(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक बात बहनोंसे कहता हूँ, ध्यान देकर सुनें । भाई भी सुनें । घरमें कोई शोक हो जाय और कोई बहन सत्संगमें चली जाय तो ये माताएँ बहुत चर्चा करती हैं कि ‘देखो ! कल इसका बाप मरा, पति मरा और आज यह सत्संगमें जा रही है !’ इस तरह किसीको सत्संगमें जानेसे रोकना पाप है, हत्या है । वह कहीं विवाहमें जाय, गीत-गाने गाये तो ठीक नहीं है,पर सत्संगमें जाय तो क्या हर्ज है ! सत्संगमें जानेसे उसका शोक दूर होगा, चिन्ता दूर होगी, पाप दूर होगा । अतः उसको सत्संगमें ले जाना चाहिये और कहना चाहिये कि हम भी जाती हैं, तुम भी चलो । बाप मर गया, माँ मर गयी,गुरुजन मर गये, पति मर गया तो यह बड़े दुःखकी बात है,पर यह दुःख मिटेगा सत्संग करनेसे, भजन-ध्यान करनेसे,भगवान्के शरण होनेसे । आप ऐसा सोचें कि सत्संग, भजन-ध्यानसे हमें जो पुण्य मिले, वह हमारे माँ-बापको, पतिको,गुरुजनोंको मिले । माँ-बाप आदिके लिये सत्संग करो, भजन-ध्यान करो । अतः शोकके समय भी उत्साहपूर्वक सत्संगमें जाना चाहिये ।
कई जगह यह बहुत बुरी रीति है कि पति मर जाय तो स्त्री दो-दो, तीन-तीन वर्षतक एक जगह बैठी रोती रहती है । बाहर जा नहीं सकती । इस रीतिको मिटाना है । मेरे काम पड़ा है । कलकत्तेकी बात है । दो स्त्रियों ऐसी थीं, जिनके पति मर गये । सेठजीके छोटे भाई मोहनलालजीकी मृत्यु हो गयी । उनकी स्त्री सावित्री वहाँ थी । मैं उनके घरपर गया और कहा कि तुम सत्संगमें आओ, रामायणके पाठमें आओ । वह सत्संगमें आने लगी । एक अन्य सज्जन मर गये तो उनकी पत्नीको भी मैंने सत्संगमें आनेके लिये कहा । उसने कहा कि लोग क्या कहेंगे ! तो मैंने कहा कि हमें ऐसी रीति शुरू करनी है । शोकके समय सत्संगमें, तीर्थोंमें, मन्दिरोंमें अवश्य जाना चाहिये और दुःख मिटाना चाहिये । घरमें तो शोक ही होगा और स्त्रियों भी जा-जाकर शोककी ही बातें सुनायेंगी । दुःखकी बातें सुननेसे दुःख होता है और सत्संगकी बातें सुननेसे सुख होता है । अतः माताओ ! कृपा करो, यह भिक्षा दो कि जो सत्संगमें जाये, उसकी चर्चा मत करो । आपकी चर्चासे बड़ा नुकसान होता है । वह सत्संगमें जाती है भजन-ध्यान करती है तो कौन-सा पाप, अन्याय करती है ?
चुगल जुआरी मसखरा अन्यायी अरु चोर,
वरण-भेल विधवा-भखी गर्भगेर अघ घोर ।
गर्भगेर अघ घोर ऊँच वेश्या-घर जाई,
मद मांसी रत वाम हत्यारा पलट सगाई ।
‘रामचरण’ संसारमें इन सबहनको ठौर,
राम-भगत भावै नहीं, जगत हरामीखोर ॥
इतने-इतने पापी तो जगत्में रह सकते हैं, पर भगवान्का भक्त जगत्में नहीं रह सकता ! ऐसा मत करो । सत्संगमें जानेके लिये उत्साहित करो । पाँच-दस बहनें साथमें होकर कहें कि तुम सत्संगमें चलो । कोई कहे कि यह कैसे आ गयी ? तो कहो कि हम इसे साथमें ले आयीं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे
|