(गत ब्लॉगसे आगेका)
‘वासुदेवः सर्वम्’ का अनुभव करनेके लिये
आपको खास यह जानना है कि मैं परमात्माका शुद्ध, निर्मल चेतन अंश
हूँ, मेरेमें जड़ता नहीं है । इतनी बात आप स्वीकार कर लो, फिर
सब ठीक हो जायगा । ‘वासुदेवः सर्वम्’
का अनुभव हो, चाहे न हो, चिन्ता मत करो । इतना मान लो हम साक्षात् परमात्माके
अंश हैं तो ‘वासुदेवः
सर्वम्’ का अनुभव हो जायगा । आपमें
जड़ प्रकृतिका मिश्रण नहीं है । कृपा करके सब भाई-बहन कम-से-कम इतना स्वीकार कर लें कि मैं भगवान्का हूँ ।
श्रोता‒बाहरी व्यवहारमें क्या फर्क पड़ेगा
?
स्वामीजी‒राग-द्वेषरहित बर्ताव होगा । राग-द्वेष, हर्ष-शोक, दुःख, सन्ताप, जलन, हलचल आदि नहीं होंगे । शान्ति, आनन्द होगा । मैं भी भगवान्का हूँ, संसार भी भगवान्का है‒इतनी बात मान लो । फिर भगवान्में ही लीन हो जाओ
। आपकी जगह भी भगवान् ही रह जायँ । भगवान्को कह दो कि मेरी जगह भी आप ही आ जाओ । पूर्णता
हो जायगी !
श्रोता‒मैं भगवान्का हूँ‒यह सूक्ष्म अहम् तो रहता
ही है !
स्वामीजी‒रहने दो, कोई हर्ज नहीं है ।
उसकी पंचायती मत करो । रामायणमें लिखा है‒
अस अभिमान जाइ जनि भोरे ।
मैं सेवक रघुपति
पति मोरे ॥
(मानस,
अरण्य॰ ११ । ११)
मैं परमात्माका हूँ‒यह समझमें नहीं आये तो भी मान लो,
समझमें आये तो भी मान लो ।
श्रोता‒एक तो यह बात है
कि मैं परमात्माका हूँ और
मेरा कोई नहीं है ।
दूसरी बात है कि केवल
परमात्मा-ही-परमात्मा हैं,
मैं हूँ ही नहीं । कौन-सी बात मानें
?
स्वामीजी‒पहली बात मान लो तो दूसरी बात उसका
फल होगा । पहले यह मान लो कि मैं परमात्माका हूँ, फिर इसका फल यह होगा कि केवल परमात्मा
ही रह जायँगे,
आप नहीं रहोगे ।
श्रोता‒जब सब संसार ईश्वररूप ही है तो फिर
यह बात हमारे माननेमें क्यों नहीं आती ?
स्वामीजी‒माननेमें इसलिये नहीं आती कि आप संसारका
सुख भोगते हो,
सुख छोड़ते नहीं, इसलिये यह बात समझमें नहीं आती
। जबतक आपको अनुकूलता अच्छी लगती है और प्रतिकूलता बुरी लगती
है, तबतक यह बात समझमें नहीं
आती ।
संसारका सुख भोगनेमें फायदा नहीं है और नुकसान बड़ा भारी
है ! साधकको सबसे पहले ही
यह मान लेना चाहिये कि संसारका सुख नहीं भोगना है । सांसारिक चीजोंसे सुखी नहीं होना
है । मैं भगवान्का हूँ और संसारका सुख नहीं भोगना है‒यह दो बात मान लो । आपका सब काम ठीक हो जायगा !
श्रोता‒संसारका सुख भोगनेकी आदत पड़ी
हुई है, यह कैसे छूटे ?
स्वामीजी‒भगवान्से प्रार्थना करो कि ‘हे मेरे
नाथ ! बचाओ !’ । भगवान्के समान बलवान् कोई नहीं है । वे जरूर बचाते हैं, इसमें सन्देह नहीं है । भगवान्के आगे रोओ और कहो कि ‘हे नाथ ! मैं छोड़ना चाहता हूँ पर मेरेसे सुख छूटता नहीं !’ फिर
सब काम ठीक हो जायगा !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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