।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण दशमी, वि.सं. २०७५ सोमवार
                   एकादशी-व्रत कल है
दस नामापराध



उस लड़कीने अपने पिताजीसे कह दिया‒ ‘पिताजी ! आपके जवाँई तो आजकल उद्दण्ड हो गये हैं ? कहना मानते हैं नहीं । ससुरने बुलाकर कहा कि ऐसा मत करो, तो कहने लगा‒‘जब आप हमारे ससुर हैं, तो मेरेको किस बातका भय है ।’ ऐसा होते-होते एक बार उसका जवाँई किसी अपराधमें पकड़ा गया और उसे फाँसीकी सजा हो गयी । जब लडकीको पता लगा तो उसने आकर कहा‒पिताजी ! मैं विधवा हो जाऊँगी । पिताजी कहते हैं‒बेटी ! तू आज नहीं तो कल, एक दिन विधवा हो जायगी । उसकी रक्षा मैं कहाँतक करूँ । मेरेको अधिकार मिला है, वह दुरुपयोग करनेके लिये नहीं है । बेटीके मोहमें आकर पापका अनुमोदन करूँ, पापकी वृद्धि करूँ । यह बात नहीं होगी । वे नहीं गये ।

ऐसे ही नाम महाराजके भरोसे कोई पाप करेगा तो नाम-महाराज वहाँ नहीं जायँगे । उसका वज्रलेप पाप होगा, बड़ा भयंकर पाप होगा ।

‘धर्मान्तरैः साम्यम्’ (१०) भगवान्‌के नामकी अन्य धर्मोंके साथ तुलना करना अर्थात् गंगास्नान करो, चाहे नाम-जप करो । नाम-जप करो, चाहे गोदान कर दो । सब बराबर है । ऐसे किसीके बराबर नामकी बात कह दो तो नामका अपराध हो जायगा । नाम महाराज तो अकेला ही है । इसके समान दूसरा कोई साधन, धर्म है ही नहीं । भगवान् शंकरका नाम लो चाहे भगवान् विष्णुका नाम लो । ये नाम दूसरोंके समान नाम नहीं हैं । नामकी महिमा सबमें अधिक है, सबसे श्रेष्ठ है ।

इस प्रकार इन दस अपराधोंसे रहित होकर नाम लिया जाय तो वह बड़ी जल्दी उन्नति करनेवाला होता है । अगर नाम जपनेवालेसे इन अपराधोमेंसे कभी कोई अपराध बन भी जाय तो उसके लिये दूसरा प्रायश्चित्त करनेकी जरूरत नहीं है उसको तो ज्यादा नाम-जप ही करना चाहिये; क्योंकि नामापराधको दूर करनेवाला दूसरा प्रायश्चित्त है ही नहीं ।

नाम महाराजकी तो बहुत विलक्षण, अलौकिक महिमा है, जिस महिमाको स्वयं भगवान् भी कह नहीं सकते । इस वास्ते जो केवल नामनिष्ठ है; जो रात-दिन नाम-जपके ही परायण है, जिनका सम्पूर्ण जीवन नाम-जपमें ही लगा है; नाम महाराजके प्रभावसे उनके लिये इन अपराधोंमेंसे कोई भी अपराध लागू नहीं होता । ऐसे बहुत-से सन्त हुए हैं, जो शास्त्रों, पुराणों, स्मृतियों आदिको नहीं जानते थे, परन्तु नाम महाराजके प्रभावसे उन्होंने वेदों, पुराणों आदिके सिद्धान्त अपनी साधारण ग्रामीण भाषामें लिख लिये हैं । इस वास्ते सच्चे हृदयसे नाममें लग जाओ भाई; क्योंकि यह कलियुगका मौका है । बड़ा सुन्दर अवसर मिल गया है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे

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।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण अष्टमी, वि.सं. २०७५ रविवार
दस नामापराध



