रामायणजीमें भगवान् शंकरजी कहते
है कि ‘हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम
तें प्रगट होहिं मैं जाना’ । परमात्मा सब जगह समानरूपसे परिपूर्ण व्यापक है । प्रेमसे
प्रगट होते हैं‒यह उनका नियम है । अतः प्रेम बहुत बढ़िया
चीज है । दो सम्प्रदाय हैं, एकमें ज्ञानको बढ़िया मानते हैं और एकमें
प्रेम-भक्तिको ! यह दो मत मुख्य हैं । उत्तर-भारतमें ज्ञानकी प्रधानता है, दक्षिण भारतमें प्रेमकी प्रधानता है । गीताजीमें हमें पहले ज्ञानकी प्रधानता दीखती थी,
अब भाव बदल गया और प्रेमकी प्रधानता दीखती है विशेषतासे ! प्रेम क्या चीज है ? भगवान् जाने !
प्रेम कैसे होता है ? इसमें हमें एक बात मिली है कि अपनेपनसे प्रेम होता है
। भगवान्के साथ
अपनापन हो कि मैं भगवान्का अंश हूँ । यह हो जाय तो प्रेम हो जाय । ‘ईश्वर अंस जीव अबिनासी’, अपना माने तो प्रेम हो जाय, हम अंश हुए
और भगवान् अंशी हुए । यह ठीक स्वीकार कर ले तो प्रेम हो जाय, क्योंकि अपनी चीज सबको अच्छी लगती है । अपनी फटी जूती, फटा कपड़ा भी ईमानदार आदमीको अच्छा लगता है । प्रभु जैसे हैं, वैसे हमारे है । ‘मेरापन’‒खास चीज है
। जैसे मीराबाईने कहा‒‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो ना कोई’ । एक अनन्य
भावसे ‘एक आसरो, एक बल, एक आस विश्वास’ हो जाय !
सज्जनों यह बड़ा धोखा है कि स्त्री
अपनी है, बच्चे अपने है,
माँ-बाप अपने है ! बचना तो कठिन है ! भाई,
मित्र, कुटुम्बी, जातिवाले अपने है‒यह बहुत बड़ी
आफत है । इससे कैसे बचें बताओ ? बहुतोंको मेरा, अपना मान रखा है‒यही बाधा है । वास्तवमें भगवान् अपने है और कोई अपना है नहीं ! दूसरे सब साथमें रह सकेगें नहीं और भगवान् कभी साथ छोड़ेंगे नहीं‒यह विलक्षण बात है । भगवान् साथ छोड़ सकते ही नहीं; चाहे आप स्वर्गमें जाओ, चाहे नरकमें जाओ
और चाहे मृत्युलोकमें जाओ !! भगवान् तो साथ ही रहेंगे ! ‘ईश्वरः
सर्व भूतानाम् हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति’, ‘सर्वस्य
चाहं हृदि सन्निविष्टो’ । तो वे परमात्मा हमें कैसे छोड़ सकते है ! तो हमारे भगवान्के सिवाय कोई अपना नहीं है, ऐसा
स्वीकार कर लें तो प्रेम हो जाय । पर यह मानना कठिन है ! आप लोग हिम्मत करो तो बात ठीक बैठ
जाय ! ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो ना कोई’—यह जो मीराबाईने कही, बात सच्ची है । पर सभी-के-सभी धोखेमें आ गये
! ‘आदि विद्या अटपटी घर घर बीच अडी, कहो कैसे समझाय ये कुएमें भाँग पड़ी’ । सभी कहते है कि मेरा बेटा है, मेरे माँ-बाप है, मेरे जातिवाले है....कुएमें भाँग पड़ी है ! बताओ, कोई
इलाज बताओ ? (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒श्रद्धेय स्वामीजी महाराजके प्रवचनसे |