वस्तुके उत्पन्न होते ही उसके नाशका
क्रम (परिवर्तन) आरम्भ हो जाता है । जैसे, जमीनमें बीज डालते हैं तो पहले मिट्टी-पानीके संयोगसे बीज कुछ फूलता है । फिर वह
फूटता है तो उसमेंसे अंकुर निकलता है । अंकुरसे फिर दो पत्तियों निकलती हैं । फिर वह
बढ़कर पौधा बनता है । पौधा बढ़ते-बढ़ते वृक्ष बनता है । फिर वह वृक्ष भी धीरे-धीरे पुराना
होकर अन्तमें गिर जाता है । तात्पर्य है कि बीजके बढ़नेसे लेकर वृक्ष बननेतक उसमें निरन्तर
परिवर्तन हुआ है । ऐसे ही स्त्री गर्भधारण करती है तो गर्भमें पहले एक पिण्ड बनता है
। फिर उसके बढ़नेपर उसमेंसे वृक्षकी शाखाओंकी तरह एक सिर, दो हाथ और दो पैर निकलते हैं । फिर आँख, कान, नाक आदि नौ छिद्र बनते हैं । फिर हृदय
आदिका निर्माण होते-होते नवें मासमें वह सम्पूर्ण अंगोंसे युक्त होकर गर्भाशयसे बाहर
आता (जन्म लेता) है । जन्मके बाद वह प्रतिक्षण बढ़ता रहता है । जन्मसे लेकर दो वर्षतक
उसकी ‘शिशु’-अवस्था होती है । दोसे पाँच वर्षतक
उसकी ‘कुमार’-अवस्था होती है । पाँचसे दस वर्षतक उसकी ‘पौगण्ड’-अवस्था होती है । दससे
पन्द्रह वर्षतक उसकी ‘किशोर’-अवस्था होती है । पन्द्रहसे तीस वर्षतक उसकी ‘युवा’-अवस्था
होती है । तीससे पचास वर्षतक उसकी ‘प्रौढ़’-अवस्था होती है । पचास वर्षसे आगे उसकी ‘वृद्ध’-अवस्था
होती है[1] । फिर उसकी मृत्यु हो जाती है । मृत्युके बाद सूक्ष्म-शरीर
तथा कारण-शरीर‒दोनोंको लेकर जीव परलोकगमन करता है और स्थूलशरीर यहीं पड़ा रह जाता है
। उस स्थूलशरीरमें अनेक विकार (फूलना, सड़ना आदि) होने लगते हैं । उसको जलानेसे वह राख बन जाता है, पशु-पक्षियोंके खानेसे वह विष्ठा बन जाता है और जमीनमें
गाड़नेसे वह कृमि बन जाता है ।
तात्पर्य यह हुआ कि गर्भसे लेकर अन्ततक
शरीरमें निरन्तर परिवर्तन होता है । उत्पन्न होते ही उसमें विनाशकी क्रिया आरम्भ हो
जाती है । इसलिये जन्म लेनेके बाद बालक बड़ा होगा कि नहीं होगा, पढ़ेगा कि नहीं पढ़ेगा, व्यापार आदि कार्य करेगा कि नहीं करेगा, डॉक्टर, इंजीनियर आदि बनेगा कि नहीं बनेगा, विवाह करेगा कि नहीं करेगा, उसकी सन्तान होगी कि नहीं होगी आदि सब बातोंमें सन्देह
रहता है, पर वह मरेगा कि नहीं मरेगा‒इस बातमें कोई सन्देह नहीं
रहता; क्योंकि यह निरन्तर मर रहा है ।
[1] स्त्रीकी अवस्था जन्मसे लेकर दो वर्षतक
‘बालिका’ दोसे पाँच वर्षतक ‘कुमारी’, पाँचसे दस वर्षतक ‘कन्या’ [ इसमें भी आठवें वर्षमें ‘गौरी’ और नवें वर्षमें ‘रोहिणी’ ], दससे पन्द्रह वर्षतक ‘किशोरी’ या ‘मुग्धा’, पन्द्रहसे तीस वर्षतक ‘युवती’, तीससे पचास वर्षतक ‘प्रौढ़ा’ और पचाससे आगे ‘वृद्धा’ कहलाती है ।
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