(गत ब्लॉगसे आगेका)
आजकल गाय और हिन्दू‒इन दोनोंके ऊपर बड़ी भारी आफत
आयी हुई है ! परिवार-नियोजन
हिन्दुओंपर बड़ी भारी आफत है ! इससे बड़ा भारी नुकसान है ! आप मेरी बातपर ध्यान दें,
मेरा तात्पर्य हिन्दुओंकी वृद्धि करना नहीं है,
प्रत्युत कल्याण करना है । कारण कि मुक्तिका मार्ग जितना हिन्दुओंके
शास्त्रोंमें बताया गया है, उतना किसी देशकी भाषामें नहीं बताया गया है । मैंने इस विषयमें
खोज की है । जनताको बढ़ाना या घटाना मेरा काम नहीं है । मेरा काम कल्याण करना है । हिन्दूधर्ममें कल्याणकी बहुत सुगम-सुगम बातें बतायी गयी हैं । वैसी
बातें मैंने किसी धर्ममें सुनी नहीं हैं । जीवका कल्याण कैसे हो‒इसपर हिन्दुओंके ऋषियों-मुनियोंने
जितना ध्यान दिया है, उतना किसीने नहीं दिया है । मनुष्यका उद्धार कैसे हो‒इस विषयमें मेरेको बहुत सुगम बातें
मिली हैं, और फिर भी मैं इस विषयमें खोज कर रहा हूँ ।
कल्याणके लिये खास चीज है‒लगन । जैसे अन्नकी भूख
लगे, जलकी प्यास लगे, ऐसे
भगवान्की लगन लगे तो भगवान्का मिलना सुगम हो जायगा ।
श्रोता‒हिन्दू
समाजमें एकता कैसे रहे ?
स्वामीजी‒यह बात बड़ी मुश्किल है ! यदि हिन्दू समाज एकता रखता तो उसमें आँच नहीं आ सकती थी
। हिन्दुओंमें जो शूरवीरता, दैवी सम्पत्ति मिलती है,
वह औरोंमें नहीं मिलती,
पर वह एकता नहीं रखता,
यह उसमें बड़ी भारी कमी है !
आपलोग बालकोंको ईसाईयोंके स्कूलोंमें भेजते हो,
जिससे वे भीतरसे ईसाई बन जाते हैं । मैं कहता हूँ कि आपलोग अपने
स्कूल बनाओ और उसमें बालकोंको अपने धर्मकी,
गीता-रामायणकी शिक्षा दो । उसमें अच्छे शिक्षकोंको रखो । आपके
बालक ठीक होंगे, तभी देशकी उन्नति होगी । हमारे हिन्दू भाई पैसा कमानेमें बड़े
तेज हैं । व्यापार करनेमें, पैसा कमानेमें मारवाड़ी जातिके सिवाय दूसरा नहीं है,
पर वे इस तरफ ख्याल नहीं करते कि स्त्रियाँ किधर जा रही हैं,
बालकोंकी क्या दशा हो रही है । लड़के-लड़कियों उद्दण्ड हो रहे
हैं । वे माँ-बापका कहना नहीं मानते । माँ-बापका कहना नहीं मानना बड़ा भारी पाप है,
अन्याय है !
श्रोता‒राग-द्वेष
कैसे नष्ट हों ?
स्वामीजी‒राग-द्वेषको मिटानेका उपाय भगवान्ने बताया है‒‘तयोर्न
वशमागच्छेत्’ (गीता ३ । ३४) । राग-द्वेष हो जायँ तो घबराओ मत,
पर इनके वशीभूत मत होओ अर्थात् इनके वशमें होकर क्रिया मत करो
। क्रिया करनेसे ये पुष्ट होते हैं । जैसे किसी पहलवानको खुराक न दी जाय तो वह अपने-आप
कमजोर हो जाता है, ऐसे ही राग-द्वेषके वशीभूत होकर क्रिया न करनेसे राग-द्वेषको
खुराक नहीं मिलेगी और वे कमजोर पड़ जायँगे । मेरेमें राग-द्वेष नहीं हैं‒ऐसे अभिमानके
भी वशीभूत नहीं होना है ।
जब राग-द्वेष हो जायँ,
क्रोध आ जाय, तो आप चुप हो जाओ । मुँहमें पानी भर लो । पानीको न थूको,
न निगलो । बादमें उसको थूक दो । यह स्थूल उपाय है । उनके वशमें
मत होओ, यह सूक्ष्म उपाय है ।
(शेष
आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे
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