(गत ब्लॉगसे आगेका)
सत्ययुगमें भगवान्का ध्यान लगाकर तल्लीन होनेसे परमात्माकी
प्राप्ति होती थी । त्रेतायुगमें यज्ञ करनेसे और द्वापरयुगमें भगवान्का पूजन करनेसे
प्राप्ति होती थी; परंतु ‘कलि केवल मल मूल मलीना’
अब ध्यान दो भाई ! कलियुगमें क्या है ?
क्या बतावें ? कलियुगमें पाप ही मूल हो गया है । मनुष्योंका मन पापरूपी समुद्रकी
मछली बन गया है । मछलीको जैसे जलसे दूर करनेसे मुश्किल हो जाती है वह तड़पने लगती है,
ऐसे आज अगर कह दिया जाय कि झूठ,
कपट, ब्लैक मत करो तो उनका मन व्याकुल हो जायगा । मनुष्योंका मन पापसे
कभी अलग होना चाहता ही नहीं । उनसे ध्यान,
यज्ञ और पूजन कुछ नहीं बन सकते ।
नाम कामतरु काल कराला ।
सुमिरत समन सकल जग जाला ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २७ । ५)
कराल काल (कलियुग) में नाम कल्पवृक्ष है । कल्पवृक्ष इसलिये
बताया कि इस नामसे ध्यान, यज्ञ, पूजन आदि सब हो जायेंगे । ‘नाम
लिया उसने सब किया जोग जग्य आचार’ एक जगह व्याख्यान हो रहा था तो एक बड़े अच्छे सन्त थे,
उन्होंने कहा‒‘नाम जपके सिवाय कलियुगमें दूसरा कुछ साधन नहीं
हो सकता । इसमें ध्यानयोग, कर्मयोग, अष्टांगयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग कोई भी योग नहीं हो सकता । कलियुगमें केवल भगवान्का
नाम ही लिया जा सकता है । इसलिये नाम-जप करना चाहिये ।’ ऐसे उन्होंने नामकी महिमा कही
। उसके बाद पासमें बैठे महात्माने अपने व्याख्यानमें कहा‒‘बात बिलकुल ठीक है । नाम-जपके
बिना कुछ नहीं हो सकता, पर नाम महाराजकी कृपासे ध्यान भी हो जायगा,
यज्ञ भी हो जायगा, दान भी हो जायगा, पूजन भी हो जायगा, सब कुछ हो जायगा । नाम-जपसे अगर ये नहीं हुए तो नामकी महिमा
ही क्या हुई ?’
बड़े-बड़े साधन भी नाम महाराजकी कृपासे सुगम हो जायेंगे
। यज्ञ,
दान, पूजन, ध्यान, भजन चाहे जो करो, नाम महाराजका सहारा लेकर करोगे तो सब तरहकी योग्यता आ जायगी
। जगत्के जालको शान्त करनेवाला नाम महाराज है ।
राम नाम कलि अभिमत दाता ।
हित परलोक लोक पितु माता ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा २७ । ६)
इस कलियुगमें ‘राम’ नाम मनचाहा फल देनेवाला है । परलोकमें हित करनेवाला है अर्थात्
भगवान्का परम धाम दिलानेवाला है और लोकमें माता-पिताके समान हित करता है । गोस्वामीजी
महाराज कहते हैं‒बालकका पालन-पोषण माँ-बापके समान कौन कर सकता है ! पिताजी बाहरकी और
माँ भीतरकी सब तरहसे रक्षा करती है ।
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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