।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
आश्विन पूर्णिमा, वि.सं.–२०७५, बुधवार
शरत्पूर्णिमा, महर्षि वाल्मिकी-जयन्ती
कार्तिक-स्नानारम्भ
  करणसापेक्ष-करणनिरपेक्ष साधन
और करणरहित साध्य



इस प्रकार संसारमात्रमें कोरा परिवर्तन-ही-परिवर्तन है । ऐसा कोई वर्ष नहीं, जिसमें परिवर्तन न होता हो । ऐसा कोई महीना नहीं, जिसमें परिवर्तन न होता हो । ऐसा कोई दिन नहीं, जिसमें परिवर्तन न होता हो । ऐसा कोई घंटा नहीं, जिसमें परिवर्तन न होता हो । ऐसा कोई मिनट नहीं, जिसमें परिवर्तन न होता हो । ऐसा कोई सेकेंड नहीं, जिसमें परिवर्तन न होता हो । जैसे नदी निरन्तर बहती ही रहती है, एक क्षणके लिये भी रुकती नहीं, ऐसे ही संसारके नाशका प्रवाह निरन्तर चलता रहता है, एक क्षणके लिये भी रुकता नहीं ।

वास्तवमें संसारका प्रवाह नदीके प्रवाहसे अथवा विद्युत्‌की गतिसे भी तेज है, जिसमें नदीका प्रवाह भी प्रवाहित हो रहा है तथा विद्युत्‌की गति भी गतिशील हो रही है ! नदीके किनारे खड़े एक सन्तने कहा कि जैसे नदी बह रही है, ऐसे ही पुलपर आदमी बह रहे हैं । दूसरे सन्त बोले कि आदमी ही नहीं, खुद पुल भी बह रहा है ! कैसे ? जिस दिन यह पुल बना, उस दिन यह जैसा नया था, वैसा आज नया नहीं है और जैसा आज है, वैसा आगे नहीं रहेगा, प्रत्युत पुराना होकर एक दिन गिर जायगा । तात्पर्य यह हुआ कि इसमें प्रतिक्षण परिवर्तन हो रहा है, यह निरन्तर अभावमें जा रहा है ।

प्रत्येक देश (स्थान) का पहले भी अभाव था, पीछे भी अभाव हो जायगा और अब भी निरन्तर अभाव हो रहा है । प्रत्येक वर्ष, महीना, पक्ष, वार, तिथि, नक्षत्र, घंटा, मिनट, सेकेंड आदिका तथा भूत, भविष्य और वर्तमान कालका प्रतिक्षण परिवर्तन होता रहता है । प्रत्येक वस्तु परिवर्तनका पुंज है । प्रत्येक व्यक्ति जन्मसे पहले भी नहीं था, मृत्युके बाद भी नहीं रहेगा तथा बीचमें भी प्रतिक्षण मृत्युकी ओर जा रहा है । जाग्रत्, स्वप्त, सुषुप्ति, मूर्च्छा और समाधि-अवस्था तथा बालक, जवान और वृद्धावस्था आदि सम्पूर्ण अवस्थाओंका प्रतिक्षण अभाव हो रहा है । एक क्षण पहले जैसी अवस्था थी, दूसरे क्षणमें वैसी अवस्था नहीं रहती । अनुकूल, प्रतिकूल तथा मिश्रित‒कोई भी परिस्थिति निरन्तर नहीं रहती । परिस्थितिमात्रका निरन्तर अभाव हो रहा है । प्रत्येक सुखदायी तथा दुःखदायी घटनाका निरन्तर अभाव हो रहा है । जन्म-मरण, संयोग-वियोग आदि कोई भी घटना टिकती नहीं । कोई भी क्रिया निरन्तर नहीं रहती । प्रत्येक क्रियाका आदि और अन्त होता है । तात्पर्य है कि प्रत्येक देश, काल, वस्तु, व्यक्ति, अवस्था, परिस्थिति, घटना और क्रियामें निरन्तर परिवर्तन हो रहा है । परन्तु इस परिवर्तनको जो जाननेवाला है, वह अपरिवर्तनशील तत्त्व है । कारण कि जो बदलता है, वह बदलनेवालेको नहीं जान सकता । जो नहीं बदलता, वही बदलनेवालेको जान सकता है ।