(गत ब्लॉगसे आगेका)
मन जाने सब बात,
जान बूझ अवगुण करे ।
क्यों चाहत कुसलात, कर दीपक
कूएँ पड़े ॥
वर्तमानमें ऐसे भयंकर-भयंकर पाप हो रहे हैं कि सुनकर रोंगटे
खड़े हो जायँ, आँखें डबडबा जायँ, हृदय द्रवित हो जाय ! राम-राम-राम,
कितना घोर अन्याय, घोर पाप आप कर रहे हो,
पर उधर आपका खयाल ही नहीं है ! मनुष्यशरीरको सबसे दुर्लभ बताया
गया है‒
दुर्लभो मानुषो देहो देहिनां क्षणभङ्गुरः ।
(श्रीमद्भा॰ ११ । २ । २९)
लब्ध्वा सुदुर्लभमिदं बहुसम्भवान्ते
मानुष्यमर्थदमनित्यमपीह धीरः ।
(श्रीमद्भा॰ ११ । ९ । २९)
बड़े भाग मानुष तनु पावा ।
सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा ॥
(मानस ७ । ४३ । ७)
ऐसे दुर्लभ मनुष्य-शरीरके आरम्भको ही खत्म कर देना,
काट देना जीवोंके साथ कितना घोर अपराध है,
कितना अन्याय है, कितना पाप है ! मेरे मनमें बड़ा दुःख हो रहा है,
जलन हो रही है, पर क्या करूँ ! जिस मनुष्य-शरीरसे परमात्माकी प्राप्ति हो जाय,
उस मनुष्य-शरीरको पैदा ही नहीं होने देना,
नष्ट कर देना पापकी आखिरी हद है ! किसी जीवको दुर्लभ मनुष्य-शरीर
प्राप्त न हो जाय, किसीका कल्याण न हो जाय,
उद्धार न हो जाय, इसलिये गर्भको होने ही नहीं देना है,
पहले ही दवाइयाँ लेकर नष्ट कर देना है,
गिराकर नष्ट कर देना है,
काटकर नष्ट कर देना है,
गर्भस्राव करके नष्ट कर देना है,
गर्भपात करके नष्ट कर देना है,
भूर्णहत्या करके नष्ट कर देना है;
हमारा पाप भले ही हो,
हम नरकोंमें भले ही जायँ,
पर किसीको कल्याणका मौका नहीं मिलने देना है‒ऐसी कमर कस ली है
! अब मैं क्या करूँ ? किसको कहूँ ? और कौन सुने मेरी ?
कोई सुनता नहीं ?
हम साधुओंके लिये शास्त्रोंमें कहा गया है कि चातुर्मासमें मत
घूमो । हम दो महीने एक जगह रहते हैं, कई तीन महीने रहते हैं,
कई चार महीने रहते हैं । कारण यह है कि चातुर्मासमें वर्षा होती
है तो हरेक बीजका अंकुर उगता है । अंकुर होकर वह पौधा बनता है और फिर बड़ा होकर वृक्ष
बनता है । चलने-फिरनेसे अंकुर पैरोंके नीचे आकर नष्ट हो जाते
हैं । इसलिये चातुर्मासमें चलना-फिरना बन्द करते हैं, जिससे
किसीकी हिंसा न हो जाय । भागवतमें आया है कि अगर हिंसापर विजय प्राप्त करनी हो तो शरीरकी
चेष्टा कम करो‒‘हिंसा
कायाद्यनीहया’ (७ । १५ । २३) । जब स्थावर जीवोंकी हिंसाका भी इतना विचार है कि चातुर्मासमें घूमना-फिरना मना
कर दिया तो फिर जंगम जीवोंके विषयमें कहना ही क्या है ! परन्तु
आज लोग जंगम जीवोंमें भी सबसे श्रेष्ठ, यहाँतक
कि देवताओंसे भी श्रेष्ठ मनुष्य-शरीरका नाश करनेके लिये उद्योग कर रहे हैं, क्या
दशा होगी !
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒ ‘मातृशक्तिका घोर अपमान’ पुस्तकसे
|
|