।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
    माघ शुक्ल नवमी, वि.सं.२०७६ सोमवार
          भगवान प्रेमके भूखे हैं


भगवान्‌का भक्तोंके प्रति एक वात्सल्य भाव रहता है । जैसे, चारेमें गोमूत्र या गोबरकी गन्ध भी आ जाय तो गाय वह चारा नहीं चरती । परन्तु अपने नवजात बछड़ेको जीभसे चाटकर साफ़ कर देती है । वास्तवमें वह बछड़ेको साफ करनेके लिये नहीं चाटती, इसमें उसे खुदको एक आनन्द आता है । उसके आनन्दकी पहचान यह है कि अगर आप बछड़ेको धोकर साफ़ कर दोगे तो गायका दूध कम होगा और अगर गाय बछड़ेको चाटकर साफ़ करे तो उसका दूध ज्यादा होगा । गायकी जीभ इतनी कड़ी होती है कि चाटते-चाटते बछड़ेकी चमड़ीसे खून आ जाता है, फिर भी गाय छोड़ती नहीं; क्योंकि उसको एक आनन्द आता है । वात्सल्य प्रेममें गाय सब कुछ भूल जाती है । वत्सनाम बछड़ेका है और बछड़ेसे होनेवाला प्रेम वात्सल्य प्रेमकहलाता है ।

भगवान्‌को भक्तका काम करनेमें आनन्द आता है, प्रसन्नता होती है । मनुष्य भगवान्‌की इच्छाकी पूर्ति कर सकता है, इतनी इसमें योग्यता है ! परन्तु यह दर-दर भटकता फिरता हैतुच्छ टुकड़ोंके लिये, पैसोंके लिये, भोगोंके लिये ! राम-राम-राम ! किधर चला गया तू ! भगवान्‌को आनन्द देनेवाला होकर अपने सुखके लिये भटकता है और लालायित होता है ! भगवान्‌ भक्तका काम करनेके लिये अपयश सह लेते हैं, तिरस्कार सह लेते हैं, अपमान सह लेते हैं ! भगवान्‌ने भक्तको बहुत ऊँचा दर्जा दिया है । भगवान्‌ कहते हैंअहं भक्तपराधीनो ह्यस्वतन्त्र इव द्विज । (भागवत ९/४/६३) मैं तो हूँ भगतन को दास, भगत मेरे मुकुटमणि । जिनकी स्फुरणामात्रसे अनन्त ब्रह्माण्डोंकी रचना हो जाती है, ऐसे परमात्मा भक्तके वशमें हो जाते हैं और उसके इशारेपर नाचनेके लिये तैयार हो जाते हैंताहि अहीरकी छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पे नाच नचावें । नौ लाख गायें नंदजीके यहाँ दुही जाती थीं, पर गोपियोंपर भगवान्‌का इतना प्रेम था कि वे कहतीं‒‘लाला, तुम नाचो तो तुम्हें छाछ देंगीतो वे छाछके लिये नाचने लग जाते ! हृदयका प्रेम भगवान्‌को बहुत मीठा लगता है । भगवान्‌से कोई कामना नहीं, कोई इच्छा नहीं, केवल भगवान्‌ प्यारे लगें, मीठे लगेंयह भक्तोंका भाव होता है । यह जो प्रेम है, वह दोनोंका भाता है अर्थात्‌ भक्त भगवान्‌से आनन्दित होते हैं और भगवान्‌ भक्तसे । भगवान्‌ और भक्त आपसमें एक-दूसरेको देखकर आनन्दित होते रहते हैं । इतनी योग्यता रहते हुए भी मनुष्य दरिद्री हो रहा है, अभावग्रस्त हो रहा है, यह बड़े भारी आश्चर्यकी बात है ! होशमें नहीं आता कि मैं किस दर्जेका हूँ और क्या कर रहा हूँ ? तुच्छ चीजोंके पीछे पड़कर यह अपना कितना नुकसान कर रहा है ! झूठ, कपट, बेईमानी आदि करके महान नरकोंमें जानेकी तैयारी कर रहा है । जिसमें यह भगवान्‌की प्राप्ति कर सकता है, उस अमूल्य समयको बर्बाद कर रहा है । हद हो गयी ! अब तो चेत करो ? जो समय गया, सो तो गया, अब भी लग जाओ भगवान्‌में ! संसारके कामको अपना काम न समझकर भगवान्‌का समझ लो, इतनेसे ही भगवान्‌ प्रसन्न हो जायँगे ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


‒‘वास्तविक सुखपुस्तकसे