(गत ब्लॉगसे आगेका)
जिन्होंने आत्महत्याका
प्रयास किया और बच गये, उनसे यह बात सुनी है कि आत्महत्या करनेमें बड़ा भारी कष्ट
होता है और पश्चात्ताप होता है कि मैं ऐसा नहीं करता तो अच्छा रहता, अब क्या करूँ
? आत्महत्या
करनेवाले प्रायः भूत-प्रेत बनते हैं और वहाँ भूखे-प्यासे रहते हैं, दुःख
पाते हैं । तात्पर्य है कि आत्महत्या करनेवालोंकी बड़ी भारी दुर्गति होती है ।
प्रश्न‒ अगर पति त्याग कर दे तो स्त्रीको क्या करना चाहिये ?
उत्तर‒वह अपने पिताके
घरपर रहे । पिताके घरपर रहना न हो सके तो ससुराल अथवा पीहरवालोके नजदीक किरायेका कमरा
लेकर उसमें रहे और मर्यादा, संयम, ब्रह्मचर्यपूर्वक अपने धर्मका
पालन करे, भगवान्का भजन-स्मरण
करे । पितासे या ससुरालसे जो कुछ मिला है, उससे अपना जीवन-निर्वाह करे ।
अगर धन पासमें न हो तो घरमें ही रहकर अपने हाथोंसे कातना-गूँथना, सीना-पिरोना आदि
काम करके अपना जीवन-निर्वाह करे । यद्यपि इसमें कठिनता होती है, पर तपमें कठिनता
ही होती है,
आराम नहीं होता
। इस तपसे उसमें आध्यात्मिक तेज बढ़ेगा, उसका अन्तःकरण शुद्ध होगा ।
माता-पिता, भाई-भौजाई आदिको
विशेष ध्यान देना चाहिये कि बहन-बेटी धर्मकी मूर्ति होती है; अतः उसका पालन-पोषण
करनेका बहुत पुण्य होता है । उनको यह उक्ति अक्षरशः चरितार्थ कर लेनी चाहिये‒‘बिपति
काल कर सतगुन नेहा’ (मानस, किष्किन्धा॰ ७
। ३) अर्थात् विपत्तिके समय बहन-बेटी आदिसे सौगुना स्नेह करे । यदि
वे ऐसा न कर सकें तो लड़कीको विचार करना चाहिये कि जंगलमें रहनेवाले प्राणियोंका भी
भगवान् पालन-पोषण करते हैं, तो क्या वे मेरा पालन-पोषण नहीं करेंगे ! सबके मालिक भगवान्के रहते हुए मैं अनाथ कैसे हो सकती हूँ ! इस
बातको दृढ़तासे धारण करके भगवान्के भरोसे निधड़क रहना चाहिये, निर्भय, निःशोक, निश्चिन्त
और निःशंक रहना चाहिये । एक विधवा बहन थी । उसके पास कुछ नहीं
था । ससुरालवालोंने उसके गहने भी दबा लिये । वह कहती थी कि मुझे चिन्ता है ही नहीं
! दो हाथोंके पीछे एक पेट है फिर चिन्ता किस बातकी !
लड़कियोंको बचपनसे
ही कातना-गूँथना, सीना-पिरोना, पढ़ना-पढ़ाना आदि सीख लेना चाहिये
। विवाह होनेपर पतिकी सेवामें कमी नहीं रखनी चाहिये, पर भीतरमें भरोसा भगवान्का ही
रखना चाहिये । असली सहारा भगवान्का ही है । ऐसा सहारा न
पतिका है, न पुत्रका है
और न शरीरका ही है‒यह बिलकुल सच्ची बात है । अतः यदि पति
त्याग कर दे तो घबराना नहीं चाहिये । इस विषयमें अपनी कोई त्रुटि हो तो तत्काल सुधार
कर लेना चाहिये और अपनी कोई त्रुटि न हो तो बिलकुल निधड़क रहना चाहिये । हृदयमें कमजोरी तो अपने भाव और आचरण ठीक न रहनेसे ही आती है । अपने
भाव और आचरण ठीक रहनेसे हृदयमें कमजोरी कभी आती ही नहीं । अतः अपने भावों और
आचरणोंको सदा शुद्ध, पवित्र रखते हुए भगवान्का भजन-स्मरण करते रहना चाहिये
। भगवान्के भरोसे किसी बातकी परवाह नहीं करनी चाहिये ।
आजके युवकोंको
चाहिये कि वे स्त्रियोंको छोड़ें नहीं । स्त्रीका त्याग करना
महापाप है, बड़ा भारी अन्याय
है । ऐसा करनेवाले भयंकर नरकोंमें जाते हैं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे
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