यह महिमा किस बातकी है ? यह सब भगवान्‌को, भगवान्‌के नामको लेकर है । आज भी हम गोस्वामीजीकी महिमा गाते हैं, रामायणजीकी महिमा गाते हैं, तो क्या है ? भगवान्‌का चरित्र है, भगवान्‌का नाम है । गोस्वामीजी महाराज भी कहते हैं‒‘एहि महँ रघुयति नाम उदारा ।’ इसमें भगवान्‌का नाम है जो कि वेद, पुराणका सार है । इस कारण रामायणकी इतनी महिमा है । भगवान्‌की महिमा, भगवान्‌के चरित्र, भगवान्‌के गुण होनेसे रामायणकी महिमा है । जिसका भगवान्‌से सम्बन्ध जुड़ जाता है, वह विलक्षण हो जाता है । गंगाजी सबसे श्रेष्ठ क्यों हैं ? भगवान्‌के चरणोंका जल है । भगवान्‌के साथ सम्बन्ध है । इस वास्ते भगवान्‌के नामकी महिमामें अर्थवादकी कल्पना करना गलत है ।

‘नामास्तीति निषिद्धवृत्तिविहितत्यागौ’(८) निषिद्ध आचरण करना और (१) विहित कर्मोंका त्याग कर देना । जैसे, हम नाम-जप करते हैं तो झूठ-कपट कर लिया, दूसरोंको धोखा दे दिया, चोरी कर ली, दूसरोंका हक मार लिया तो इसमें क्या पाप लगेगा । अगर लग भी जाय तो नामके सामने सब खत्म हो जायगा; क्योंकि नाममें पापोंके नाश करनेकी अपार शक्ति है‒इस भावसे नामके सहारे निषिद्ध आचरण करना नामापराध है ।

भगवान्‌का नाम लेते हैं । अब संध्याकी क्या जरूरत है ? गायत्रीकी क्या जरूरत है ? श्राद्धकी क्या जरूरत है ? तर्पणकी क्या जरूरत है ? क्या इस बातकी जरूरत है ? इस प्रकार नामके भरोसे शास्त्र-विधिका त्याग करना भी नाम महाराजका अपराध है । यह नहीं छोड़ना चाहिये । अरे भाई ! यह तो कर देना चाहिये । शास्त्रने आज्ञा दी है । गृहस्थोंके लिये जो बताया है, वह करना चाहिये ।

नाम्नोऽस्ति यावती शक्तिः पापनिर्हरणे हरेः ।
तावत् कर्तुं न शक्नोति  पातकं पातकी जनः ॥

भगवान्‌के नाममें इतने पापोंके नाश करनेकी शक्ति है कि उतने पाप पापी कर नहीं सकता । लोग कहते हैं कि अभी पाप कर लो, ठगी-धोखेबाजी कर लो, पीछे राम-राम कर लेंगे तो नाम उसके पापोंका नाश नहीं करेगा । क्योंकि उसने तो भगवन्नामको पापोंकी वृद्धिमें हेतु बनाया है । भगवान्‌के नामके भरोसे पाप किये हैं, उसको नाम कैसे दूर करेगा ?


इस विषयमें हमने एक कहानी सुनी है । एक कोई सज्जन थे । उनको अंग्रेजोंसे एक अधिकार मिल गया था कि जिस किसीको फाँसी होती हो, अगर वहाँ जाकर खड़ा रह जाय तो उसके सामने फाँसी नहीं दी जायगी‒ऐसी उसको छूट दी हुई थी । उसकी लड़की जिसको ब्याही थी, वह दामाद उद्दण्ड हो गया । चोरी भी करे, डाका भी डाले, अन्याय भी करे । उसकी स्त्रीने मना किया तो वह कहता है क्या बात है ? तेरा बाप, अपनी बेटीको विधवा होने देगा क्या ? उसका जवाँई हूँ ।

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।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण सप्तमी, वि.सं. २०७५ शनिवार
दस नामापराध



