।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन अमावस्या, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
अमावस्या श्राद्ध, पितृविसर्जन
गीतामें भगवन्नाम


(गत ब्लॉगसे आगेका)

अगर भगवन्नाममें अनन्यभाव हो और नामजप निरन्तर चलता रहे तो उससे वास्तविक लाभ हो ही जाता है; क्योंकि भगवान्‌का नाम सांसारिक नामोंकी तरह नहीं है । भगवान् चिन्मय है; अतः उनका नाम भी चिन्मय (चेतन) है । राजस्थानमें बुधारामजी नामक एक सन्त हुए हैं । वे जब नामजपमें लगे, तब उनकी नामजपके बिना थोड़ा भी समय खाली जाना सुहाता नहीं था । जब भोजन तैयार हो जाता, तब माँ उनको भोजनके लिये बुलाती और वे भोजन करके पुनः नामजपमें लग जाते । एक दिन उन्होंने माँसे कहा कि माँ ! रोटी खानेमें बहुत समय लगता है; अतः केवल दलिया बनाकर थालीमें परोस दिया कर और जब वह थोड़ा ठण्डा हो जाया करे, तब मेरेको बुलाया कर माँने वैसा ही किया । एक दिन फिर उन्होंने कहा कि माँ ! दलिया खानेमें भी समय लगता है; अतः केवल राबड़ी बना दिया कर और जब वह ठण्डी हो जाया करे, तब बुलाया कर । इस तरह लगनसे नाम-जप किया जाय तो उससे वास्तविक लाभ होता ही है ।

शंका‒अगर श्रद्धा-विश्वासपूर्वक किये हुए नामजपसे ही लाभ होता है, तो फिर नामकी महिमा क्या हुई ? महिमा तो श्रद्धा-विश्वासकी ही हुई ?

 समाधान‒जैसे, राजाको राजा न माननेसे राजासे होनेवाला लाभ नहीं होता; पण्डितको पण्डित न माननेसे पण्डितसे होनेवाला लाभ नहीं होता; सन्त-महात्माओंको सन्त-महात्मा न माननेसे उनसे होनेवाला लाभ नहीं होता; भगवान् अवतार लेते हैं तो उनको भगवान् न माननेसे उनसे होनेवाला लाभ नहीं होता; परंतु राजा आदिसे लाभ न होनेसे राजा आदिमें कमी थोड़े ही आ गयी ? कमी तो न माननेवालेकी ही हुई । ऐसे ही जो नाममें श्रद्धा-विश्वास नहीं करता उसको नामसे होनेवाला लाभ नहीं होता, पर इससे नामकी महिमामें कोई कमी नहीं आती । कमी तो नाममें श्रद्धा-विश्वास न करनेवालेकी ही है ।

नाममें अनन्त शक्ति है । वह शक्ति नाममें श्रद्धा-विश्वास करनेसे तो बढ़ेगी और श्रद्धा-विश्वास न करनेसे घटेगी‒यह बात है ही नहीं । हाँ, जो नाममें श्रद्धा-विश्वास करेगा, वह तो नामसे लाभ ले लेगा, पर जो श्रद्धा-विश्वास नहीं करेगा, वह नामसे लाभ नहीं ले सकेगा । दूसरी बात, जो नाममें श्रद्धा-विश्वास नहीं करता, उसके द्वारा नामका अपराध होता है । उस अपराधके कारण वह नामसे होनेवाले लाभको नहीं ले सकता ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे

|
।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.२०७३, गुरुवार
चतुर्दशी श्राद्ध
गीतामें भगवन्नाम


(गत ब्लॉगसे आगेका)

शंका‒नाम तो केवल शब्दमात्र है, उससे क्या कार्य सिद्ध होगा ?

समाधान‒ऐसे तो शब्दमात्रमे अचिन्त्य शक्ति है, पर नाममें भगवान्‌के साथ सम्बन्ध जोड़नेकी ही एक विशेष सामर्थ्य है । अतः नाम किसी भी तरहसे लिया जाय, वह मंगल ही करता है । नाम जपनेवालेका भाव विशेष हो तो बहुत जल्दी लाभ होता है‒

सादर सुमिरन    जे नर करही ।
भव बारिधि गोपद इव तरहीं ॥
                          (मानस १ । १११ । २)

 नामजपमें भाव कम भी रहे तो भी नाम जपनेसे लाभ तो होगा ही, पर कब होगा-‒इसका पता नहीं । नामजपकी संख्या ज्यादा बढ़नेसे भी भाव बन जाता है, क्योंकि नामजप करनेवालेके भीतर सूक्ष्म भाव रहता ही है, वह भाव नामकी संख्या बढ़नेसे प्रकट हो जाता है ।

नाम-जप क्रिया (कर्म) नहीं है, प्रत्युत उपासना है; क्योंकि नामजपमें जापकका लक्ष्य, सम्बन्ध भगवान्‌से रहता है । जैसे कर्मोंसे कल्याण नहीं होता । कर्म अपना फल देकर नष्ट हो जाते है; परन्तु कर्मोंके साथ निष्कामभावकी मुख्यता रहनेसे वे कर्म कल्याण करनेवाले हो जाते है । ऐसे ही नामजपके साथ भगवान्‌के लक्ष्यकी मुख्यता रहनेसे नामजप भगवत्साक्षात्कार करानेवाला हो जाता है । भगवान्‌का लक्ष्य मुख्य रहनेसे नाम चिन्मय हो जाता है, फिर उसमें क्रिया नहीं रहती । इतना ही नही, वह चिन्मयता जापकमें भी उतर आती है अर्थात् नाम जपनेवालेका शरीर भी चिन्मय हो जाता है । उसके शरीरकी जड़ता मिट जाती है । जैसे, तुकारामजी महाराज सशरीर वैकुण्ठ चले गये । मीराबाईका शरीर भगवान्‌के विग्रहमें समा गया । कबीरजीका शरीर अदृश्य हो गया और उसके स्थानपर लोगोंको पुष्प मिले । चोखामेलाकी हड्डियोंसे विट्ठलनामकी ध्वनि सुनाई पड़ती थी ।

प्रश्न‒शास्त्रों, सन्तोंने भगवन्नामकी जो महिमा गायी है, वह कहाँतक सच्ची है ?

