।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र शुक्ल सप्तमी, वि.सं.-२०७५, शनिवार
                   मैं नहीं, मेरा नहीं 



(गत ब्लॉगसे आगेका)

वासुदेवः सर्वम् का अनुभव करनेके लिये आपको खास यह जानना है कि मैं परमात्माका शुद्ध, निर्मल चेतन अंश हूँ, मेरेमें जड़ता नहीं है । इतनी बात आप स्वीकार कर लो, फिर सब ठीक हो जायगा । वासुदेवः सर्वम् का अनुभव हो, चाहे न हो, चिन्ता मत करो । इतना मान लो हम साक्षात् परमात्माके अंश हैं तो वासुदेवः सर्वम्का अनुभव हो जायगा । आपमें जड़ प्रकृतिका मिश्रण नहीं है । कृपा करके सब भाई-बहन कम-से-कम इतना स्वीकार कर लें कि मैं भगवान्‌का हूँ ।

श्रोताबाहरी व्यवहारमें क्या फर्क पड़ेगा ?

स्वामीजीराग-द्वेषरहित बर्ताव होगा । राग-द्वेष, हर्ष-शोक, दुःख, सन्ताप, जलन, हलचल आदि नहीं होंगे । शान्ति, आनन्द होगा । मैं भी भगवान्‌का हूँ, संसार भी भगवान्‌का हैइतनी बात मान लो । फिर भगवान्‌में ही लीन हो जाओ । आपकी जगह भी भगवान् ही रह जायँ । भगवान्‌को कह दो कि मेरी जगह भी आप ही आ जाओ । पूर्णता हो जायगी !

श्रोतामैं भगवान्‌का हूँयह सूक्ष्म अहम्‌ तो रहता ही है !

स्वामीजीरहने दो, कोई हर्ज नहीं है । उसकी पंचायती मत करो । रामायणमें लिखा है

अस अभिमान जाइ जनि भोरे ।
मैं  सेवक  रघुपति  पति मोरे ॥
                        (मानस, अरण्य ११ । ११)

मैं परमात्माका हूँयह समझमें नहीं आये तो भी मान लो, समझमें आये तो भी मान लो ।

श्रोताएक तो यह बात है कि मैं परमात्माका हूँ और मेरा कोई नहीं है दूसरी बात है कि केवल परमात्मा-ही-परमात्मा हैं, मैं हूँ ही नहीं कौन-सी बात मानें ?

स्वामीजीपहली बात मान लो तो दूसरी बात उसका फल होगा । पहले यह मान लो कि मैं परमात्माका हूँ, फिर इसका फल यह होगा कि केवल परमात्मा ही रह जायँगे, आप नहीं रहोगे ।

श्रोताजब सब संसार ईश्वररूप ही है तो फिर यह बात हमारे माननेमें क्यों नहीं आती ?

स्वामीजीमाननेमें इसलिये नहीं आती कि आप संसारका सुख भोगते हो, सुख छोड़ते नहीं, इसलिये यह बात समझमें नहीं आती । जबतक आपको अनुकूलता अच्छी लगती है और प्रतिकूलता बुरी लगती है, तबतक यह बात समझमें नहीं आती ।

संसारका सुख भोगनेमें फायदा नहीं है और नुकसान बड़ा भारी है ! साधकको सबसे पहले ही यह मान लेना चाहिये कि संसारका सुख नहीं भोगना है । सांसारिक चीजोंसे सुखी नहीं होना है । मैं भगवान्‌का हूँ और संसारका सुख नहीं भोगना हैयह दो बात मान लो । आपका सब काम ठीक हो जायगा !

श्रोतासंसारका सुख भोगनेकी आदत पड़ी हुई है, यह कैसे छूटे ?

स्वामीजीभगवान्‌से प्रार्थना करो कि ‘हे मेरे नाथ ! बचाओ !’ । भगवान्‌के समान बलवान् कोई नहीं है । वे जरूर बचाते हैं, इसमें सन्देह नहीं है । भगवान्‌के आगे रोओ और कहो कि ‘हे नाथ ! मैं छोड़ना चाहता हूँ पर मेरेसे सुख छूटता नहीं !’ फिर सब काम ठीक हो जायगा !

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे