।। श्रीहरिः ।।

                                                                


आजकी शुभ तिथि–
     ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.२०७८ बुधवार

          अभिमान कैसे छूटे ?


भगवान्‌ और उनके भक्त‒दोनों ही बिना हेतु सबका हित करनेवाले हैं‒

हेतु रहित जग जुग उपकारी । तुम्ह तुम्हार सेवक असुरारी ॥

(मानस, उत्तर ४७/३)

इन दोनोंके साथ किसी भी तरहसे सम्बन्ध हो जाय तो लाभ-ही-लाभ होता है । ये सबपर कृपा करते हैं । लोग कहते हैं कि भगवान्‌ने दुःख भेज दिया ! पर भगवान्‌के खजानेमें दुःख है ही नहीं, फिर वे कहाँसे दुःख लाकर आपको देंगे ? भगवान्‌ और सन्त कृपा-ही-कृपा करते हैं, इसलिये इनका संग छोड़ना नहीं चाहिये ।

मनुष्यजन्ममें किये गये पाप चौरासी लाख योनियाँ भोगनेपर भी सर्वथा नष्ट नहीं होते, बाकी रह जाते हैं । फिर भी भगवान्‌ कृपा करके मनुष्यशरीर दे देते हैं, अपने उद्धारका मौका दे देते हैं । परन्तु मनुष्य मिले हुएको अपना मान लेता है । मिलने और बिछुड़नेवाली वस्तुको अपना माननेसे वह वस्तु अशुद्ध हो जाती है । इसलिये शुद्ध करनेसे अन्तःकरण शुद्ध नहीं होता, प्रत्युत अपना न माननेसे शुद्ध होता है । अतः सब कुछ भगवान्‌के अर्पण कर दो । मन, बुद्धि, इन्द्रियाँ, शरीर आदिको भगवान्‌का मान लो तो सब शुद्ध निर्मल हो जायँगे । जहाँ अपना माना, वहीं अशुद्ध हो जायँगे और अभिमान आ जायगा ।

एक समय बाँकुड़े जिलेमें अकाल पड़ा । सेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाने नियम रख दिया कि कोई भी आदमी आकर दो घण्टे कीर्तन करे और चावल ले जाय । कारण कि अगर उनको पैसा देंगे तो उससे वे अशुद्ध वस्तु खरीदेंगे । इसलिये पैसा न देकर चावल देते थे । इस तरह सौ-सवा सौ जगह ऐसे केन्द्र बना दिये, जहाँ लोग जाकर कीर्तन करते थे और चावल ले जाते थे । एक दिन सेठजी वहाँ गये । रात्रिके समय बंगाली लोग इकठ्ठे हुए । उन्होंने सेठजीसे कहा कि महाराज ! आपने हमारे जिलेको जिला दिया, नहीं तो बिना अन्नके लोग भूखों मर जाते ! आपने बड़ी कृपा की । सेठजीने बदलेमें बहुत बढ़िया बात कही कि आपलोग झूठी प्रशंसा करते हो । हमने मारवाड़से यहाँ आकर जितने रुपये कमाये, वे सब-के-सब लग जायँ, तबतक तो आपकी चीज आपको दी है, हमारी चीज दी ही नहीं । हम मारवाड़से लाकर यहाँ दे, तब आप ऐसा कह सकते हो । हमने तो यहाँसे कमाया हुआ धन भी पूरा दिया नहीं है । सेठजीने केवल सभ्यताकी दृष्टिसे यह बात नहीं कही, प्रत्युत हृदयसे यह बात कही । सेठजीके छोटे भाई हरिकृष्णदासजीसे पूछा गया कि आपने सबको चावल देनेका इतना काम शुरू किया है, इसमें कहाँतक पैसा लगानेका विचार किया है ? उन्होंने बड़ी विचित्र बात कही कि जबतक माँगनेवालोंकी जो दशा है‒वैसी दशा हमारी न हो जाय, तबतक ! कोई धनी आदमी क्या ऐसा कह सकता है ? उनके मनमें यह अभिमान ही नहीं है कि हम इतना उपकार करते हैं ।

हमलोग विचार ही नहीं करते कि भगवान्‌की हमपर कितनी विलक्षण कृपा है ! हम क्या थे, क्या हो गये ! भगवान्‌ने कृपा करके क्या बना दिया‒इस तरफ देखते ही नहीं, सोचते ही नहीं, समझते ही नहीं । अपने-अपने जीवनको देखें तो मालूम होता है कि हम कैसे थे और भगवान्‌ने कैसा बना दिया ! गोस्वामीजने कहा है‒

नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु ।

जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु ॥

(मानस, बालकाण्ड २६)

हौं तो सदा खर को असवार, तिहारोइ नामु गयंद चढ़ायो ॥

(कवितावली, उत्तर ६०)

मैं कितना अयोग्य था, पर आपकी कृपाने कितना योग्य बना दिया ! इसलिये भगवान्‌की कृपाकी ओर देखो । हम जो कुछ बने हैं, अपनी बुद्धि, बल, विद्या, योग्यता, सामर्थ्यसे नहीं बने हैं । जहाँ मनमें अपनी बुद्धि, बल आदिसे बननेकी बात आयी, वहीं अभिमान आता है कि हमने ऐसा किया, हमने वैसा किया । इस अभिमानसे बचनेके लिये भगवान्‌को पुकारो । अपने बलसे नहीं बच सकते, प्रत्युत भगवान्‌की कृपासे ही बच सकते हैं । भगवान्‌की स्मृति समस्त विपत्तियोंका नाश करनेवाली हैं‒हरिस्मृतिः सर्वविपद्विमोक्षणम्’ (श्रीमद्भागवत ८/१०/५५) । इसलिये भगवान्‌को याद करो, भगवान्‌का नाम लो, भगवान्‌के चरणोंकी शरण लो । उनके सिवाय और कोई रक्षा करनेवाला नहीं हैं । भगवान्‌के बिना संसारमात्र अनाथ है । भगवान्‌के कारणसे ही संसार सनाथ है । चलती चक्कीमें सब दाने पिस जाते हैं, पर जिस कीलके आधारपर चक्की चलती है, उस कीलके पास जो दाने चले जाते हैं, वे पिसनेसे बच जाते हैं‒‘कोई हरिजन ऊबरे कील माकड़ी पास’ । इसलिये प्रभुके सिवाय अभिमानसे बचनेका कोई उपाय नहीं है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ पुस्तकसे