उत्तर‒शास्त्रों और सन्तोंने नामकी जो महिमा गायी है, वह पूरी सच्ची है । इतना ही नहीं, आजतक जितनी नाम-महिमा गायी गयी है, उससे नाम-महिमा पूरी नहीं हुई है, प्रत्युत अभी बहुत नाम-महिमा बाकी है । कारण कि भगवान् अनन्त हैं; अतः उनके नामकी महिमा भी अनन्त है‒हरि अनंत हरि कथा अनंता’ (मानस १ । १४० । ३) । नामकी पूरी महिमा स्वयं भगवान् भी नहीं कह सकते‒‘रामु न सकहिं नाम गुन गाई’ ( १ । २६ । ४)

प्रश्न‒नामकी जो महिमा गायी गयी है, वह नामजप करनेवाले व्यक्तियोंमें देखनेमें नहीं आती, इसमें क्या कारण है ?

उत्तर‒नामके महात्म्यको स्वीकार न करनेसे नामका तिरस्कार, अपमान होता है; अतः वह नाम उतना असर नहीं करता । नामजपमें मन न लगानेसे, इष्टके ध्यानसहित नामजप न करनेसे, हृदयसे नामको महत्त्व न देनेसे, आदि-आदि दोषोंके कारण नामका माहात्म्य शीघ्र देखनेमें नहीं आता । हाँ‌, किसी प्रकारसे नामजप मुखसे चलता रहे तो उससे भी लाभ होता ही है, पर इसमें समय लगता है । मन लगे चाहे न लगे, पर नामजप निरन्तर चलता रहे, कभी छूटे नहीं तो नाम-महाराजकी कृपासे सब काम हो जायगा अर्थात् मन लगने लग जायगा, नामपर श्रद्धा-विश्वास भी हो जायँगे, आदि-आदि ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे

|
।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.२०७३, बुधवार
त्रयोदशी श्राद्ध
गीतामें भगवन्नाम


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोता भी श्रद्धा, विश्वास, जिज्ञासा, तत्परता, संयतेन्द्रियता आदिसे युक्त हो और उसका परमात्मप्राप्तिका उद्देश्य हो तो उसको वक्ताके शब्दोंसे ज्ञान हो जाता है । तात्पर्य है कि वक्ताकी अयोग्यता होनेपर भी श्रोतापर उसकी वाणीका असर नहीं पड़ता और श्रोताकी अयोग्यता होनेपर भी उसपर वक्ताकी वाणीका असर नहीं पड़ता । दोनोकी योग्यता होनेपर ही वक्ताके शब्दका श्रोतापर असर पड़ता है । परन्तु भगवान्‌के नाममें इतनी विलक्षण शक्ति है कि कोई भी मनुष्य किसी श्री भावसे नाम ले, उसका मंगल ही होता है‒

भाय कुभाँय  अनख  आलसहूँ ।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ॥
                               (मानस १ । २८ । १)

 भगवान्‌का नाम अवहेलना, संकेत, परिहास आदि किसी भी प्रकारसे लिया जाय, वह पापोंका नाश करता ही है‒

साङे्कत्यं परिहास्यं वा स्तोभं हेलनमेव वा ।
          वैकुण्ठनामग्रहणमशेषाघहरं           विदुः ॥
                                       (श्रीमद्भागवत ६ । २ । ९४)

 भगवान्‌ने अपने नामके विषयमें स्वयं कहा है कि जो जीव श्रद्धासे अथवा अवहेलनासे भी मेरा नाम लेते है, उनका नाम सदा मेरे हृदयमें रहता है‒

                          श्रद्धया  हेलया  नाम  रटन्ति  मम  जन्तवः ।
                          तेषां  नाम  सदा  पार्थ   वर्तते  हृदये  मम ॥

शंका‒गुड़का नाम लेनेसे मुख मीठा नहीं होता, फिर भगवान्‌का नाम लेनेसे क्या होगा ?

समाधान‒जिस वस्तुका नाम गुड़ है, उसके नाममें गुड़ नामवाली वस्तुका अभाव है अर्थात् गुड़के नाममें गुड़ नहीं है; और जबतक गुड़का रसनेन्द्रिय-(जीभ-) के साथ सम्बन्ध नहीं होता, तबतक मुख मीठा नहीं होता; क्योंकि जीभमें गुड़ मौजूद नहीं है । ऐसे ही धनीका नाम लेनेसे धन नहीं मिलता; क्योंकि धनीके नाममें धन मौजूद नहीं है । परन्तु भगवान्‌के नाममें भगवान् मौजूद हैं । नामी- (भगवान्‌-) से नाम अलग नहीं है और नामसे नामी अलग नहीं है । नामीमें नाम मौजूद है और नाममें नामी मौजूद है । अतः नामीका, भगवान्‌का नाम लेनेसे भगवान् मिल जाते हैं, नामी प्रकट हो जाता है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे

|