।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र शुक्ल सप्तमी, वि.सं.२०७७ मंगलवार
क्रोधपर विजय कैसे हो ?


जैसे आप हिसाब सिखते हो तो उस हिसाबका गुर सीख लेते हो तो वह हिसाब सुगमतासे हो जाता है । ऐसे ही हरेक प्रश्नका एक गुर होता हैं उसको आपलोग सीख लो तो प्रश्नका उत्तर स्वतः आ जायगा ।

प्रश्न आया है कि हम क्रोधपर विजय कैसे पावें ? तो क्रोध पैदा किससे होता है ? गीताने कहा—‘कामसे ही क्रोध पैदा होता है—‘कामात्क्रोधोऽभिजायते ।’ (२/६२) वह काम (कामना) क्या है ? मनुष्यने समझ रखा है कि ‘धन, सम्पत्ति, वैभव आदिकी कामना होती है’—ये भी सब कामना ही है, पर मूल—असली कामना क्या है ? ‘ऐसा होना चाहिये और ऐसा नहीं होना चाहिये’—यह जो भीतरकी भावना है, इसका नाम कामना है ।

आप पहले यह पकड़ लेते हो कि ‘ऐसा होना ही चाहिये’ और वह नहीं होगा तो क्रोध आ जायगा । ‘ऐसा नहीं होना चाहिये’ और कोई वैसा करेगा या उससे विपरीत करेगा तो क्रोध आ जायगा । ऐसा होना चाहिये और ऐसा नहीं होना चाहिये—यही क्रोधका खास कारण है ।

ऐसा होना चाहिये और ऐसा नहीं होना चाहिये—इस कामनामें कोई फायदा नहीं है; क्योंकि दुनियामात्र हमसे पूछकर करेगी क्या ? हमारे मनके अनुसार ही करेगी क्या ? आप अपनी स्त्री, पुत्र, अपने नौकर आदिसे चाहते हैं कि ये हमारा कहना करें तो क्या उनके मनमें नहीं हैं ? ऐसा करूँ और ऐसा न करूँ—ऐसा उनके मनमें नहीं है क्या ? अगर उनका मन इससे रहित है, तब तो आप कहें, वैसा वे कर देंगे, पर उनके मनमें भी तो ‘ऐसा करूँ और ऐसा न करूँ’ ऐसी दो बातें पड़ी हैं तो वे आपकी ही कैसे मान लें ? आपकी ही वे मान लें तो फिर आप भी उनकी मान लो । जब आप भी उनकी माननेके लिये तैयार नहीं है तो फिर अपनी बात मनवानेका आपको क्या अधिकार है ? इसलिये ‘ऐसा होना चाहिये और ऐसा नहीं होना चाहिये’—यह भाव मनमें आ जाय तो ‘ये ऐसा ही करें’, अपना यह आग्रह छोड़ दो । इस आग्रहमें अपना अभिमान अर्थात् मैं बड़ा हूँ, इनको मेरी बात माननी चाहिये—यह बड़प्पनका अभिमान ही खास कारण है और वैसा न करनेसे अभिमान ही क्रोधरूपसे हो जाता है ।


अगर आप शान्ति चाहते हो तो अभिमान मिटाओ; क्योंकि अभिमान सम्पूर्ण आसुरी सम्पत्तिका मूल है । अभिमानरूप बहड़ेकी छायामें आसुरी सम्पत्तिरूप कलियुग रहता है । आसुरी सम्पत्तिके क्रोध, लोभ,मोह, मद, इर्षा, दम्भ, पाखण्ड आदि जितने अवगुण हैं, वे सब अभिमानके आश्रित रहते हैं, क्योंकि अभिमान उनका राजा है । उसको आप छोड़ते नहीं तो क्रोध कैसे छूट जायगा ! इसलिये उस अभिमानको छोड़ दो ।

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।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र शुक्ल षष्ठी, वि.सं.२०७७ सोमवार
संसारमें रहनेकी विद्या


आप बाल-बच्‍चोंको व्यसन मत सिखाओ । कपड़े आदि बढ़िया (फैशनवाले) पहनाकर राजी होते हैं कि हमारे बच्‍चे ठीक हो रहे हैं । उनकी आदत बिगड़ रही है बेचारोंकी । इसलिए सादगी रखो, अपने भी सादगी, बच्‍चोंके भी सादगी । अच्छे ढंगसे काम करो, उत्साह रखो, काम-धन्धा ठीक करो । बाल-बच्‍चोंसे भी काम कराओ । आपके घर नौकर है (नौकर रखनेकी जरुरत है तो रखो), नौकर रखकर नौकरोंके वशीभूत मत हो जाओ । यदि नौकर बढ़िया काम नहीं करे, तो आपको भी सब काम आना चाहिये । नौकर जितना काम करते हैं, आपको भी आ जाय तो आपको चकमा नहीं दे सकते । रसोइया कहे–घी इतना लग गया । अरे ! हम जानते हैं, इतना घी कैसे लग गया ? हाँ साहब लग गया । कैसे बतायें यह बात ? आजकल काम-धन्धा करनेमें बेइज्जती समझने लगे हैं ।

