।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल तृतीयावि.सं.२०७१शनिवार
रम्भातृतीया
सत्संगकी आवश्यकता



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रायः बहनोंके मनमें आती है कि हमारे पास रुपये हों तो हम दान-पुण्य करें । परन्तु दान-पुण्यसे इतना ऊँचा काम नहीं होगाजितना भजन-ध्यानसे होगा । भजन-ध्यानसे भगवान्‌में तल्लीन होकर पवित्र बनोगे । दान-पुण्यसे आप इतने पवित्र नहीं बन सकते । इसलिये भजन करोभगवान्‌में तल्लीन हो जाओ । इसका बहुत ज्यादा माहात्म्य है । अच्छे-अच्छे गुण धारण करो । किसीको कोई तकलीफ न हो‒इसका खयाल रखो । चुगली करनाइधर-उधर बात फैलानाद्वेष पैदा करनाकलह करवाना‒यह महान् हत्या हैबड़ा भारी पाप है ।

एक कहानी आती है । एक नौकर मुसलमानके यहाँ जाकर रहा । रहनेसे पहले उसने कह दिया कि मेरी इधर-की-उधर करनेकी आदत हैपहले ही कह देता हूँ ! मियाँने सोचा कि कोई परवाह नहीं‘मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी’ और रख लिया उसे । अब वह एक दिन जाकर रोने लगा तो बीबीने पूछा कि रोता क्यों है तो बोला कि आपके घर रहता हूँतनखा पाता हूँजिससे मेरा काम चलता है । आपके हितकी बात कहनेकी मनमें आती हैपर क्या करूँ,आपको जँचेन जँचे ! दुःख होता है ! बीबीने कहा कि बता तो देक्या दुःख है उसने कहा कि मियाँ साहब तो दूसरी शादी करना चाहते हैंआपके आफत आ जायगी ! तो बीबीने पूछा कि इसका कोई उपाय है उसने कहा‒‘हाँ, इसका उपाय है । आप मियाँकी दाढ़ीके कुछ केश ले आओ तो मैं उसकी एक ताबीज (यन्त्र) बना दूँगाफिर सब ठीक हो जायगा ।’ उधर उस मियाँको जाकर कह दिया कि ‘बीबी आपसे बड़ा द्वेष रखती हैकभी मारेगी आपको ! मेरे आगे बात करती हैइसलिये आप खयाल रखना ।’ अब मियाँ भी सजग रहने लगा कि कहीं मेरेको मार न दे । एक दिन मियाँ नींदका बहाना बनाकर लेटे हुए थे । वह दाढ़ीके केश काटनेके लिये छुरी लेकर आयी तो उसने सोचा कि यह तो मेरा गला काटेगी । अतः दोनोंमें बड़ी कलह हो गयी । इसलिये कहा है‒
चुगलखोरसे बात न करनाखड़ा न रहना पास ।
मियाँ बीबी  दोनों  मरे, भयो  कुटुम्ब  को नास ॥

चुगलखोर बड़ा खराब होता है । बहनों-माताओंमे यह आदत होती है कि इसकी बात उसको कहकर दोनोंमें झगड़ा करा देती हैं । क्या हाथ आता हैबताओ सास-बहू,जेठानी-देवरानीमे लड़ाई करा देती हैंभाई-भाईको न्यारा करा देती हैं ।
           बायाँ सुणो तो सरीरामजी दयालजी ने क्यूँ बिसरी ॥
           पाँच सात तो भाई भेलाकैसा लागे प्यारा ।
           जे बायाँ रो हुकुम चले तो कर दे न्यारा न्यारा ॥ बायाँ ॥ 
           परमारथ ने पतली पोवेघर काँ ताँयी जाड़ी ।
           साहेब के दरबार में तेरी किस विध आसी आड़ी ॥ बायाँ ॥ 
           चोखा चावल मोठ बाजरीघर में आघा मेले ।
           अलियो धाण अरु घणा कांकरामाँगणियाँने ठेले ॥ बायाँ ॥
           खावण ने खाथी घणी अरु राम भजन ने माठी ।
           जवायाँ रा गीत गावणनेजाय जगत में नाठी ॥ बायाँ ॥ 
           घर में बातां बाहर बातांबातां आता जातां ।
           आ बातां में नफो नहीं है, जम मारेला लाता ॥ बायाँ ॥      

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे


।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीयावि.सं.२०७१शुक्रवार
सत्संगकी आवश्यकता



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रहलादजीने विचार किया कि मेरेको पिताजीने सत्संग, भजन-ध्यानके लिये मना किया हैअतः ठाकुरजी उनपर नाराज हैं । इसलिये प्रहलादजीने ठाकुरजीसे क्षमा माँग ली कि महाराज ! पिताजीको क्षमा करोजिससे उनका कल्याण हो जाय । भगवान्‌ने कहा कि तेरे वंशका कल्याण हो गयापिताकी क्या बात है !

