।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
   फाल्गुन शुक्ल षष्ठी, वि.सं.-२०७८, मंगलवार
             सत्‌-असत्‌का विवेक


श्रोता‒जो नहीं है, उसके लिये पाप कर देते हैं तो खाली कहना-सुनना हुआ !

स्वामीजी‒जो है, उसको मुख्य मानो । कसौटी लगाकर उसको शिथिल मत करो, प्रत्युत कसौटीको शिथिल करो । भूलको महत्त्व न देकर सही बातको महत्त्व दो । पाप निरन्तर नहीं रहता । जो निरन्तर नहीं रहता, उसपर जोर मत दो, प्रत्युत जो निरन्तर रहता है, उसीपर जोर दो । आप स्वयं अनुभव करो कि निरन्तर कौन रहता है ? पाप निरन्तर रहता है या अपना होनापन (स्वरूप) निरन्तर रहता है ? जो निरन्तर रहता है, उसीपर दृढ़ रहो तो सब ठीक हो जायगा ।

पाप हो जाता है, अन्याय हो जाता है, झूठ-कपट हो जाता है तो क्या है’ का अभाव हो जाता है ? आप है’ की तरफ देखो । है’ में कोई फर्क पड़ता है क्या ? जब आप नहीं’ को है’ मान लेते हो, तब बाधा लगती है । नहीं’ को नहीं’ मानो और है’ को है’ मानो । कोई पाप हो गया तो भूल हो गयी बीचमें ! भूलके आधारपर है’ का निषेध क्यों करते हो ?

श्रोता‒‘है’ को मान लिया, पर प्रत्यक्ष अनुभव हुए बिना यह मान्यता टिकती नहीं है !

स्वामीजी‒देखो भाई ! यह आँखसे नहीं दीखेगा । देखना दो तरहका होता है‒एक आँखसे होता है और एक भीतरमें माननेसे होता है । भीतरसे अनुभव हो जाय, बुद्धिसे बात जँच जाय‒इसको देखना कहते हैं । यह है’ आँखसे कभी दीखेगा ही नहीं । यह तो माननेमें ही आता है । आपका नाम, जाति, गाँव, मोहल्ला, घर क्या अभी देखनेमें आ रहे हैं ? देखनेमें नहीं आ रहे हैं तो क्या ये नहीं हैं ? जो देखनेमें नहीं आता, वह होता ही नहीं‒ऐसी बात नहीं है । जो देखनेमें नहीं आता, वही होता है । परमात्मा देखनेमें न आनेपर भी हैं । नाम, जाति आदिके होनेमें कोई शास्त्र आदिका प्रमाण नहीं है, प्रत्युत यह केवल आपकी कल्पना है । परन्तु परमात्माके होनेमें शास्त्र, वेद, सन्त-महात्मा प्रमाण हैं और उसको माननेका फल भी विलक्षण (कल्याण) है । इसलिये परमात्माको दृढ़तासे मानो ।

गलती तो पैदा होनेवाली और मिटनेवाली है, पर परमात्मा पैदा होनेवाला और मिटनेवाला नहीं है । पैदा होनेवाली वस्तुसे पैदा न होनेवाली वस्तुका निषेध क्यों करते हो ? हमारेसे झूठ-कपट हो गया तो यह परमात्माका होनापन थोड़े ही मिट गया ! परमात्माके होनेमें क्या बाधा लगी ? यह मानो कि पाप हो गया तो वह भूल हुई, पर परमात्मा है‒यह भूल नहीं है । परमात्माको जितनी दृढ़तासे मानोगे, उतनी भूलें होनी मिट जायँगी । जिस समय भूल होती है उस समय आप परमात्मा है’इसको याद नहीं रखते । इसकी याद न रहनेसे ही भूल होती है । जो है’ उससे विमुख हो जाते हैं, उसको भूल जाते हैं, तब यह भूल होती है । इसलिये अपनेको उससे विमुख होना ही नहीं है । कभी अचानक कोई भूल हो भी जाय तो उस भूलको महत्त्व मत दो । जो सच्ची चीज है, उसको महत्त्व दो । भूल तो मिट जाती है, पर परमात्मा रहता है, मिटता है ही नहीं । जो हरदम रहता है, उसको मानो । अब बोलो, क्या बाधा लगी ?