैं । इनकी सहायतासे काम जल्दी होगा, इसमें सन्देह नहीं है ।
बहुत विचार करके सार बात आपको बतायी है ! थोड़े समयमें सुगमतासे
कल्याण हो जाय‒ऐसी युक्तियोंकी खोजमें मैं हृदयसे लगा हुआ हूँ
!
आप केवल स्वीकार कर लें कि हमारा कुछ नहीं है । आपके खाने-पीनेमें, चलने-फिरनेमें, कुटुम्बका पालन
करनेमें, नौकरी करनेमें, काम-धंधा करनेमें कोई बाधा नहीं लगेगी । साधु बनना नहीं, कहीं बाहर जाना नहीं । योग्यताकी, विद्याकी, पढ़ाईकी, बलकी जरूरत नहीं है । जो चीजें आपके पास नहीं
हैं, उन चीजोंकी भी जरूरत नहीं है । कोई युक्ति सीखनेकी जरूरत
नहीं है । किसीके पास जानेकी जरूरत नहीं है । आप जैसे हैं, वैसे ही केवल भीतरसे इसको स्वीकार कर लें कि मेरा
कुछ नहीं है और मेरेको कुछ नहीं चाहिये । अगर ‘मैं कुछ
नहीं’‒यह हो जाय तो उसी क्षण निहाल हो जाओगे ! गीताने कहा है‒‘निर्ममो निरहङ्कारः
स शान्तिमधिगच्छति’ (गीता २ । ७१)
।
श्रोता‒घरमें ठाकुरजीका मन्दिर है ।
भगवान्का मुख पूर्व दिशाकी ओर है । हम
बैठते हैं तो हमारा मुख पश्चिम दिशाकी ओर होता है ।
यह उचित है क्या ?
स्वामीजी‒कोई हर्ज नहीं । आप दिशा मत देखो, प्रत्युत यह देखो कि
मैं भगवान्के सम्मुख हूँ ।
श्रोता‒घरके सामने पीपलका पेड़ है, क्या करें ?
स्वामीजी‒शास्त्रमे इसका निषेध आता है । अपने
घरपर पीपलकी छाया पड़ना शुभ नहीं है । घर बदल देना चाहिये ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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