।। श्रीहरिः ।।


       आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशीवि.सं.२०७७, सोमवा
ओणम
गोरक्षा–हमारा परम कर्तव्य


मनुष्योंके लिये गाय सब दृष्टियोंसे पालनीय है । गायसे अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष–इन चारों पुरुषार्थकी सिद्धि होती है । आजके अर्थप्रधान युगमें तो गाय अत्यन्त ही उपयोगी है । गोपालनसे, गायके दूध, घी, गोबर आदिसे धनकी वृद्धि होती है । हमारा देश कृषिप्रधान है । अतः यहाँ खेतीमें जितनी प्रधानता बैलोंकी है, उतनी प्रधानता अन्य किसीकी भी नहीं है । भैसोंके द्वारा भी खेती की जाती है, पर खेतीमें जितना काम बैल कर सकता है, उतना भैंसा नहीं कर सकता । भैंसा बलवान् तो होता है, पर वह धूप सहन नहीं कर सकता । धूपमें चलनेसे वह जीभ निकाल देता है, जबकि बैल धूपमें भी चलता रहता है । कारण कि भैंसेमें सात्त्विक बल नहीं होता, जबकि बैलमें सात्त्विक बल होता है । बैलोंकी अपेक्षा भैंसे कम भी होते हैं । ऐसे ही ऊँटसे भी खेती की जाती है, पर ऊँट भैसोंसे भी कम होते हैं और बहुत महँगे होते हैं । खेती करनेवाला हरेक आदमी ऊँट नहीं खरीद सकता । आजकल अच्छे-अच्छे जवान बैल मारे जानेके कारण बैल भी महँगे हो गये हैं, तो भी वे ऊँट-जितने महँगे नहीं हैं । यदि घरोंमें गायें रखी जायँ तो बैल घरोंमें ही पैदा हो जाते हैं, खरीदने नहीं पड़ते । विदेशी गायोंके जो बैल होते हैं, वे खेतीमें काम नहीं आ सकते; क्योंकि उनके कन्धे न होनेसे उनपर जुआ नहीं रखा जा सकता ।

गाय पवित्र होती है । उसके शरीरका स्पर्श करनेवाली हवा भी पवित्र होती है । गायके गोबर-मूत्र भी पवित्र होते हैं । गोबरसे लिपे हुए घरोंमें प्लेग, हैजा आदि भयंकर बीमारियाँ नहीं होतीं । इसके सिवाय युद्धके समय गोबरसे लिपे हुए मकानोंपर बमका उतना असर नहीं होता, जितना सीमेंट आदिसे बने हुए मकानोंपर होता है । गोबरमें जहर खींचनेकी विशेष शक्ति होती है । काशीमें कोई व्यक्ति साँप काटनेसे मर गया । लोग उसकी दाह-क्रिया करनेके लिये उसको गंगाके किनारे ले गये । वहाँपर एक साधु रहते थे । उन्होंने पूछा कि इस व्यक्तिको क्या हुआ ? लोगोंने कहा यह साँप काटनेसे मरा है । साधुने कहा कि यह मरा नहीं है, तुमलोग गायका गोबर ले आओ । गोबर लाया गया । साधुने उस व्यक्तिकी नासिका छोड़कर उसके पूरे शरीरमें (नीचे-ऊपर) गोबरका लेप कर दिया । आधे घण्टेके बाद गोबरका फिर दूसरा लेप किया । इससे उस व्यक्तिके श्वास चलने लगे और वह जी उठा । हृदयके रोगोंको दूर करनेके लिये गोमूत्र बहुत उपयोगी है । छोटी बछड़ीका गोमूत्र रोज तोला-दो-तोला पीनेसे पेटके रोग दूर होते हैं । एक सन्तको दमाकी शिकायत थी, उनको गोमूत्र-सेवनसे बहुत फायदा हुआ है । आजकल तो गोबर और गोमूत्रसे अनेक रोगोंकी दवाइयाँ बनायी जा रही हैं । गोबरसे गैस भी बनने लगी है । जो गैस चूल्हे जलानेमें काम आती है ।

खेतोंमें गोबर-गोमूत्रकी खादसे जो अन्न पैदा होता है, वह भी पवित्र होता है । खेतोंमें गायोंके गोबर और मूत्रसे जमीनकी जैसी पुष्टि होती है, वैसी पुष्टि विदेशी रासायनिक खादसे नहीं होती । जैसे एक बार अंगूरकी खेती करनेवालेने प्रयोग करके बताया कि गोबरकी खाद डालनेसे अंगूरके गुच्छे जितने बड़े-बड़े होते हैं, उतने विदेशी खाद डालनेसे नहीं होते । विदेशी खाद डालनेसे कुछ ही वर्षोंमें जमीन खराब हो जाती है अर्थात् उसकी उपजाऊ शक्ति नष्ट हो जाती है । परन्तु गोबर-गोमूत्रसे जमीनकी उपजाऊ शक्ति ज्यों-की-त्यों बनी रहती है । विदेशोंमें रासायनिक खातसे  बहुत-से खेत खराब हो गये हैं, जिन्हें उपजाऊ बनानेके लिये वे लोग भारतसे गोबर मँगवा रहे हैं और भारतसे गोबरके जहाज भर-भरकर विदेशोंमें जा रहे हैं ।

