।। श्रीहरिः ।।

                                                                   


आजकी शुभ तिथि–
     ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया, वि.सं.२०७८ शनिवार

             प्रेम चाहते हो ?


रामायणजीमें भगवान्‌ शंकरजी कहते है कि ‘हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना’ । परमात्मा सब जगह समानरूपसे परिपूर्ण व्यापक है । प्रेमसे प्रगट होते हैं‒यह उनका नियम है । अतः प्रेम बहुत बढ़िया चीज है । दो सम्प्रदाय हैं, एकमें ज्ञानको बढ़िया मानते हैं और एकमें प्रेम-भक्तिको ! यह दो मत मुख्य हैं । उत्तर-भारतमें ज्ञानकी प्रधानता है, दक्षिण भारतमें  प्रेमकी प्रधानता है । गीताजीमें हमें पहले ज्ञानकी प्रधानता दीखती थी, अब भाव बदल गया और प्रेमकी प्रधानता दीखती है विशेषतासे !

प्रेम क्या चीज है ? भगवान्‌ जाने ! प्रेम कैसे होता है ? इसमें हमें एक बात मिली है कि अपनेपनसे प्रेम होता है । भगवान्‌के साथ अपनापन हो कि मैं भगवान्‌का अंश हूँ । यह हो जाय तो प्रेम हो जाय । ‘ईश्वर अंस जीव अबिनासी’, अपना माने तो प्रेम हो जाय, हम अंश हुए और भगवान्‌ अंशी हुए । यह ठीक स्वीकार कर ले तो प्रेम हो जाय, क्योंकि अपनी चीज सबको अच्छी लगती है । अपनी फटी जूती, फटा कपड़ा भी ईमानदार आदमीको अच्छा लगता है । प्रभु जैसे हैं, वैसे हमारे है । ‘मेरापन’‒खास चीज है । जैसे मीराबाईने कहा‒‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो ना कोई’ । एक अनन्य भावसे ‘एक आसरो, एक बल, एक आस विश्वास’ हो जाय !

सज्जनों यह बड़ा धोखा है कि स्त्री अपनी है, बच्चे अपने है, माँ-बाप अपने है ! बचना तो कठिन है ! भाई, मित्र, कुटुम्बी, जातिवाले अपने है‒यह बहुत बड़ी आफत है । इससे कैसे बचें बताओ ? बहुतोंको मेरा, अपना मान रखा है‒यही बाधा है । वास्तवमें भगवान्‌ अपने है और कोई अपना है नहीं ! दूसरे सब साथमें रह सकेगें नहीं और भगवान्‌ कभी साथ छोड़ेंगे नहीं‒यह विलक्षण बात है । भगवान्‌ साथ छोड़ सकते ही नहीं; चाहे आप स्वर्गमें जाओ, चाहे नरकमें जाओ और चाहे मृत्युलोकमें जाओ !! भगवान्‌ तो साथ ही रहेंगे ! ‘ईश्वरः सर्व भूतानाम् हृद्देशेर्जुन तिष्ठति’, ‘सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो’ । तो वे परमात्मा हमें कैसे छोड़ सकते है ! तो हमारे भगवान्‌के सिवाय कोई अपना नहीं है, ऐसा स्वीकार कर लें तो प्रेम हो जाय । पर यह मानना कठिन है ! आप लोग हिम्मत करो तो बात ठीक बैठ जाय ! ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो ना कोई’यह जो मीराबाईने कही, बात सच्ची है । पर सभी-के-सभी धोखेमें आ गये ! ‘आदि विद्या अटपटी घर घर बीच अडी, कहो कैसे समझाय ये कुएमें भाँग पड़ी’ । सभी कहते है कि मेरा बेटा है, मेरे माँ-बाप है, मेरे जातिवाले है....कुएमें भाँग पड़ी है ! बताओ, कोई इलाज बताओ ?

(शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒श्रद्धेय स्वामीजी महाराजके प्रवचनसे