बड़े अच्छे-अच्छे महापुरुष हुए हैं और उन्होंने कहा है‒‘भैया ! भगवान्‌का नाम लो ।’ असम्भव सम्भव हो जाय । लोगोंने ऐसा करके देखा है । असम्भव बात भी सम्भव हो जाती है । जो नहीं होनेवाली है वह भी हो जाती है । जिनके ऐसी बीती है उम्रमें, उन लोगोंने कहा है । ऐसी असम्भव बात सम्भव हो जाय, न होनेवाली हो जाय । इसमें क्या आश्चर्य है ? क्योंकि ‘कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुं समर्थ ईश्वरः’ ईश्वर करनेमें, न करनेमें, अन्यथा करनेमें समर्थ होता है । वह ईश्वर वशमें हो जाय अर्थात् भगवान् भगवन्नाम लेनेवालेके वशमें हो जाते हैं ।

नाम महाराजसे क्या नहीं हो सकता ? ऐसा कुछ है ही नहीं, जो न हो सके अर्थात् सब कुछ हो सकता है । भगवान्‌का नाम लेनेसे ऐसे लाभ होता है बड़ा भारी । नामसे बड़े-बड़े असाध्य रोग मिट गये हैं, बड़े-बड़े उपद्रव मिट गये हैं, भूत-प्रेत-पिशाच आदिके उपद्रव मिट गये हैं । भगवान्‌का नाम लेनेवाले सन्तोंके दर्शनमात्रसे अनेक प्रेतोंका उद्धार हो गया । भगवान्‌का नाम लेनेवाले पुरुषोंके संगसे, उनकी कृपासे अनेक जीवोंका उद्धार हो गया है ।

सज्जनो ! आप विचार करें तो यह बात प्रत्यक्ष दीखेगी कि जिन देशोंमें सन्त-महात्मा घूमते हैं, जिन गाँवोंमें, जिन प्रान्तोंमें सन्त रहते हैं और जिन गाँवोंमें सन्तोंने भगवान्‌के नामका प्रचार किया है, वे गाँव आज विलक्षण हैं दूसरे गाँवोंसे । जिन गाँवोंमें सौ-दो-सौ वर्षोंसे कोई सन्त नहीं गया है, वे गाँव ऐसे ही पड़े हैं अर्थात् वहांके लोगोंकी भूत-प्रेत-जैसी दशा है । भगवान्‌का नाम लेनेवाले पुरुष जहाँ घूमे हैं, पवित्रता आ गयी, विलक्षणता आ गयी, अलौकिकता आ गयी । वे गाँव सुधर गये, घर सुधर गये, वहाँके व्यक्ति सुधर गये, उनको होश आ गया । वे स्वयं भी कहते हैं, हम मामूली थे पर भगवान्‌का नाम मिला, सन्त मिल गये तो हम मालामाल हो गये ।


१९९३ वि सं में हमलोग तीर्थयात्रामें गये थे तो काठियावाड़में एक भाई मिला । उसने हमको पाँच-सात वर्षोंकी उम्र बतायी । अरे भाई ! तुम इतने बड़े दीखते हो, तो क्या बात है ? उस भाईने कहा‒मैं सात वर्षोंसे ही ‘कल्याण’ मासिक पत्रका ग्राहक हूँ । जबसे इधर रुचि हुई, तबसे ही मैं अपनेको मनुष्य मानता हूँ । पहलेकी उम्रको मैं मनुष्य मानता ही नहीं, मनुष्यके लायक काम नहीं किया । उद्दण्ड, उच्छृंखल होते रहे । तो बोलो, कितना विलक्षण लाभ होता है ? ‘तीर्थयात्रा-ट्रेन गीताप्रेसकी है’ऐसा सुनते तो लोग परिक्रमा करते । जहाँ गाड़ी खड़ी रहती, वहाँके लोग कीर्तन करते और स्टेशनों-स्टेशनोंपर कीर्तन होता कि आज तीर्थयात्राकी गाड़ी आनेवाली है ।

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