(गत ब्लॉगसे आगेका)
कलियुग उनके लिये खराब है,
जो भगवान्का भजन-स्मरण नहीं करते । भगवान्का भजन-स्मरण करनेवालोंके
लिये तो कलियुग बहुत बढ़िया है ! रामायणमें आया है‒
कलिजुग सम जुग आन नहि जौ नर कर बिस्वास ।
गाइ राम गुन गन बिमल भव तर बिनाह प्रयास ॥
(मानस, उत्तर॰ १०३ क)
अगर भाई-बहन अभी तत्परतासे लग जायँ तो भगवान्की प्राप्ति बहुत
जल्दी हो जाय ! भगवान्के भजनमें लगनेसे, सत्संग करनेसे हमारी वृत्तियाँ ठीक हो गयीं,
हमें इतना लाभ हो गया‒ऐसा अनुभव बहुत कम होता है‒‘अनुभव
भगवद्भजन का भाग्यवान् को होय’ । परन्तु आज कलियुगमें ऐसी बात है कि अगर सत्संग सुनानेवाला
और सुननेवाला‒दोनों ठीक हों तो दोनोंको बड़ा भारी लाभ होता है । सत्संग करनेके लाभका
प्रत्यक्ष अनुभव होता है । कलियुगके समयमें भजन-स्मरणका असर
ज्यादा होता है ।
लोग जैसे संसारमें झूठ-कपटसे धन कमाते हैं,
ऐसे ही वे समझते हैं कि झूठ-कपटसे कल्याण भी हो जायगा,
पर झूठ-कपटसे कल्याण नहीं होता । वे समझते हैं कि किसी तरह झूठ-कपटसे
स्वामीजीके पैरोंमें हाथ लगानेसे कल्याण हो जायगा,
पर ऐसा करनेसे कल्याण होना दूर रहा,
उल्टे बाधा लगेगी, अपराध होगा ! जबर्दस्ती पैर छूनेसे, डाका
डालनेसे, चोरी करनेसे कल्याण नहीं होता, प्रत्युत
दण्ड होता है । आध्यात्मिक उन्नति सन्तोंकी प्रसन्नतासे होती है, जबर्दस्ती
नहीं होती । जब भैंस भी राजी
हुए बिना दूध नहीं देती, फिर सन्त-महात्मा राजी हुए बिना कल्याण कैसे कर देंगे ?
पारमार्थिक मार्गमें झूठ-कपटसे काम नहीं होता । यहाँ सत्संग-स्थलमें
डण्डे इसलिये लगाये हुए हैं कि आप उसके पार नहीं जायँ । आड़ (डण्डे) पशुओंके लिये लगायी जाती है, मनुष्योंके लिये नहीं । मनुष्योंके लिये इसलिये लगायी जाती है
कि मनुष्य मानते नहीं, जबर्दस्ती करते हैं । उनका सब कामोंमें अन्याय करनेका स्वभाव
पड़ गया है । इसलिये आप जो भी आचरण करें, ठीक
तरहसे, विधि-विधानसे, शास्त्रकी
आज्ञाके अनुसार करें । मनमाना आचरण करनेसे कल्याण नहीं होगा । परन्तु आजकल उल्टी रीति चल रही है और पशुओंकी तरह रहनेकी शिक्षा
दी जा रही है । श्रेष्ठ पुरुषोंको आदर्श न मानकर पशुओंको आदर्श माना जा रहा है ! उल्टी
बातोंको ठीक माननेकी आदत पड़ गयी है । रामायणमें कलियुगका वर्णन करते समय आरम्भमें ही
यह बात आयी है‒
बरन धर्म नहिं आश्रम
चारी ।
श्रुति बिरोध रत सब नर नारी ॥
(मानस, उत्तर॰ ९८ । १)
पहले क्षत्रिय राज्य करते थे,
आज जिसको ज्यादा वोट मिले,
वह राज्य करता है, चाहे वह कैसा ही स्वभाववाला क्यों न हो ! अयोग्य आदमी ऊँचे पदपर
बैठ जाते हैं । शास्त्रमें लिखा है कि जहाँ अपूज्योंका पूजन
होता है और पूज्यजनोंका तिरस्कार होता है, वहाँ
तीन बातें होंगी‒अकाल पड़ेगा, चोर-डाकुओंका भय होगा और मृत्यु होगी‒
अपूज्या यत्र पूज्यन्ते पूज्यपूजाव्यतिक्रमः ।
त्रीणि तत्र प्रजायते दुर्भिक्ष मरणं भयत् ॥
(स्कन्दपुराण, मा॰ के॰ ३ । ४८)
आप मर्यादा छोड़ोगे तो प्रकृतिकी मर्यादा भी बिगड़ेगी,
जिससे अकाल, अनावृष्टि, अतिवृष्टि, तूफान, बाढ़, भूकम्प आदि प्रकृतिक प्रकोप होंगे ।
(शेष
आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे
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