एक अन्धा बूढ़ा आदमी अपने पोतेके कन्धेपर हाथ रखकर भगवान् शंकरके मन्दिरमें
नित्यप्रति नियमसे जाता था । एक दिन एक भाईने उससे पूछा‒ ‘बाबा ! आप यहाँ क्यों
आते हो ?’ उसने उत्तर दिया‒‘भगवान्के दर्शन करनेके लिये ।’ ‘बाबा ! आपको आँखोंसे
कुछ सूझता है क्या ?’ उसके ऐसा पूछनेपर उत्तर दिया कि ‘नहीं’ । ‘यदि नहीं दीखता तो
भगवान्के दर्शन कैसे करोगे ?’ इसपर उस वृद्ध सज्जनने उत्तर दिया कि ‘यदि मेरे नेत्र नहीं हैं तो भगवान् शंकरके भी नेत्र नहीं हैं
क्या ? उन्होंने मुझे देख लिया तो बस, मेरा
काम हो गया ।’ इसी तरह यदि हम परमात्माको नहीं जानते तो परमात्मा भी हमें
नहीं जानते ? वे हमें अवश्य जानते हैं । अतः हमें परमात्माकी शरण होना है । यह शरण
होना बड़ी भारी साधना है । इस साधनाको वे ही मनुष्य काममें ला सकते हैं, जिनको अपनी
विद्याका, बुद्धिका अभिमान नहीं है और भगवान्पर विश्वास है । मनुष्य अपनी विद्या,
बुद्धिके अभिमानमें आकर ऐसा कहता है कि हम यूँ कर लेंगे । भैया, करके देख लो ।
चारों वेद ढँढोरके अंत कहोगे
राम ।
सो रज्जब पहले कहो एते ही में काम ॥
सज्जनो ! अन्तमें शरण होना ही पड़ेगा और तभी काम बनेगा । इसलिये अभीसे शरण हो जाओ । खोज करो, उद्योग करो, अपनी पूरी
बुद्धि लगाओ‒इसकी मनाई नहीं है । भगवान् कहते हैं कि सम्पूर्ण कर्म सदा करते हुए
भी मेरा आश्रय लेनेवाला मेरी कृपासे शाश्वत, अविनाशी पद-रूप परमात्माको पा जाता है
(गीता १८/५६) । मेरा आश्रय लेकर यत्न करनेवाला जन्म-मरणसे छूट जाता है (गीता ७/२९)
। इसलिये प्रभुकी शरण लेना ही उत्तम है । गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज तो कहते हैं‒
बिगरी जनम अनेक की
सुधरे अब ही आज ।
होय राम को नाम जप तुलसी तजि कुसमाज ॥
अनेक जन्मोंकी बिगड़ी हुई है, वर्षोंकी नहीं । अनेक जन्मोंकी
बिगड़ी हुई आज सुधर जाय, आज और आज ही नहीं, आज भी अभी-अभी इसी क्षण ही । कितनी सुगम
और सरल बात बतायी । रामजीका होकर रामजीका नाम लो । बस,
मैं तो आजसे क्या, अभीसे रामजीका हो गया । रामजी कैसे हैं ? इस बातको रामजी जानें
। आप जितना-जितना जानते हो, उसका आदर करो, उस जानकारीपर दृढ़ रहो । पर उसका अभिमान
मत करो । कितना ही जान लो, जानना बाकी ही रहेगा; क्योंकि बुद्धिके अन्तर्गत
भगवान् नहीं आते । इसलिये बढ़िया बात है कि उसको मानकर शरण हो जाओ । ‘मैं तो आपके
शरण हूँ’‒इस प्रकार भगवान्के शरण होकर भगवान्का जप करो । कुसंग छोड़ दो,
नस्तिकपना कुसंग है । जो ईश्वरको नहीं मानता है, वह नास्तिक है । ऐसे पुरुषोंका
संग मुख्य कुसंग है । वास्तवमें तो भगवान्को छोड़कर अन्य
किसी व्यक्ति, वस्तु, पदार्थ, घटना, परिस्थितिका आश्रय और प्रिय बुद्धिसे याद
करनामात्र ही कुसंग है । अतः इस कुसंगको छोड़कर ‘हे नाथ ! हे नाथ ! मैं तो आपके शरण
हूँ’‒इस प्रकार शरण हो जाओ और नाम-जप करते रहो ।
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