।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
अधिक ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी, 
                 वि.सं.-२०७५, सोमवार
 अनन्तकी ओर     


प्रकृति कभी क्रियारहित होती ही नहीं । प्रकृति तथा उसके कार्यमें निरन्तर क्रिया होती है, पर परमात्मा सर्वथा क्रियारहित है । प्रकृति अस्वाभाविक है, पर परमात्मा स्वाभाविक है । मैं-मेरापन प्रकृतिका विभाग है । उस परमात्माकी प्राप्तिमें क्रिया और पदार्थ कारण नहीं हैं । क्रिया और पदार्थसे रहित होते ही परमात्माकी प्राप्ति हो जायगी । क्रिया और पदार्थ परमात्मप्राप्तिमें बाधक हैं । यह जरा गहरी बात है ! इसलिये आप है’ को पकड़े । है’ में स्थित हो गये तो आप परमात्मामें स्थित हो गये । उस है’ को पकड़नेके लिये आप निष्क्रिय हो जायँ । वास्तवमें उस है’ में मात्र प्राणियोंकी स्वतःसिद्ध स्थिति है, पर उधर ध्यान नहीं है ।

प्रत्येक क्रिया है’ से अर्थात् अक्रियतासे पैदा होती है । वह है’ स्वतः-स्वाभाविक है । वह कृत्रिम, बनावटी नहीं है । उसमें अहंकार नहीं है । सभी संकल्प है’ से पैदा होते हैं । प्रत्येक कार्यका आरम्भ है’ से होता है और कार्य समाप्त होनेपर है’ ही रहता है । अतः है’ सबके मूलमें है । है’ अखण्ड रहता है । क्रियाके समय भी है’ रहता है । परन्तु हमारा ध्यान क्रियाकी तरफ रहता है, ‘है’ की तरफ नहीं । वह है’ साक्षात् परमात्माका स्वरूप है । इस बातको हृदयमें जमा लो ।

आप हरदम शान्त रहनेका स्वभाव बना लो । काम-धन्धा किया, फिर शान्त ! संकल्प उठा, फिर शान्त ! सुननेसे पहले शान्त और सुननेके बाद फिर शान्त ! सुननेसे पहले शान्त होनेसे आपको सुननेकी शक्ति मिलेगी और सुननेके बाद शान्त होनेसे सुनी हुई बात तत्त्वसे समझमें आयेगी । शान्त रहनेका स्वभाव बना लोगे तो आपकी स्थिति परमात्मामें हो जायगी । गलती यह होती है कि जल्दी-जल्दी एकके बाद दूसरा काम करनेसे बीचमें शान्तिका अनुभव नहीं होता । जैसे, झूला झूलता है तो आगे-पीछे जाते समय वह समता (सम स्थिति)-में आता ही है अर्थात् जहाँसे झूलेकी रस्सी बँधी है, उसकी सीधमें एक बार आता ही है । इसी तरह प्रत्येक क्रिया करते समय समता (अक्रिय अवस्था) आती ही है । परन्तु उस समताका पता नहीं चलता, उस तरफ ख्याल नहीं जाता । तात्पर्य है कि झूलेकी तरह निरन्तर क्रियामें लगे रहनेसे परमात्मामें स्थिति होते हुए भी आपको इसका अनुभव नहीं होता ।


शान्ति स्वतःसिद्ध है । अगर मनको एकाग्र करोगे, ध्यानमें लगाओगे तो आपको उद्योग करना पड़ेगा । उद्योग करनेसे क्रिया और पदार्थके साथ सम्बन्ध होगा । क्रिया और पदार्थके साथ सम्बन्ध होनेसे आप प्रकृतिमें ही रहोगे । मैं शान्त रहूँगा, मैं क्रिया नहीं करूँगा, मैं चिन्तन नहीं करूँगा’यह भाव रहेगा तो अहंकार आयेगा । अहंकार आयेगा तो प्रकृतिके साथ सम्बन्ध होगा । इसलिये आप है’ को पकड़ लो । उसमें आपकी स्थिति स्वतः-स्वाभाविक है । वह है’ परमात्मा है और आप सब उसके अंश हो । इसलिये आपमें समता स्वाभाविक है । समता करोगे तो अहंकार, कर्तृत्वाभिमान आयेगा ।