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।। श्रीहरिः ।।


       आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद शुक्ल द्वादशीवि.सं.२०७७, रविवा
भगवन्नाम


“ होहि राम को नाम जपु ”

अध्यात्मरामायणमें भगवान्‌ शंकर खुद रामजीसे कहते हैं‒‘भगवन्‌ ! मैं भवानीके सहित काशीमें रहता हूँ । ‘मुमूर्षुमाणस्य दिशामि मन्त्रं तव रामनाम’ आपका जो राम-नाम मन्त्र है उसका मैं दान देता हूँ मरनेवालेको कि ले लो भाई जिससे तुम्हारा कल्याण हो जाय । एक सज्जन कहते थे, मैंने कई आदमियोंको देखा है । काशीमें मरनेवालेका कान ऊँचा हो जाता है ! मानो शंकर इस कानमें मन्त्र देते हैं । वह नाम अपने भी ले सकते हैं, कितनी मौजकी बात है ! कितना ऊँचा नाम है ! जो भगवान्‌ शंकरका इष्ट है, वह हम ले सकते हैं कलियुगी जीव ! कैसी कृपा हो गयी, अलौकिक कृपा हो रही है । थोड़ी-सी बात है । नाम लेने लग जाय, ‘राम राम राम’ । सन्तोंने कहा है, ‘मुक्ति मुण्डे में थारे’ तेरे मुँहमें मुक्ति पड़ी है । राम-राम लेकर निहाल हो जा तू । ऐसा सस्ता भगवान्‌का नाम । जपने लग जाओ, सीधी बात है । खुला भगवान्‌का नाम है । तिजोरियोंमें बन्द धनको तो आप हिम्मत करके खुला लेते हैं । पर चौड़े (खुले) पड़े इस धनको लेते ही नहीं ।

राम दड़ी चौड़े पड़ी, सब कोई खेलो आय ।
दावा  नहीं  सन्तदास  जीते  सो  ले जाय ॥

जो चाहे सो ले जाय, कैसी बढ़िया बात ! कितनी उत्तम बात ! सबके लिये खुला है । किसीके लिये मनाही नहीं, ऐसा भगवान्‌का नाम तत्परतासे लिया जाय, उत्साहपूर्वक, प्रेमसे, अपने प्रभुका समझ करके ।

सन्तोंने कहा‒परलोकमें नाम लेनेवाले और नाम न लेनेवाले दोनों रोते हैं । क्यों ? नाम लेनेवाले रोते हैं कि इस बातका पता नहीं था कि नामकी इतनी महिमा निकलेगी । यह पता होता तो रात-दिन नाम लेते । नाम न लेनेवाले रोते हैं कि हमरा समय खाली चला गया । भाई, अब अपनेको पता लग गया । मरनेके बाद पश्चात्ताप करोगे तब क्या होगा ? अभी समय है । जबतक यह श्वासकी धोंकनी चलती है, आँखें टिमटिमाती हैं, जीते हैं‒यह मौका है; भगवान्‌का नाम ले लें । लोग हँसे तो परवाह नहीं ।

हस्ती की चाल  चलो  मन  मेरा,
जगत  कूकरी   को   भुसबा  दे ।
तूं तो राम सिमर जग हंसवा दे ॥

लोग हँसते हैं तो अच्छी बात‒हँसो भाई, हँसकर खुश होते हैं । खुशीमें हँसी आती है, बड़े आनन्दकी बात है । हम भगवान्‌का नाम लेवें तो उनको हँसी आवे, बड़ी अच्छी, बड़े आनन्दकी, बड़ी खुशीकी बात है । अपने तो भगवान्‌के नाममें लग जाओ, बस । हँसी करो, तिरस्कार करो, दिल्लगी उड़ाओ, कोई बात नहीं है । सम्मान-मानमें तो नुकसान है । अपमान, निन्दा सहनेमें नुकसान नहीं है । इससे पापोंका ही नाश होता है । इधर आप नाम लो और वे हँसी-दिल्लगी उड़ावें तो डबल लाभ होगा ।

