आप बाल-बच्चोंको व्यसन मत सिखाओ । कपड़े आदि बढ़िया (फैशनवाले) पहनाकर राजी
होते हैं कि हमारे बच्चे ठीक हो रहे हैं । उनकी आदत बिगड़ रही है बेचारोंकी । इसलिए सादगी रखो, अपने भी सादगी, बच्चोंके भी सादगी । अच्छे ढंगसे काम करो, उत्साह रखो,
काम-धन्धा ठीक करो । बाल-बच्चोंसे भी काम कराओ । आपके घर नौकर है (नौकर रखनेकी
जरुरत है तो रखो), नौकर रखकर नौकरोंके वशीभूत मत हो जाओ । यदि नौकर बढ़िया काम नहीं करे, तो आपको भी सब काम आना
चाहिये । नौकर जितना काम करते हैं, आपको भी आ जाय तो आपको चकमा नहीं दे सकते ।
रसोइया कहे–घी इतना लग गया । अरे ! हम जानते हैं, इतना घी कैसे लग गया ? हाँ साहब
लग गया । कैसे बतायें यह बात ? आजकल काम-धन्धा करनेमें
बेइज्जती समझने लगे हैं ।
माता सीता काम करती थीं, रसोई बनाती थीं । लक्ष्मण
आदि थे, उन्हें बड़े प्यारसे भोजन कराती थीं । स्वयं खटकर परिश्रम करके सासुओंकी
सेवा करती थीं । क्या वह छोटे घरकी हो गयीं ? सैकड़ों ही नहीं हजारों दासियाँ थीं,
उनके सामने अपने घरका काम करती थीं । लड़नेमें तो बेइज्जती नहीं समझतीं, घरके काम
करनेमें बेइज्जती समझती हैं; बड़े पतनकी बात है । अतः अपना समय ठीकसे लगाओ । अच्छी आदत बननेपर आपकी ग्राहकता
हो जायगी । सब आपको चाहेंगे, आपकी आवश्यकता पैदा होगी । घरके, बाहरके सब लोग
चाहेंगे और यदि ऐसा नहीं करोगे तो समय तो जायगा हाथोंसे और आदत बिगड़ जायगी । बिगड़ी हुई आदत साथ चलेगी, स्वभाव बिगड़ जायगा । यह
जन्म-जन्मान्तरोंतक साथ चलेगा । स्वभाव जिसने अपना निर्मल, शुद्ध बना लिया है,
उसने असली काम बना लिया है । अपने साथमें चलनेकी असली पूँजी संग्रह कर ली ।
स्वभावको शुद्ध बनाओ, निर्मल बनाओ । तो क्या होगा ? ममता छूटेगी । सेवा करनेसे अहंकार छूटेगा । निर्मम-निरहंकार हो जाओगे । संसारका
काम करते-करते ऊँची-से-ऊँची स्थितिको प्राप्त हो जाओगे । बस, लग जाओ तब काम
होगा । इसलिये भाइयोंसे, बहिनोंसे कहना है कि सत्संग सुनो और सुननेके अनुसार अपना जीवन बनाओ । ऐसा
जीवन बनेगा तो जीवन-निर्वाह होगा और मनमें शान्ति भी रहेगी । ‘निर्ममो निरहंकारः सः शान्तिमधिगच्छति’ (गीता २/७१) ।
महान् शान्तिकी प्राप्ति होगी । इस प्रकार भगवद्गीता व्यवहारमें परमार्थ सिखाती है
। युद्धके समयमें कह दिया–
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो उद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि
॥
(गीता २/३८)
युद्धसे परमात्माकी प्राप्ति हो जाय । कामको भगवान्का समझो, उत्साहसे करो । सेवा करनेवाला पवित्र हो
जाता है । भगवान्का भजन हरदम करते रहो, जिससे सद्बुद्धि कायम रहे, भगवान्की याद
बनी रहे ।
नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
−‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे
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