माँका ऋण सबसे बड़ा होता है । परन्तु पुत्र भगवान्‌का भक्त हो जाय तो माँका ऋण नहीं रहता और माँका कल्याण भी हो जाता है !

                        कुलं पवित्रं जननी कृतार्था       वसुन्धरा पुण्यवती च तेन । 
                        अपारसंवित्सुखसागरेऽस्मिन्  लीनं परे ब्रह्मणि यस्य चेतः ॥
                                                           (स्कन्दपुराणमाहे कौमार ५५ । १४०)

ज्ञान एवं आनन्दके अपार समुद्र परब्रह्म परमात्मामें जिसका चित्त विलीन हो गया हैउसका कुल पवित्र हो जाता हैमाता कृतार्थ हो जाती है और पृथ्वी पवित्र हो जाती है ।

इसलिये बहनो ! माताओ ! अपने बालकोंको भगवान्‌में लगाओउनको भक्त बनाओ‒
जननी जणै तो भक्त जणकै दाता कै सूर ।
नहिं तो रहिजै बाँझड़ी मती गमाजे नूर ॥

आपकी गोदीमें भक्त आयेभगवान्‌का भजन करनेवाला आये । ‘गोद लिये हुलसी फिरे, तुलसी सो सुत होय’‒ऐसा बेटा हो । गोस्वामीजी महाराजकी वाणीसे जगत्‌का कितना उपकार हुआ है ! उनकी वाणीसे कितनोंको शान्ति मिलती है ! ऐसे बालक होना बिलकुल आपके हाथकी बात है । बालकका पहला गुरु माँ है । माँका स्वभाव पुत्रपर ज्यादा आता है‒‘माँ पर पूत, पिता पर घोड़ा, बहुत नहीं तो थोड़ा-थोड़ा ।’ कारण कि वह माँके पेटमें रहता हैमाँका दूध पीता हैमाँसे बोली सीखता हैमाँसे चलना-बैठनाखाना-पीना आदि सीखता है । माँ दाईकानाईकादर्जीका,धोबीकामेहतरका काम भी करती है और ऊँची-से-ऊँची शिक्षा देनेका काम भी करती है । माँकी शिक्षा पाये बालक बड़े सन्त होते हैं । जितने-जितने सन्त हुए हैंमूलमें उनकी माताएँ बड़ी श्रेष्ठऊँचे दर्जेकी हुई हैं । उनकी शिक्षा पाकर बालक श्रेष्ठ हुए । ऐसे आप भी अपने बालकोंको तैयार करो ।आपका बेटा होपोता होदौहित्र होउसको बचपनमें ऐसी बातें सिखाओ कि वह भक्त बन जायभजनमें लग जाय । आपको कितना पुण्य होगा ! उस बालकका उद्धार होगा और उसके द्वारा कितनोंको लाभ होगाकितनोंका कल्याण होगा ! भक्तके द्वारा दूसरोंको स्वतः-स्वाभाविक लाभ होता है । उसके वचनोंसेदर्शनसेचिन्तनसेउसका स्पर्श करके बहनेवाली हवासे दूसरोंको लाभ होता है । अतः माताएँ बहनेंभाई सब-के-सब भगवान्‌के भजनमें तल्लीन हो जाओ,भक्त बन जाओ । इससे बड़ा भारी उपकार होगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे


।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदावि.सं.२०७१गुरुवार
सत्संगकी आवश्यकता



