(गत ब्लॉगसे आगेका)
भरतजीने भी हनुमान्जीसे कह दिया ‘नाहिन
तात उरिन मैं तोही’ तुमने जो बात सुनायी,
उससे उऋण नहीं हो सकता । ‘अब प्रभु
चरित सुनावहु मोही ।’ अब भगवान्के चरित्र सुनाओ । खबर सुनानेमात्रसे तो आप पहले ही
ऋणी हो गये । चरित्र सुनानेसे और अधिक ऋणी हो जाओगे । भरतजीने विचार किया कि जब कर्जा
ले लिया तो कम क्यों लें ? कर्जा तो ज्यादा हो जायगा,
पर रामजीकी कथा तो सुन लें । हनुमान्जी
महाराजको प्रसन्न करनेका उपाय भी यही है और उऋण होनेका उपाय भी यही है कि उनको रामजीकी
कथा सुनाओ, चाहे उनसे सुन लो । रामजीकी चर्चासे वे खुश हो जाते
हैं । इस प्रकार हनुमान्जीके सब
वशमें हो गये ।
अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ ।
भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा २६ । ७)
अब जो आचरणोंसे, योनिसे, सब तरहसे बहुत नीच हैं,
वे भी नामके प्रभावसे मुक्त हो गये । ऐसे भक्तोंके उदाहरण देते
हैं । अजामिल ब्राह्मण घरमें जन्मा था, पर वेश्याके घरमें चला गया,
ऐसे आचरणोंसे गिर गया था । गणिका तोतेको पढ़ाया करती । बोलो राधेकृष्ण
! राधेकृष्ण ! गोपीकृष्ण ! वह कोई नाम-जप नहीं कर रही थी,
पर साँपने काटा और मरी तो मुक्त हो गयी । हाथी‒गजराज भी मुक्त
हो गया । ये सब-के-सब भगवन्नामके प्रभावसे मुक्त हो गये ।
इस प्रकार ऊँचे-से-ऊँचे भगवान् शंकरसे लेकर पापी-से-पापी वेश्यातककी बात कह दी । इसका
अर्थ हुआ कि भगवन्नाम लेनेके सब अधिकारी हैं । कोई भी अनधिकारी नहीं है । भक्ति करनेके
सब अधिकारी हैं । शाण्डिल्य सूत्रमें आता है‒‘आनिन्द्ययोन्यधिक्रियते
पारम्पर्यात् सामान्यवत्’ निन्दनीय-से-निन्दनीय योनिवाला और निन्दनीय-से-निन्दनीय
कर्म करनेवाला कोई हो, वह भी भगवान्के चरणोंकी शरण चला जाय तो उसके लिये भी मना नहीं
है । कितनी विचित्र बात है ! नामकी महिमा ऐसे कहते-कहते गोस्वामीजी महाराज मस्त हो
जाते हैं ।
कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई ।
रामु न सकहिं नाम गुन गाई ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा २६ । ८)
नामके गुण गानेमें भगवान् राम स्वयं भी असमर्थ हैं,
फिर दूसरेकी तो बात ही क्या है,
क्योंकि नामकी महिमा अपार है । भगवान् सर्वसमर्थ हैं,
साथ-साथ सर्वज्ञ भी हैं । नामकी अपार महिमा जानते हैं,
पर कह नहीं सकते तो क्या इसमें रामजीकी निन्दा हो गयी ! इसमें
निन्दा नहीं है । यह नाम बड़ा है किनके लिये ?
हम सांसारिक लोगोंके लिये । रामजीसे और ब्रह्मसे भी बड़ा है ।
नामसे भगवान् प्रकट हो जायँ, तत्त्वज्ञान हो जाय,
इस कारण हमारे लिये नाम बड़ा है । किसी धनी आदमीके बारेमें कहें
कि उसके पास इतना धन है कि उसको खुदको भी पूरा पता नहीं है कि कितना है । इसमें उसकी
निन्दा कैसे हुई ? यह तो उसकी प्रशंसा ही हुई ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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