।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
   आषाढ़ शुक्ल नवमी, वि.सं.-२०७९, शुक्रवार

गीतामें भगवान्‌की उदारता



निर्गुण उपासना करनेवाले तो पराभक्तिसे भगवान्‌को तत्त्वसे जानकर भगवान्‌में प्रविष्ट होते हैं (१८ । ५५); परन्तु जो सगुण उपासना करनेवाले है, उन भक्तोंको भगवान्‌ ज्ञान भी देते हैं, दर्शन भी देते हैं और अपनी प्राप्ति भी करा देते हैं (११ । ५४) । भगवान्‌में आविष्ट चित्तवाले भक्तोंका भगवान्‌ स्वयं संसार-सागरसे शीघ्र उद्धार करनेवाले बन जाते हैं (१२ । ७) । यह भगवान्‌की भक्तोंके प्रति कितनी उदारता है !

जो अविनाशी शाश्वत पद लम्बे समयतक एकान्तमें रहकर धारणा-ध्यान-समाधि करनेसे प्राप्त होता है, वही पद भक्त सांसारिक सब काम करता हुआ भी भगवान्‌की कृपासे अनायास ही पा लेता है (१८ । ५१‒५६) । जो केवल भगवान्‌के शरण हो जाता है, उसको भगवान्‌ सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त कर देते हैं, (१८ । ६६) । यह भगवान्‌की कितनी उदारता है !

जो भगवद्‌भक्तोंमें गीताका प्रचार करता है, वह भगवान्‌को ही प्राप्त होता है । उसके समान भगवान्‌को और कोई प्यारा नहीं है । अगर कोई प्रचार नहीं कर सकता, पर गीताका अध्ययन, पठन-पाठन करता है, उसके द्वारा भगवान्‌ ज्ञानयज्ञसे पूजित होते हैं । जो गीताका अध्ययन भी नहीं कर सकता, केवल दोषदृष्टि-रहित होकर श्रद्धापूर्वक गीताका श्रवण करता है, वह भी शरीर छूटनेके बाद भगवद्धाममें चला जाता है (१८ । ६८‒७१) । भगवान्‌की इस उदारताको क्या कहा जाय ?

कोई भगवान्‌को माने चाहे न माने, भगवान्‌का मण्डन करे चाहे खण्डन करे, भगवान्‌का त्रिलोकीसे अस्तित्व ही उठा देना चाहे, तो भी भगवान्‌की बनायी हुई पृथ्वी सबको समानरूपसे आश्रय देती है । पृथ्वीपर सभी बैठते हैं, चलते हैं, टट्टी करते हैं, पेशाब करते हैं, लातों आदिसे मारते हैं, तो भी पृथ्वी उनकी गलतियोंकी तरफ ख्याल नहीं करती । भगवान्‌के बनाये हुए जलमें कोई स्नान करे, कपड़े धोए, आचमन करे अथवा कुल्ला करे, तो भी जल समानरीतिसे सबकी प्यास मिटाता है । भगवान्‌की बनायी हुई अग्‍नि सबको समानरीतिसे प्रकाश देती है, प्राणियोंके द्वारा खाये हुए चार प्रकारके अन्नको पचाती है, प्रकाश देकर सबका भय दूर करती है । भगवान्‌की बनायी हुई वायु सबको समानरूपसे श्वास लेने देती है, जीने देती है, सबको समानरीतिसे बल देती है । भगवान्‌का बनाया हुआ आकाश सबको समानरूपसे अवकाश देता है, दसों दिशाओंमें सबको समानरूपसे फलने-फूलने और बढ़नेके लिये अवकाश देता है । इस प्रकार जिसकी बनायी हुई चीजें भी इतनी उदार हैं, वह खुद कितना उदार होगा !

कोई अपने घरमें नगरपालिकाके जलकी टोंटी लगाता है तो उसका टैक्स देना पड़ता है, पर भगवान्‌ने कई नदियाँ बना दी हैं, जिनका कोई टैक्स नहीं देना पड़ता । ऐसे ही कोई अपने घरमें बिजलीका तार लेता है तो उसका टैक्स देना पड़ता है, पर भगवान्‌ने सूर्य, चन्द्र, अग्‍नि आदि बना दिये हैं, जिनका कोई टैक्स नहीं देना पड़ता । सभी मुफ्तमें प्रकाश पाते हैं । यह भगवान्‌की असीम उदारता नहीं तो और क्या है ?

भगवान्‌ने मनुष्यको शरीरादि वस्तुएँ इतनी उदारतापूर्वक और इस ढंगसे दी हैं कि मनुष्यको ये वस्तुएँ अपनी ही दीखने लगती हैं । इन वस्तुओंको अपनी ही मान लेना भगवान्‌की उदारताका दुरुपयोग करना है ।

भगवान्‌में यह बात है ही नहीं कि मनुष्य मेरेको माने, तभी उसका उद्धार होगा । यह भगवान्‌की बड़ी भारी उदारता है ! मनुष्य भगवान्‌को माने या न माने, इसमें भगवान्‌का कोई आग्रह नहीं है । परन्तु उसको भगवान्‌के विधानका पालन जरूर करना चाहिये, इसमें भगवान्‌का आग्रह है; क्योंकि अगर वह भगवान्‌के विधानका पालन नहीं करेगा तो उसका पतन हो जायगा (३ । ३२) । अतः मनुष्य अगर विधाता (भगवान्‌)-को न मानकर केवल विधानको माने तो भी उसका कल्याण हो जायगा । हाँ, अगर मनुष्य विधाताको मानकर उनके विधानको मानेगा तो भगवान्‌ उसे अपने-आपको दे देंगे; परन्तु अगर वह विधाताको न मानकर उनके विधानको मानेगा तो भगवान्‌ उसका उद्धार कर देंगे । तात्पर्य है कि विधाताको माननेवालेको प्रेमकी प्राप्ति और विधानको माननेवालेको मुक्तिकी प्राप्ति होती है ।

वास्तवमें देखा जाय तो विधानको मानना और विधाता (भगवान्‌)-को न मानना कृतघ्नता है । कारण कि मनुष्य जो भी साधन करता है, उसकी सिद्धि भगवत्कृपासे ही होती है । वह जो भी साधन करता है, उसमें भगवान्‌का सम्बन्ध रहता ही है । संसार भगवान्‌का, जीव भगवान्‌का, शास्त्र भगवान्‌के, विधान भगवान्‌का‒सबमें भगवान्‌का ही सम्बन्ध रहता है ।

नारायण ! नारायण ! नारायण !