मीराबाईको बालकपनसे ही धुन लग गई
कि ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो ना कोई’, ऐसी धुन लग जाय;
यही असली उपाय है, और कोई साथ रहनेवाला नहीं है । भगवान् कहते है कि मैं छोडूँगा नहीं और आप कहते है कि हम मानेगें नहीं !
तो हम क्या करें बताओ ? मुश्किल हो गई !! आपने
कमर कस ली कि भगवान् हमारे नहीं है और दूसरे माँ-बाप आदि हमारे है । अरे मान लो,
मान लो भाई ! सच्ची बात मान लो ! सिवाय भगवान्के
सब मिलने और बिछुडनेवाले है—यह बात हमें बहुत बढ़िया
लगी । मिलने-बिछुड़नेवाले अपने नहीं है, इसमें सन्देह नहीं है । यह बात आप मान
लो । ईश्वरका लक्षण बताया है कि कैसा होता है ? तो ‘ईश्वरः सर्व भूतानाम् हृदेशेऽर्जुन तिष्ठति’, अब क्या करें ? भगवान् तो छोड़ते नहीं और आपने कमर कस ली कि हम मानेगें नहीं । दूसरी बातें तो सब मानेगें परन्तु भगवान् अपने है, वह नहीं मानेगें ! मीराबाई पक्की भक्त है । ऐसे भक्त बहुत थोड़े हुए है । ‘दूसरा न कोई’—यह नहीं मानते है । अपनापन यह है कि भगवान्के सिवाय मेरा कोई नहीं है । दूसरे सब मिलने-बिछुड़नेवाले है और भगवान् हरदम साथमें रहते है । अपने भगवान् ही है—यह पक्का विचार कर लो, मान लो तो बहुत बढ़िया बात है ! भगवान् कहते है ‘सब मम प्रिय, सब मम उपजाए’, ‘ममैवांशो जीवलोके’ । ‘सबसे ऊँची प्रेम सगाई’ , प्रेमका सम्बन्ध सबसे ऊँचा है । गीताजीमें भी ‘महात्मा’, ‘सर्वज्ञ’ आदि शब्द भक्तोंके लिये ही आये है । ज्ञानीको भगवान्ने ‘सर्वज्ञ’ नहीं कहा है गीताजीमें ! ‘सर्व भाव भजी, कपट तजी; मोहि परम प्रिय सोई’, ‘सर्वभावेन् भारतः’ आदि । भगवान् कहते है—‘पिताहमस्य जगतः’, ‘माताधाता पितामहः’; अपना कुटुम्बी भगवान् ही है । ‘सदसच्चाहमर्जुन’, ‘वासुदेवः सर्वम्’ । एक बात मान लें पक्की, मीराबाईकी तरह, फिर सब ठीक हो जायेगा ! ‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो ना कोई’ । मेरे तो भगवान् है । सुरदासके श्याम, तुलसीके राम, मीराके गिरधर गोपाल, नरसीके शामळीया शेठ ! भगवान् कहते है, ‘नरसीजी हमारे आदी शेठ है और मैं उनका आदी गुमास्ता (नौकर) हूँ । उनसे ही पेट भरते है । बड़ी विचित्र बात है । तो अपने भगवान् है । आपको राम, श्याम, शामळीया शेठ... जो अच्छा लगे वह कह दो, मान लो ! नारायण ! नारायण !! नारायण !!! ‒श्रद्धेय स्वामीजी महाराजके प्रवचनसे |