माता सीता काम करती थीं, रसोई बनाती थीं । लक्ष्मण आदि थे, उन्हें बड़े प्यारसे भोजन कराती थीं । स्वयं खटकर परिश्रम करके सासुओंकी सेवा करती थीं । क्या वह छोटे घरकी हो गयीं ? सैकड़ों ही नहीं हजारों दासियाँ थीं, उनके सामने अपने घरका काम करती थीं । लड़नेमें तो बेइज्जती नहीं समझतीं, घरके काम करनेमें बेइज्जती समझती हैं; बड़े पतनकी बात है । अतः अपना समय ठीकसे लगाओ । अच्छी आदत बननेपर आपकी ग्राहकता हो जायगी । सब आपको चाहेंगे, आपकी आवश्यकता पैदा होगी । घरके, बाहरके सब लोग चाहेंगे और यदि ऐसा नहीं करोगे तो समय तो जायगा हाथोंसे और आदत बिगड़ जायगी । बिगड़ी हुई आदत साथ चलेगी, स्वभाव बिगड़ जायगा । यह जन्म-जन्मान्तरोंतक साथ चलेगा । स्वभाव जिसने अपना निर्मल, शुद्ध बना लिया है, उसने असली काम बना लिया है । अपने साथमें चलनेकी असली पूँजी संग्रह कर ली । स्वभावको शुद्ध बनाओ, निर्मल बनाओ । तो क्या होगा ? ममता छूटेगी । सेवा करनेसे अहंकार छूटेगा । निर्मम-निरहंकार हो जाओगे । संसारका काम करते-करते ऊँची-से-ऊँची स्थितिको प्राप्त हो जाओगे । बस, लग जाओ तब काम होगा । इसलिये भाइयोंसे, बहिनोंसे कहना है कि सत्संग सुनो और सुननेके अनुसार अपना जीवन बनाओ । ऐसा जीवन बनेगा तो जीवन-निर्वाह होगा और मनमें शान्ति भी रहेगी । ‘निर्ममो निरहंकारः सः शान्तिमधिगच्छति’ (गीता २/७१) । महान् शान्तिकी प्राप्ति होगी । इस प्रकार भगवद्गीता व्यवहारमें परमार्थ सिखाती है । युद्धके समयमें कह दिया–

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो उद्धाय युज्यस्व  नैवं  पापमवाप्स्यसि ॥
                                                    (गीता २/३८)

युद्धसे परमात्माकी प्राप्ति हो जाय । कामको भगवान्‌का समझो, उत्साहसे करो । सेवा करनेवाला पवित्र हो जाता है । भगवान्‌का भजन हरदम करते रहो, जिससे सद्बुद्धि कायम रहे, भगवान्‌की याद बनी रहे ।

नारायण !   नारायण !!    नारायण !!!


−‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे

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।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र शुक्ल पंचमी, वि.सं.२०७७ रविवार
संसारमें रहनेकी विद्या


इसलिए आप अपने माता-पिताका, सास-ससुरका आदर करो, सेवा करो, सत्कार करो तो आपका असर पड़ेगा बालकोंपर । वृद्धावास्थामें भी आपकी सेवा करेंगे । परन्तु आप ऐसा नहीं करोगे, अपने माइतोंकी सेवा नहीं करोगे तो बालकोंपर भी ऐसा असर पड़ेगा । उनका स्वाभाव भी ऐसा ही बनेगा । आप सदा ही ऐसे नहीं रहोगे, जीते रहोगे तो बूढ़े भी होओगे । उस समय वे सेवा नहीं करेंगे, फिर आप कहेंगे कि ये सेवा नहीं करते, बात नहीं मानते । तो तुमने अपने माइतों-(बड़ों-) की सेवा कितनी की ? अब तुम क्यों आशा रखो ? इसलिए अपना आचरण अच्छा बनाओ ।