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
मैंने कई जगह कहा है कि कोई तुमसे कहे कि तुम सत्संगमें क्यों जाती हो तो उससे कह देना कि स्वामीजीने हमारे घर आकर सत्संगमें आनेके लिये कह दियाइस कारण जाती हूँ । उनका कहना मानना ही पड़ता है ! इस तरह सब कलंक मेरेपर दे दो ! ऐसे आप भी अपनेपर कलंक ले लो कि हम भी जायँगी और साथमें इसको भी ले जायँगी । इस तरह आप उत्साह रखो तो सत्संगका प्रचार होगासबका हृदय शुद्ध होगासबके लाभकी बात होगी ।

हमने एक बात सुनी है और पद भी पढ़े हैं । मीराँबाईने तुलसीदासजी महाराजको पत्र लिखा कि मेरे तो आप ही माँ-बाप हैंअतः मैं आपसे पूछती हूँ कि मैं भजन-ध्यान करना चाहती हूँपर मेरे पति मना करते हैं तो मेरेको क्या करना चाहिये* उत्तरमें गोस्वामीजी महाराजने लिखा‒
           जाके प्रिय न राम-बैदेही ।
           तजिये ताहि कोटि बैरी समजद्यपि परम सनेही ॥ १ ॥
           तज्यो पिता प्रहलादबिभीषन बंधुभरत महतारी ।
           बलि गुरु तज्योकंत ब्रज-बनितन्हि, भये मुद-मंगलकारी ॥ २ ॥
           नाते नेह रामके मनियत सुहृद सुसेव्य जहाँ लौं ।
           अंजन कहा आँखि जेहि फूटैबहुतक कहौं कहाँ लौं ॥ ४ ॥
           तुलसी सो सब भाँति परम हित पूज्य प्रानते प्यारो ।
           जासों होय सनेह राम-पदएतो मतो हमारो ॥ ५ ॥
                                                             (विनयपत्रिका १७४)

जिसको सीतारामजी प्यारे नहीं लगतेउसको करोड़ों वैरियोंके समान समझना चाहिये । इस विषयमें गोस्वामीजीने अनेक उदाहरण दिये । प्रह्लादजीका उदाहरण दिया कि उन्होंने पिताको छोड़ दिया । परन्तु इससे यह उलटी बात मत पकड़ लेना कि हम भी पिताको छोड़ देंगे,पिताका कहना नहीं मानेंगे ! प्रह्लादजीने तो केवल पिताजीकी भजन-निषेधकी बात नहीं मानी । भगवान्‌ने प्रह्लादजीसे कहा कि वरदान माँग तो उन्होंने कहा कि महाराज ! माँगनेकी इच्छा नहीं हैपर आप माँगनेके लिये कहते हो तो मालूम होता है कि मेरे मनमें कामना है । अगर मेरे मनमें कामना न होती तो आप अन्तर्यामी होते हुए ऐसा कैसे कहते अतः मैं यही वरदान माँगता हूँ कि मेरे मनमें जो कामना होवह नष्ट हो जाय । भगवान्‌ने कहा कि ठीक है । फिर प्रह्लादजीने कहा कि मेरे पिताका कल्याण हो जाय । इस तरह भजनमें बाधा देनेवालेके लिये प्रह्लादजी वरदान माँगते हैंनिष्काम होते हुए भी कामना करते हैं कि मेरे पिताका कल्याण हो जाय ! क्यों माँगते हैं वरदान इसलिये कि भगवान् और सब सह सकते हैंपर भक्तका अपराध नहीं सह सकते‒
सुनु   सुरेस   रघुनाथ   सुभाऊ ।
निज अपराध रिसाहिं न काऊ ॥
जो  अपराधु  भगत  कर  करई ।
राम   रोष   पावक  सो  जरई ॥
                                                       (मानस २ । २१८ । २-३)

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे
________________
   * स्वस्ति  श्रीतुलसी   गुण-भूषण  दूषण-हरण  गोसाँई ।
    बारहिं बार  प्रणाम  करहुँ  अब  हरहु शोक-समुदाई ॥ १ ॥
    घरके  स्वजन  हमारे   जेते   सबन   उपाधि   बढ़ाई ।
    साधुसंग और भजन करत  मोहि  देत  कलेस  महाई ॥ २ ॥
    सो तो अब छूटत नहिं क्यों हूँ  लगी  लगन  बरियाई ।
    बालपनेमें   मीरा   कीन्हीं     गिरधरलाल   मिताई ॥ ३ ॥
    मेरे  मात  तात  सब  तुम  हो   हरिभक्तन  सुखदाई ।
    मोकों कहा उचित करिबो अब सो लिखिये समुझाई ॥ ४ ॥


