।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र शुक्ल अष्टमी, वि.सं.२०७२, शुक्रवार
श्रीदुर्गाष्टमीव्रत
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

कलियुगमें नाम-महिमा

नामु रामको कलपतरु कलि कल्यान निवासु ।
जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २६)

कल्पतरुमें सब चीजें रहती हैं । उससे जो चाहो, मिल जाय । कलियुगमें मनचाहा पदार्थ देनेवाला रामनामरूपी कल्पवृक्ष है और कल्याणका निवास-स्थान रामनाम है । गोस्वामीजी महाराज कहते हैं कि इसके लिये मैं दूसरेकी क्या गवाही दूँ । भाँग पीनेसे नशा आ जाय, बुद्धि बावली हो जाय और माथा खराब हो जाय, ऐसा भाँगका प्रभाव होता है । मैं भाँगके समान था, पर नामका स्मरण करनेसे भाँगके समान मैं तुलसीदास तुलसी बन गया । तुलसी-दल बिना बढ़िया-से-बढ़िया चीजें भी ठाकुरजीके भोग नहीं लगती । इसलिये अब नामकी महिमा कहाँतक कहूँ, मैं खुद ही उदाहरण हूँ ।

चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका ।
भए नाम  जपि  जीव बिसोका ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २७ । १)

केवल कलियुगकी बात नहीं है । सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग‒इन चारों ही युगोंमें और भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालोंमें तथा स्वर्ग, मृत्यु और पाताल तीनों ही लोकोंमें सब-के-सब जीव भगवान्‌का नाम लेकर सदाके लिये चिन्तारहित हो गये ।

बेद   पुरान   संत   मत  एहू ।
सकल सुकृत फल राम सनेहू ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २७ । २)

विशेष ध्यान देनेकी बात है । वेद, पुराण और सन्त सबका इसमें एक मत है । क्या ? सकल सुकृत फल राम सनेहू’ रामजी और रामजीके नाममें स्नेह हो जाय तो सम्पूर्ण पुण्योंका फल मिल गया । मानो वे भाग्यशाली हैं, जो भगवान्‌का नाम लेते हैं । नाम-जपमें स्वतः रुचि हो गयी तो समझना चाहिये कि सम्पूर्ण पुण्योंने आकर एक साथ फल दे दिया । इसका रहस्य नाम लेनेवाले ही समझते हैं । साधारण आदमी समझ नहीं सकते । कलियुगमें विशेष क्या बात है ? वह आगे कहते हैं‒

ध्यानु प्रथम जुग मखबिधि दूजें ।
द्वापर   परितोषत   प्रभु   पूजें ॥
कलि केवल  मल  मूल मलीना ।
पाप पयोनिधि जन मन मीना ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २७ । ३-४)

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे