।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
शुद्ध ज्येष्ठ चतुर्थी, 
                 वि.सं.-२०७५, रविवार
 अनन्तकी ओर     


परमात्माको है’ माननेमें मतभेद नहीं होता । कारण कि है’ में सब एक हो जाते हैं, कोई भेद नहीं रहता । वास्तविक सत्ता एक ही है, जो है’-रूपसे है । वह है’ मेरा है, संसार मेरा नहीं है‒यह खास बात है । मेरी आप सब भाई-बहनोंसे प्रार्थना है कि उस है’ में स्थित हो जायँ ।

हमारा स्वरूप भी है’रूप ही है; क्योंकि हम उस है’ के ही अंश हैं । अंश और अंशी एक ही होते हैं, दो नहीं होते । जैसे घटाकाश और मठाकाशमें भेद नहीं होता (घड़ा और मकान तो अलग-अलग हैं, पर उनमें स्थित आकाश एक ही है), ऐसे ही है’ में भेद नहीं होता । उसमें आप स्थित हो जाओ, यह बहुत उत्तम चीज है !

अहं ब्रह्मास्मि’ मैं ब्रह्म हूँ’यह अहंकार है । यह तत्त्व नहीं है, प्रत्युत उपासना है ।

अगर आप ध्यान करना चाहें तो एकान्तमें बैठ जायँ और ऐसा ध्यान करें कि एक परमात्मा है; यह संसार नहीं है’ । उस है’में स्थित हो जायँ । इससे शान्ति मिलेगी । दुःख मिट जायगा । वास्तवमें उस है’ में आपकी स्थिति स्वतः है । संसारका तो हरदम त्याग हो रहा है । यह कोई नयी बात नहीं है । आप अपनेको देखो तो आप वही हो, जो बालकपनमें थे, पर शरीर वह नहीं है, जो बालकपनमें था । शरीर तो हरदम बदलता है, पर आप कभी बदलते नहीं । उस कभी न बदलनेवाली सत्तामें आप स्थित रहो । अगर ऐसा आपसे नहीं हो सके तो मन जहाँ-जहाँ जाय, वहाँ-वहाँसे हटाकर उसे है’ में लगाओ । स्फुरणाओंको हटानेके लिये पहले श्‍वास और आँखकी दो क्रियाएँ बतायी थीं, अब दूसरा सुगम उपाय बताता हूँ । जब भी कोई स्फुरणा आये तो जीभ हिलाकर ना’ कहो । ऐसा करते ही स्फुरणा कट जायगी । कितना सुगम उपाय है ! जैसे, सत्संगमें किसी आदमीको नींद आती हो तो उसके सामने जीभ हिलाते हुए ना’ कहो तो उसकी नींद उड़ जायगी ! बालक रोता हो तो उसके सामने जीभ और अँगुली हिलाते हुए ना’ इशारा करो तो वह चुप हो जायगा ।

श्रोता‒जिस समय कीर्तन होता है, उस समय आप भगवान्‌को प्रकट कर दें तो हम सब दर्शन कर लें !

स्वामीजी‒मैं अपनेमें ऐसी ताकत नहीं मानता । मैं ऐसी शक्ति ही नहीं मानता कि भगवान्‌को प्रकट कर दूँ । जसीडीहकी बात है । सेठ श्रीजयदयालजी गोयन्दकाके सामने भगवान् प्रकट हुए । पूरी संख्या मेरेको याद नहीं है, शायद पन्द्रह-बीस आदमी मौजूद थे । सेठजीने भगवान्‌से प्रार्थना की कि आप सबको दर्शन दे दो । भगवान्‌ने उत्तर दिया कि सब दर्शन चाहते नहीं, कैसे दे दूँ ! जयदयाल कहे तो दर्शन दे दूँ !’ सेठजीने कहा कि मैं क्यों कहूँ ? जिनको गरज नहीं है, उनको दर्शन देनेके लिये मैं क्यों कहूँ ? मैं तो यह कहता हूँ कि हम कीर्तन कर सकते हैं !


जब दर्शन देनेकी शक्ति रखनेवाले भी ऐसा कहते हैं, फिर मेरेमें तो मैं ऐसी शक्ति ही नहीं मानता कि भगवान्‌को प्रकट कर दूँ !