तेरे भावैं जो करो,  भलौ  बुरौ  संसार ।
नारायण तू बैठिकै अपनौ भुवन बुहार ॥

दूसरे करते हैं कि नहीं करते हैं‒इस तरफ खयाल करनेकी जरूरत नहीं है । जैसे भूख लगती है तो यह पूछते नहीं कि तुमलोगोंने भोजन कर लिया है कि नहीं; क्योंकि मैं अब भोजन करना चाहता हूँ । जब प्यास लगती है तो यह नहीं पूछते कि तुमलोगोंने जल पिया है कि नहीं; क्योंकि मैं जल पीना चाहता हूँ । प्यास लग गयी तो पी लो भाई जल । ऐसे भगवान्‌के नामकी प्यास लगनी चाहिये भीतर । दूसरा लेता है कि नहीं लेता है । क्या करता है, क्या नहीं करता है । पर खुदको लाभ ले ही लेना चाहिये ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


‒ ‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे

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।। श्रीहरिः ।।


       आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद शुक्ल एकादशीवि.सं.२०७७, शनिवा
भगवन्नाम


“ होहि राम को नाम जपु ”

यह सब संसार आपको धोखा देगा, आपसे विमुख हो जायगा, चला जायगा, रहेगा नहीं । शरीर भी नहीं रहेगा । इनको आप अपना कहते हैं‒यह बहुत बड़ी भारी गलती है । इनसे विमुख होकर भगवान्‌से कहें‒ ‘हे नाथ ! मैं आपका हूँ और आप मेरे हैं ।’ निहाल हो जाओगे, निहाल ।

‘होहि राम को नाम जपु’‒नाम जपना हो तो रामका होकर नाम जपो । चलते-फिरते जपो, क्योंकि हमारे प्रभुका नाम है ।

जाट भजो गूजर भजो भावे भजो अहीर ।
तुलसी रघुबर नाममें  सब काहूका सीर ॥

भाई, बहन, पढ़ा-लिखा, अपढ़, रोगी, निरोगी कोई क्यों न हो ? परमात्माके नाममें सबका अधिकार है । पिताकी सम्पत्तिमें पुत्रका पूरा अधिकार है । इस वास्ते हमारे प्रभुका नाम है । कौन मना कर सकता है ? बताइये ! हमारे माँ-बाप हैं । ऐसे भगवान्‌पर अधिकार जमा देवें ।

कलिसंतरणोपनिषद्‌में नामकी महिमा आयी है । नारदजीने ब्रह्माजीके पास जाकर कहा‒ ‘महाराज ! कलियुगमें रहते हुए संसारसे कैसे उद्धार कर लें ।’ तो ब्रह्माजी कहते हैं ‘भगवान्‌का नाम लेते हुए ।’ कौन-सा नाम ? तो कहा‒ ‘हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण  कृष्ण हरे हरे ॥’ यह नाम बताया । इसकी विधि क्या है ? ब्रह्माजीने कहा‒विधि है ही नहीं । किये जाओ, लिये जाओ । शुद्ध-अशुद्ध हर अवस्थामें । वह तो भाई उपनिषदोंका मन्त्र है । पर ‘राम-राम’ तो बड़ा सीधा और बड़ा सरल है । इसको साबर-मन्त्र कहते हैं । ‘साबर मन्त्र जाल जिन्ह सिरिजा ।’ इसमें क्या है ?
अनमिल आखर अरथ न जापू ।
प्रगट   प्रभाउ   महेस   प्रतापू ॥

साबर-मन्त्र कोई छन्दकी विधिसे नहीं बैठते, कोई मात्राओंसे नहीं बैठते । साबर-मन्त्र है, भगवान्‌ने जो कह दिया, वह मन्त्र हो गया । ऐसे भगवान्‌का नाम है, यह राम-नाम, इतना विलक्षण है ।

‘सप्तकोट्यो महामन्त्राश्चित्तविभ्रमकारकाः’

सात करोड़ बड़े-बड़े मन्त्र हैं चित्तको भ्रमित करनेवाले । ‘एक एव परो मन्त्रो राम इत्यक्षरद्वयम्’ यह दो अक्षरवाला राम-नाम बड़ा विलक्षण है । पर महान मन्त्र है ।

महामन्त्र जोइ जपत महेसू ।
कासीं  मुकुति  हेतु  उपदेसू ॥

महामन्त्रके जपते ही ईश महेश हो गये । केवल महेश हो गये नहीं, काशीमें नाम महाराजका क्षेत्र खोल दिया । कोई धान, चून देता है, कोई आटा-सीधा देता है । भगवान्‌ शंकरने मुक्तिका क्षेत्र खोल दिया । बस काशीमें जो मर जाय, मुक्त हो जाय । इस प्रकार पृथ्वीमण्डलपर मुक्तिका क्षेत्र खोला हुआ है भगवान्‌ शंकरने । किसके बलपर ? राम-नामके बलपर ।


‘कासीं मुकुति हेतु उपदेसू’ राम-नाम महान मन्त्र है । भगवान्‌ शंकर इसे जपते हैं । इस नामके प्रभावसे आपने मुक्तिका क्षेत्र खोल दिया कि सबकी मुक्ति हो जाय ।

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