।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
शुद्ध ज्येष्ठ षष्ठी, 
                 वि.सं.-२०७५, मंगलवार
 अनन्तकी ओर     


जैसे आप माँको नहीं जानते, पर माँ आपको जानती है, आप पिताको नहीं जानते, पर पिता आपको जानते हैं, ऐसे ही आप भगवान्‌को नहीं जानते, पर भगवान् आपको जानते हैं । आप भगवान्‌को मानते हो, पर भगवान् आपको जानते हैं । आप संसारको मानते हो, जानते नहीं । अगर आप संसारको जान लो तो संसारसे वैराग्य हो ही जायगा और भगवान्‌से प्रेम हो ही जायगा‒यह पक्‍का नियम है । आप भगवान्‌के शरण हो जाओ तो आपके द्वारा बड़ा भारी उपकार होगा, संसारमात्रकी सेवा करनेका फल होगा । उतना उपकार कोई अरबों-खरबों रुपये खर्च करके भी नहीं कर सकता ! भगवान्‌के शरणागत हुए सन्त-महात्माओंके द्वारा संसारका जो हित होता है, वैसा हित संसारमें घुला-मिला व्यक्ति कभी कर सकता ही नहीं । आज ही सब भाई-बहन स्वीकार कर लें कि हम भगवान्‌के हैं !

वास्तवमें आप संसारसे अलग ही थे और अलग हो जाओगे, इसमें किंचिन्मात्र भी सन्देह नहीं है । एक दिन सब संसार छूट जायगा, पर छूटनेपर फायदा नहीं होगा । आप छोड़ दो तो निहाल हो जाओगे ! इतना लाभ होगा कि हम बता नहीं सकते ! इससे दुनियामात्रका उपकार होगा । परन्तु आप संसारमें फँस जाओगे तो दुःख पाओगे और दुनियाको भी दुःख दोगे । दुःखी आदमी ही दूसरेको दुःख देता है । सुखी आदमी दूसरेको दुःख नहीं देता ।

आप भगवान्‌के शरण होकर निश्‍चिन्त हो जाओ । शरण होनेपर कुछ भी करना नहीं है । काम करेंगे भगवान् और आप बैठे मौज करोगे ! जैसे, छोटा बालक मौज करता है, काम-धन्धा माँ करती है ! बच्‍चा बीमार हो जाय तो दवाई भी माँ लेती है ! भगवान् खुद कहते हैं कि सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त मैं करूँगा, तू चिन्ता मत कर‒‘अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः’ (गीता १८ । ६६) । सब काम भगवान् करें, इससे बढ़कर क्या चाहिये ? इसलिये भीतरसे भगवान्‌को अपना मान लें कि हे नाथ ! मैं आपका हूँ’ । भगवान् बहुत मदद करेंगे और कोई एहसान भी नहीं मानेंगे । अपने बालकका पालन करनेमें माँ क्या एहसान करती है ?

श्रोता‒भगवन्नाम-जपमें जप-संख्याकी प्रधानता है या ध्यानकी ?

स्वामीजी‒ध्यानकी प्रधानता है । संख्याकी बात इसलिये कहते हैं कि नाम-जप कम न हो जाय । ध्यानकी अपेक्षा भी हृदयके भावकी प्रधानता है । भगवान्‌का नाम लेते ही हृदय द्रवित हो जाय, नेत्रोंमें आँसू आ जायँ, शरीरमें रोमांच हो जाय ! गोस्वामीजी कहते हैं‒

हिय फाटहुँ फूटहुँ नयन जरउ सो तन केहि काम ।
 द्रवहिं स्रवहिं पुलकइ  नहीं तुलसी सुमिरत राम ॥
                                                     (दोहावली ४१)

भगवान् रामका स्मरण करके जो हृदय पिघल नहीं जाते, वे हृदय फट जायँ, जिन आँखोंसे प्रेमके आँसू नहीं बहते, वे आँखें फूट जायँ और जिस शरीरमें रोमांच नहीं होता, वह शरीर जल जाय !’

वास्तवमें प्रेमकी प्रधानता है । भगवान्‌का नाम मीठा लगना चाहिये ।