(गत ब्लॉगसे आगेका)
नामजप अभ्यास नहीं है,
प्रत्युत पुकार है । अभ्यासमें शरीर-इन्द्रियाँ-मनकी और पुकारमें
स्वयंकी प्रधानता रहती है ।
ᇮ
ᇮ ᇮ
नामजप सभी साधनोंका पोषक है ।
ᇮ
ᇮ ᇮ
भगवन्नाम सबके लिये खुला है और जीभ अपने मुखमें है, फिर भी नरकोंमें
जाते हैं‒यह बड़े आश्चर्यकी बात है !
ᇮ
ᇮ ᇮ
भगवान्का होकर नाम लेनेका जो माहात्म्य है,
वह केवल नाम लेनेका नहीं है । कारण कि नामजपमें नामी (भगवान्)
का प्रेम मुख्य है, उच्चारण (क्रिया) मुख्य नहीं है ।
ᇮ
ᇮ ᇮ
संख्या (क्रिया) की तरफ वृत्ति रहनेसे निर्जीव जप होता है और
भगवान्की तरफ वृत्ति रहनेसे सजीव जप होता है । इसलिये जप और कीर्तनमें क्रियाकी मुख्यता
न होकर प्रेमभावकी मुख्यता होनी चाहिये कि हम अपने प्यारेका नाम लेते हैं !
ᇮ
ᇮ ᇮ
भगवान्का कौन-सा नाम और रूप बढ़िया है‒यह परीक्षा न करके साधकको
अपनी परीक्षा करनी चाहिये कि मुझे कौन-सा नाम और रूप अधिक प्रिय है ।
☼ ☼ ☼ ☼
पाप और पुण्य
कोई हमारा अपकार करता है तो उससे वस्तुतः हमारा उपकार ही होता
है; क्योंकि उसके अपकारसे हमारे पाप कटते हैं ।
ᇮ
ᇮ ᇮ
दूसरोंकी बुराई करनेसे तो पाप लगता ही है,
बुराई सुनने और कहनेसे भी पाप लगता है ।
ᇮ
ᇮ ᇮ
अपने कल्याणकी तीव्र इच्छा होनेपर साधकके पाप नष्ट हो जाते हैं
।
ᇮ
ᇮ ᇮ
भगवान्से विमुख होकर संसारके सम्मुख होनेके समान कोई पाप नहीं
है ।
ᇮ
ᇮ ᇮ
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘अमृतबिन्दु’ पुस्तकसे
|