।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
अधिक ज्येष्ठ नवमी, वि.सं.-२०७५, बुधवार
 अनन्तकी ओर     



आजकल गाँवोंमें भी मदिरा बहुत फैल गयी है ! छोटे-छोटे गाँवोंमें भी मदिराकी दुकानें हो गयी हैं । मदिरा पीना महापाप है । मदिरा पीनेसे बुद्धि भ्रष्‍ट हो जायगी और महान् नरकोंकी प्राप्ति होगी । छोटे-छोटे बच्‍चे भी मदिरा पीना सीख जायँगे ! इसलिये अपने-अपने गाँवोंमें और घरोंमें मदिरा मत आने दो । गाँवके लोग इकट्ठे होकर निश्‍चय कर लें कि अपने गाँवमें मदिरा नहीं आनी चाहिये । ऋषिकेशमें एक महात्माने बताया था कि मांस खानेकी अपेक्षा भी मदिरा पीनेका अधिक पाप है । कारण कि अन्तःकरणमें पुण्यके, धर्मके जो अंकुर हैं, उनको मदिरा जला देती है । मदिरा पीनेसे धार्मिक भाव नष्ट हो जाते हैं । वे आदमी दान-पुण्य कर नहीं सकते, सत्संगमें जा नहीं सकते । उनकी बुद्धि भ्रष्‍ट हो जाती है । बुद्धिके नाशसे पतन-ही-पतन होता है‒‘बुद्धिनाशात्प्रणश्यति’ (गीता २ । ६३) । इसलिये अपने गाँवमें मदिराकी दूकान हो तो बन्द कर दो ।

सबसे बड़े परमात्मा हैं । परमात्माके समान भी कोई नहीं है, फिर अधिक कैसे होगा ? उन परमात्माकी हम सब सन्तान हैं‒‘ईश्‍वर अंस जीव अबिनासी । चेतन अमल सहज सुख रासी ॥’ (मानस, उत्तर ११७ । १) । परन्तु मायाके वशमें होकर दुःख पा रहे हैं‒सो मायाबस भयउ गोसाईं’ (मानस, उत्तर ११७ । २) । अगर इस मायाको छोड़ दें तो निहाल हो जायँ ! कारण कि जीवने खुद मायाको पकड़ा है, मायाने उसको नहीं पकड़ा है । जीव मायामें इतना फँस गया कि माया नष्ट हो जाय तो हार्टफेल हो जाय ! धन मेरा है, सम्पत्ति मेरी है, घर मेरा है, जमीन मेरी है‒इस प्रकार वह अपनेको धन, जमीन आदिका मालिक मानता है, पर वास्तवमें होता है गुलाम ! अपनेको लखपति-करोड़पति कहता है, पर होता है लखदास-करोड़दास ! इस गुलामीके कारण वह दुःखी हुआ है । अगर यह गुलामी छोड़ दे तो माया तंग नहीं करेगी ।

अगर जीव मायाके वशमें न होकर हरदम परमात्माको हे नाथ ! हे नाथ !’ पुकारे तो यह सुगमतासे छूट जाता है । मायासे छूटनेपर माया भी राजी हो जाती है और जीव भी राजी हो जाता है । मायाके दो काम हैं‒भोग देना और मोक्ष देना । ये दोनों देकर माया कृतकृत्य हो जाती है‒‘ततः कृतार्थानां परिणामक्रमसमाप्तिर्गुणानाम्’ (योगदर्शन ४ । ३२) । मायाके पास दो ही चीजें हैं‒भोग और मोक्ष । अगर भोग लेते हो तो लेते ही रहो.....लेते ही रहो.....युगों-युगोंतक लेते रहो ! अगर मोक्ष ले लो तो माया निहाल हो जायगी कि मेरा पिण्ड छूट गया ! जो मायाको छोड़ देते हैं, माया उनकी सेवा करती है !


भगवान्‌को हे नाथ ! हे नाथ !’ पुकारो तो भगवान् छुड़ा देंगे; परन्तु भीतरसे छोड़ना चाहे, तब । कोरा ऊपरसे भगवान्‌को पुकारे, पर भीतरसे भोगोंको चाहे तो भगवान् छुड़ाते नहीं; क्योंकि किसीकी मनचाही चीजको छुड़ाना भले आदमीका काम नहीं है । वह भोगोंको आफत समझे तो भगवान् छुड़ा दें, पर सुख समझे तो कैसे छुड़ाये ? भले आदमी दूसरेका सुख नहीं छुड़ाते, प्रत्युत दुःख, आफत छुड़ाते हैं । आरम्भमें तो भोगोंमें सुख दीखता है, पर परिणाम बड़ा दुःखदायी होता है ।