यज्ञ, दान, तप, तीर्थ,
व्रत आदि तो क्रियाएँ हैं, पर भगवन्नामका जप क्रिया
नहीं है, प्रत्युत पुकार है । जैसे किसीको डाकू मिल जाय और वह लूटने लगे, मारपीट करने लगे तो अपनेमें छूटनेकी शक्ति
न देखकर वह रक्षाके लिये पुकारता है तो यह पुकार क्रिया नहीं है । पुकारमें अपनी क्रियाका,
अपने बलका भरोसा अथवा अभिमान नहीं होता । इसमें भरोसा उसका होता है,
जिसको पुकारा जाता है । अतः पुकारमें अपनी
क्रिया मुख्य नहीं है, प्रत्युत भगवान्से अपनेपनका सम्बन्ध मुख्य है । सन्तोंने कहा है‒
हरिया बदीवान ज्यों, करियै कूक पुकार ।
जैसे किसीको जबर्दस्ती बाँध दिया जाय तो वह पुकारता है, ऐसे ही भगवान्को
पुकारा जाय, उनके नामका जप किया जाय तो भगवान्के साथ अपनापन प्रकट हो जाता है । इस अपनेपनमें अर्थात् भगवत्सम्बन्धमें जो
शक्ति है, वह यज्ञ, दान, तप आदि क्रियाओंमें नहीं है । इसलिये नामजपका विलक्षण प्रभाव होता है ।
भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ ।
नाम जपत काल दिसि दसहूँ ॥
(मानस, बाल॰ २८ । १)
किसी भी प्रकारसे नामजप करते-करते यह विलक्षणता प्रकट हो जाती है । परन्तु भावपूर्वक, समझपूर्वक नामजप किया जाय तो बहुत जल्दी उद्धार हो जाता है‒
सादर सुमिरन जे नर करहीं
।
भव बारिधि गोपद इव तरहीं ॥
(मानस, बाल॰ ११९ । २)
तात्पर्य है कि भावपूर्वक, लगनपूर्वक नामजप करनेसे संसारसमुद्र गोपदकी तरह बीचमें ही रह जाता
है । उसको तैरकर पार नहीं करना पड़ता, प्रत्युत वह स्वतः पार हो
जाता है और भगवान्के साथ जो नित्ययोग है, वह प्रकट हो जाता है ।
जैसे प्यास लगनेपर जलकी याद आती है तो वह याद भी जलरूप ही है, ऐसे ही परमात्माकी
याद भी परमात्माका स्वरूप ही है । जड़ होनेके कारण जल प्यासेको नहीं चाहता,
पर भगवान् स्वाभाविक ही जीवको चाहते हैं; क्योंकि
अंशीका अपने अंशमें स्वाभाविक प्रेम होता है । कुआँ प्यासेके पास नहीं जाता,
प्रत्युत प्यासा कुएँके पास जाता है । परन्तु भगवान् स्वयं भक्तके पास
आते हैं । वास्तवमें तो भक्त जहाँ परमात्माको याद करता है, वहाँ
परमात्मा पहलेसे ही मौजूद हैं ! अतः परमात्माको याद करना,
उनके नामका जप करना क्रिया नहीं है । क्रिया
प्रकृतिका कार्य है, पर नामजप
प्रकृतिसे अतीत है । वास्तवमें उपासक (जापक) और उपास्य‒दोनों ही प्रकृतिसे अतीत हैं । अतः नामजपसे स्वयं परमात्माके
सम्मुख हो जाता है; क्योंकि पुकार स्वयंकी होती है, मन-बुद्धिकी नहीं । इसलिये नामजप गुणातीत है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्यकी खोज’ पुस्तकसे
|
|