आजकल तो माँ-बाप बच्‍चोंको व्यसन सिखाते हैं, खेल सिखाते हैं । चाय पिलाते है, छोटे-छोटे छोरोंको । आजकल छोरा दूध नहीं पी सकते, मलाई आ जाय तो घृणा करते हैं । बड़े आश्चर्यकी बात है ! हमें तो बचपनकी बात याद है, दूध पीना होतो कहते थे कि क्या है इसमें, तारा (घीकी बूँदें) तो है ही नहीं ! आजकल घी तो कौन पी सके, हिम्मत ही नहीं है । वे मलाई ही नहीं खा सकते, चाय पीते हैं । राम ! राम ! राम ! चायसे माथा खराब हो जाय, नींद आवे नहीं । स्वास्थ्य बिगड़ जाय, आँखें खराब हो जायँ, दवाई लगे नहीं और पैसा लगे ज्यादा मुफ्तमें । यह दशा हो रही है, तो भाई ! ऐसा मत करो । गायोंका पालन करो, उनकी रक्षा करो । आपका जो गाँव है, क़स्बा है, अकाल पड़ जाय तो गायोंके लिये आप खर्च करो तो बड़ा अच्छा है । मोटर आप रख लेते हो धुएँके लिये और गायें नहीं रख सकते । कुत्ता-पालन तो कर लेंगे, गौऊका पालन नहीं करेंगे । वाह ! वाह ! वाह ! रे कलियुग महाराज ! आपने लिया अजब दिखायी ! यह दशा हो रही है ।

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।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७७ शनिवार
संसारमें रहनेकी विद्या


गायका दूध पीते हैं, उसे छानते हैं कि कहीं रूआँ (बाल) न आ जाय । दूध तो प्रसन्नतासे दिया जाता है, बाल टूटनेसे खून आता है खून । बाल आ जाय तो क्या हर्ज है ? अरे रूआँ एक भी टूटेगा तो गौ माताको दुःख होगा । अतः दुःख देकर ली हुई चीज बड़ी अनिष्टकारी होती है । लड़केवालोंको कहना चाहिये कि हम धन नहीं लेंगे, हम तो केवल कन्या लेंगे । कन्या-दान लेते हैं, कन्या-दान लेना भी तो दान है, बड़ा भारी दान है ! क्यों लेते हैं ? अभी हम लेंगे तो आगे भगवान् हमें पुत्री देगें तो हम भी कन्या दान करेंगे । ऐसा रिवाज है कि दहेजकी चीजें घरमें नहीं रखते, उसे कुटुम्बमें, परिवारमें लगा देते हैं । बेटीको, ब्राह्मणोंको, सबको बाँट देते हैं । घरमें कोई चीज न रह जाय ऐसे मिठाई आदि बाँटते हैं । अपनेपर तो कर्जा नहीं रहा और लोग सब राजी होते हैं ।

शादीके बाद बहूके पीहरसे कोई चीज आती है तो सास आदि उसकी निन्दा करती हैं कि क्या चीज भेजी ? बहूरानी सुन रही है, उसको लगे बुरा । भला माँकी निन्दा किसीको अच्छी लगेगी ? माँकी निन्दासे हृदयमें दुःख होता है । बादमें जब वह हो जायगी मालिकन तो जो चाहेगी वही होगा । इसलिए उसे प्यार करो, स्नेह करो, राजी रखो, बहूके घरसे जो आया उसमें अपने घरसे मिलाकर बाँटो । लोगोंसे कहो कि ऐसा बहुत आया है । तो बहूकी माँकी हो जायगी बड़ाई, इससे बहू खुश हो जायगी । आप कहेंगे कि रुपया लगता है, पर बीस-पचास रुपये और लगानेसे आदमी अपना हो जायगा । बहू आपकी हो जायगी । सदाके लिये खरीदी जायगी । सौ-पचास रुपएमें कोई आदमी ख़रीदा जाय तो कोई महँगा है ? सस्ता ही पड़ेगा, गहरा विचार करो । व्यवहार भी अच्छा रहेगा, प्रेम भी बढ़ेगा । बहू भी राजी होगी कि मेरी सासने मेरी माँकी महिमा की है । इतना खर्च किया, उसका उम्रभर असर पड़ेगा; इसलिए भाई ! थोडा-सा त्याग करो, उसका फल बड़ा अच्छा होगा ।