।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ अमावस्या, वि.सं.२०७१, बुधवार
अमावस्या, वटसावित्रीव्रत
सत्संगकी आवश्यकता



(गत ब्लॉगसे आगेका) 
एक बात बहनोंसे कहता हूँध्यान देकर सुनें । भाई भी सुनें । घरमें कोई शोक हो जाय और कोई बहन सत्संगमें चली जाय तो ये माताएँ बहुत चर्चा करती हैं कि ‘देखो ! कल इसका बाप मरापति मरा और आज यह सत्संगमें जा रही है !’ इस तरह किसीको सत्संगमें जानेसे रोकना पाप हैहत्या है । वह कहीं विवाहमें जायगीत-गाने गाये तो ठीक नहीं है,पर सत्संगमें जाय तो क्या हर्ज है ! सत्संगमें जानेसे उसका शोक दूर होगाचिन्ता दूर होगीपाप दूर होगा । अतः उसको सत्संगमें ले जाना चाहिये और कहना चाहिये कि हम भी जाती हैंतुम भी चलो । बाप मर गयामाँ मर गयी,गुरुजन मर गयेपति मर गया तो यह बड़े दुःखकी बात है,पर यह दुःख मिटेगा सत्संग करनेसेभजन-ध्यान करनेसे,भगवान्‌के शरण होनेसे । आप ऐसा सोचें कि सत्संगभजन-ध्यानसे हमें जो पुण्य मिलेवह हमारे माँ-बापकोपतिको,गुरुजनोंको मिले । माँ-बाप आदिके लिये सत्संग करोभजन-ध्यान करो । अतः शोकके समय भी उत्साहपूर्वक सत्संगमें जाना चाहिये ।

कई जगह यह बहुत बुरी रीति है कि पति मर जाय तो स्त्री दो-दोतीन-तीन वर्षतक एक जगह बैठी रोती रहती है । बाहर जा नहीं सकती । इस रीतिको मिटाना है । मेरे काम पड़ा है । कलकत्तेकी बात है । दो स्त्रियों ऐसी थींजिनके पति मर गये । सेठजीके छोटे भाई मोहनलालजीकी मृत्यु हो गयी । उनकी स्त्री सावित्री वहाँ थी । मैं उनके घरपर गया और कहा कि तुम सत्संगमें आओरामायणके पाठमें आओ । वह सत्संगमें आने लगी । एक अन्य सज्जन मर गये तो उनकी पत्नीको भी मैंने सत्संगमें आनेके लिये कहा । उसने कहा कि लोग क्या कहेंगे ! तो मैंने कहा कि हमें ऐसी रीति शुरू करनी है । शोकके समय सत्संगमेंतीर्थोंमेंमन्दिरोंमें अवश्य जाना चाहिये और दुःख मिटाना चाहिये । घरमें तो शोक ही होगा और स्त्रियों भी जा-जाकर शोककी ही बातें सुनायेंगी । दुःखकी बातें सुननेसे दुःख होता है और सत्संगकी बातें सुननेसे सुख होता है । अतः माताओ ! कृपा करोयह भिक्षा दो कि जो सत्संगमें जायेउसकी चर्चा मत करो । आपकी चर्चासे बड़ा नुकसान होता है । वह सत्संगमें जाती है भजन-ध्यान करती है तो कौन-सा पापअन्याय करती है ?
चुगल जुआरी मसखरा  अन्यायी अरु चोर,
वरण-भेल विधवा-भखी गर्भगेर अघ घोर ।
गर्भगेर अघ घोर       ऊँच वेश्या-घर जाई,
मद मांसी रत   वाम हत्यारा पलट सगाई ।
‘रामचरण’   संसारमें    इन सबहनको ठौर,
राम-भगत भावै नहीं जगत हरामीखोर ॥

इतने-इतने पापी तो जगत्‌में रह सकते हैंपर भगवान्‌का भक्त जगत्‌में नहीं रह सकता ! ऐसा मत करो । सत्संगमें जानेके लिये उत्साहित करो । पाँच-दस बहनें साथमें होकर कहें कि तुम सत्संगमें चलो । कोई कहे कि यह कैसे आ गयी तो कहो कि हम इसे साथमें ले आयीं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे


