।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
शुद्ध ज्येष्ठ पंचमी, 
                 वि.सं.-२०७५, सोमवार
 अनन्तकी ओर     


भगवान्‌के सिवाय कोई अपना नहीं है । वे सदा हमारे साथ रहनेवाले हैं । अपना वही होता है, जो कभी बिछुड़ता नहीं । जो मिलता है और बिछुड़ जाता है, वह अपना नहीं होता । भगवान्‌को अपना मान लो तो जरूर प्रेम हो जायगा; क्योंकि प्रेम’ भजन, ध्यान, जप, त्याग, तपस्या आदिसे नहीं होता, प्रत्युत अपनेपनसे होता है । अपनी फटी जूती, फटा कपड़ा भी अच्छा लगता है । माँको काला-कलूटा बालक भी अपना अच्छा लगता है ।

भगवान् कहते हैं‒‘समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः’ (गीता ९ । २९) मैं सम्पूर्ण प्राणियोंमें समान हूँ । न तो कोई मेरा द्वेषी है और न कोई प्रिय है ।’ पापी-से-पापी भी भगवान्‌को अप्रिय नहीं है । भगवान् उसका भी हित करनेवाले हैं; क्योंकि वे प्राणिमात्रके सुहद् हैं‒‘सुहृदं सर्वभूतानाम्’ (गीता ५ । २९) । वे दुनियामात्रका पालन करते हैं ।

भगवान् ब्रह्मारूपसे सबको उत्पन्न करते हैं, विष्णुरूपसे सबका पालन करते हैं, और शिवरूपसे सबका संहार करते हैं । आप परिवार-नियोजन करते हैं तो यह बड़ा भारी अन्याय है ! बड़ा भारी पाप है ! इसका नतीजा आपके लिये बड़ा भयंकर होगा ! यह महान् कलियुगकी लीला है ! परिवार-नियोजन करनेवाले कलियुगके चेले हैं, कलियुगके एजेण्ट हैं, कलियुगके बेटा-बेटी हैं ! इस अन्यायके फलस्वरूप आपको दुःख पाना ही पड़ेगा, बच सकते नहीं ! इस महान् पापसे बचो और दूसरोंको बचाओ ।

परमात्मप्राप्तिके अनेक रास्ते हैं । पर सबसे बढ़िया रास्ता है‒भगवान्‌की शरणागति । इसको गीतामें भगवान्‌ने सर्वगुह्यतमम्’ (सबसे अत्यन्त गोपनीय) साधन बताया है (गीता १८ । ६४) । यह शरणागति तब सिद्ध होती है, जब आप यह मान लेते हैं कि हम संसारके नहीं हैं । यह आपके अधीन है, दूसरेके अधीन नहीं । भगवान्‌के शरण होनेपर संसारका काम इतना बढ़िया होगा कि कह नहीं सकते ! बहुत बढ़िया, सुचारुरूपसे काम होगा । कोई कमी नहीं आयेगी । आपका कल्याण भी हो जायगा, इसमें कोई सन्देह नहीं ! केवल यह भाव बदलना है कि हम यहाँके नहीं हैं, हम भगवान्‌के हैं ।

कई आदमियोंको ऐसा वहम है कि परमात्माकी तरफ चलेंगे तो घरका काम बिगड़ जायगा । परन्तु मैं ऐसा नहीं मानता । संसारका काम तो संसारमें घुलने-मिलनेसे बिगड़ता है, पर भगवान्‌का काम भगवान्‌में नहीं घुलने-मिलनेसे बिगड़ता है । संसारके साथ घुल-मिलकर आप संसारको नहीं जान सकते, और परमात्मासे घुले-मिले बिना आप परमात्माको नहीं जान सकते‒यह अकाट्य नियम है । इसे याद कर लो । कारण कि आप सदासे ही परमात्माके हो, संसारके नहीं हो । परमात्मासे घुल-मिल जाओगे तो संसारका बन्धन तो छूट जायगा, पर काम-धन्धा बढ़िया, सुचारुरूपसे होगा । एक बारीक बात है कि केवल कर्तव्य समझकर संसारका काम किया जाय तो काम बढ़िया होता है और बन्धन भी नहीं होता ।