जो वस्तुएँ मिली हैं उनका सदुपयोग किया जाय । लड़के-लड़कीका ठीक तरहसे पालन किया जाय, अच्छी शिक्षा दी जाय । उनके अच्छे भाव बनाये जायँ, सद्गुणी और सदाचारी बनें । पैसे कमानेमें तो आपको समय रहता है, परन्तु बच्‍चे क्या कर रहे हैं, कैसे पल रहे हैं, क्या शिक्षा पा रहे हैं, इन बातोंकी तरफ आप खयाल ही नहीं करते । अरे भाई ! यह सम्पत्ति है असली । यह मनुष्य महान् हो जायगा । कितनी बढ़िया बात होगी ! जितने-जितने महापुरुष हुए हैं, उनकी माताएँ बड़ी श्रेष्ठ हुई हैं । ऐसी माताओंके बालक बढ़िया हुए हैं, संत-महात्मा हुए हैं । माँका स्वभाव आता है बालकोंमें, इस कारण माताओंको चाहिये कि बालकोंको अच्छी शिक्षा दें । परन्तु शिक्षा देती हैं उलटी, लड़कियोंको सिखाती हैं कि अपना धन तो रखना अपने पासमें । जब अलग होगी तो वह धन तेरे पासमें रह जायगा और ऐसे सिखाकर भेजती हैं कि ससुरालमें काम तू क्यों करे, तेरी जेठानी करे, ननद करे । तू काम मत किया कर । अब वहाँ कलह होगी, खटपट मचेगी । आपके बहू आयेगी, वह भी अगर ऐसी सीखी हुई आ जायगी तो वह भी ऐसा ही करेगी, काम नहीं करेगी । फिर आप कहेंगी कि हमारी बहू काम नहीं करती । आप अच्छा करो तो आपके लिये अच्छा होगा । बुरा करो तो बुरा होगा भाई !

कलियुग है इस हाथ दे, उस हाथ ले, क्या खूब सौदा नगद है ।

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।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र शुक्ल तृतीया, वि.सं.२०७७ शुक्रवार
संसारमें रहनेकी विद्या


एक लड़कीकी बात हमने सुनी । उस लड़कीकी शादी हो गयी । लड़की थी गरीब घरकी, लड़केवालोंने पैसा माँगा ज्यादा । उसका जी ऊब गया । लड़कीकी बड़ी अवस्था हो गयी थी । उसने कहा, पिताजी ! आप उधार लेकर उनसे विवाह कर दीजिये, अभी कोई बात नहीं, फिर मैं ठीक कर लूँगी । परन्तु आप मेरे लिये दान रूपसे मत देना । कन्याको उधर देता हूँ, ऐसा देना । कर दी शादी, शादी करनेके बाद धन खूब दिया । शादीके बाद वह गयी ससुरालमें तो खाटपर बैठ गयी और पतिसे कहा –‘लाओ मेरी जूती लाओ ।’
‘तेरी जूती मैं उठाऊँ !’ आश्चर्यसे पूछा ।
‘मेरे बापने पैसा दिया है, आपको ख़रीदा है । पता है कि नहीं ?’
‘कितने रुपये लगे ?’
‘हजारों रुपये लगे हैं ।’ कन्याने उत्तर दिया ।
अब उस लड़केने भोजन नहीं किया । माँने पूछा क्या बात है ? ‘माँ ! मेरी जो स्त्री आयी है वह यहाँतक कहती है कि मेरी जूती उठाकर लाओ ।’
‘बहू ! ऐसा क्यों कहती हो ?’ माँने पूछा ।
‘हमारे बापने इतना खर्चा किया है, कर्जा लेकर खर्च किया है, इसलिए यह नौकर है हमारा, इसे लाना पड़ेगा ।’
लड़केने कहा–‘मैं तो जूती नहीं उठाऊँगा, अगर ऐसी बात है तो मैं रोटी नहीं खाऊँगा ।’
मेरे बापके नौकर हो, मेरे बापने पैसे दिये हैं । पता है कि नहीं । ऐसे मुफ्त आये हैं क्या आप ! इतना इन्तजाम किया है, सोलह हजार रुपये उधार लिये थे ।’
इस प्रकार कहने-सुनानेसे लड़केवालोंने रूपया वापिस किया और लड़की बहूकी तरह रहने लगी । कन्याएँ लज्जाकी मूर्ति हैं । इनका इस प्रकार तिरस्कार करना, समाजमें बड़ा अपमान होता है ।
बड़े दुःखकी बात है ! खर्चा तो पूरा करते हो, फिर काम नहीं चलता तो बेईमानी करते हो । बड़े अन्यायकी बात है । इसका नतीजा खराब होगा । जो अन्याय करते हैं उनकी आत्माको शान्ति नहीं मिलेगी । जो धन दुःख देकर लिया जायगा, वह धन आकर आग लगायेगा ।

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