।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशीवि.सं.२०७१मंगलवार
सत्संगकी आवश्यकता



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
एक ही ध्येयलक्ष्य हो कि हमें पारमार्थिक उन्नति ही करना है । मेरी तो यहाँतक धारणा है कि यदि हृदयमें सत्संगकी जोरदार इच्छा होगी तो उसको सत्संगमें गये बिना लाभ हो जायगादूर बैठे ही उसके मनमें उस सत्संगके भाव पैदा हो जायँगे ! भगवान् तो भावको ग्रहण करते हैं‒‘भावग्राही जनार्दनः ।’

भगवान् हमारे सदाके माँ बापपतिगुरुआचार्य हैं,अतः उनकी आज्ञामें चलो । कर्तव्य-अकर्तव्यकी व्यवस्थामें शास्त्र प्रमाण है‒‘तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ’ (गीता १६ । २४) । शास्त्रकी आज्ञा है कि सत्संग, भजनध्यान करो । इसलिये कभी मत डरो,निधड़क रहो । पतिकी सेवा करो उत्साहपूर्वक । जैसेकोई मुनीम या नौकर हैपर उसका मालिक उसको भजन-ध्यानके लिये मना करता है तो उसको मालिकसे कड़वा नहीं बोलना चाहियेपर मनमें यह विचार पक्का रखना चाहिये कि मैंने इसको समय दिया है और समयके मैं पैसे लेता हूँपर मैंने अपना धर्म नहीं बेचा है । यदि वह कहे कि झूठी बही लिखनी पड़ेगीझूठ-कपट करना पड़ेगासेल्स टैक्स और इन्कम टैक्सकी चोरी करनी पड़ेगीनहीं तो मैं नौकर नहीं रखूँगा तो उसको यह बात मनमें रखनी चाहिये कि अच्छी बात है । वह हमें छोड़ दे तो ठीक हैपर अपने मत छोड़ो ।यदि मालिक ऐसे नौकरका त्याग करेगा तो ऐसा ईमानदार नौकर उसको फिर नहीं मिलेगा । जो आदमी मालिकके कहनेपर सरकारकी चोरी नहीं करतावह मालिककी भी चोरी नहीं करेगा । उसको मालिक छोड़ देगा तो पीछे वह रोयेगा ही । अपने तो निधड़कनिःशंक रहो कि हमने तो कोई पाप नहीं किया । हम पापअन्याय नहीं करते तो कुटुम्बीसम्बन्धी भले ही नाराज हो जाये उस नाराजगीसे बिलकुल मत डरो । मीराँबाईने कहा है‒‘या बदनामी लागे मीठी !’ वे भगवान्‌की पक्की भक्त थीं । उन्होंने कलियुगमें गोपी-प्रेम दिखा दिया । उनको कितना मना कियाजहर दियासिंह छोड़ दिया और कहा कि तू हमारेपर कलंक लगानेवाली है तो भी मीराँबाईने कोई परवाह नहीं की । अतः आपका हृदय यदि सच्चा है और भजन-ध्यान कर रहे हैं तो कोई धड़कन लानेकी जरूरत नहीं है ।

यदि पति सत्संगमें जानेके लिये मना करता है तो पतिके हितके लिये उससे बड़ी नम्रतासरलतासे कह दो कि मैं सत्संगकी बात नहीं छोड़ूँगी । आप जो कहोवही काम करूँगी । आपकी सेवामें कँभी त्रुटि नहीं पड़ने दूँगीपर सत्संग-भजन नहीं छोड़ूँगी । आप सत्संगमें जानेकी आज्ञा दे दो और खुद भी सत्संगमें चलो तो बड़ी अच्छी बात है,आपकी-हमारी दोनोंकी इज्जत रहेगीनहीं तो सत्संग मैं जाऊँगी । घरमें कोई शोक हो जायकोई मर जाय तो ऐसे समयमें भी सत्संगमेंमन्दिरोंमें और तीर्थोंमें जानेके लिये कोई मना नहीं है अर्थात् जरूर जाना चाहिये । शोकके समय सत्संगमें जानेसे शोक मिटता हैजलन मिटती हैशान्ति मिलती हैइसलिये जरूर जाना चाहिये ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे