देवताओंके शरीरमें भोग भोगनेकी विशेष शक्ति होती है । वह शक्ति
मनुष्योंमें नहीं है । देवताओंके शरीर दिव्य होते हैं । मनुष्योंके शरीर दिव्य नहीं
होते । जैसे मनुष्यको मैलसे भरे सूअरके शरीरसे दुर्गन्ध आती है,
ऐसे ही देवताओंको मनुष्यके शरीरसे दुर्गन्ध आती है । परन्तु
भगवत्प्राप्तिका अधिकार मनुष्यशरीरमें ही है । अगर मनुष्यशरीर पाकर भी भगवत्प्राप्ति
नहीं की तो मनुष्यशरीरका क्या लाभ हुआ ? मेरा कल्याण हो जाय‒यह इच्छा मनुष्योंमें ही होती
है । इसलिये मनुष्योंको विशेषतासे भगवान्में लगना चाहिये । मनुष्य भगवान्का भजन भी
कर सकता है और दूसरोंका उपकार भी कर सकता है ।
जो मनुष्य सच्चे हृदयसे भगवान्का भजन करता है, उसके
द्वारा दुनियाका बड़ा भारी उपकार होता है । वैसा उपकार कोई धन आदिसे नहीं कर सकता । मैंने देखा है कि श्रीरामचरितमानसके पाठमें जितने लोग आते हैं,
उतने सत्संगमें नहीं आते । गोस्वामीजी महाराजको वाणीमें इतना
रस है, आनन्द है कि जो पढ़े-लिखे नहीं हैं,
रामायणका अर्थ नहीं समझते,
वे भी रामायणके पाठसे मस्त हो जाते हैं । गोस्वामी तुलसीदासजी-जैसे
सन्तोंके द्वारा आज भी लोगोंका बड़ा उपकार हो रहा है,
जो करोड़पति-अरबपति भी नहीं कर सकते ! धनीलोग दूसरोंको अन्न,
जल, वस्त्र, मकान आदि दे सकते हैं,
पर वे कल्याण नहीं कर सकते ।
विचार करें कि अपना कौन है ? आज
प्राण चले जायँ तो अपना कौन रहेगा और अपने साथमें क्या रहेगा ? बिना
स्वार्थके अपना हित करनेवाला कौन है ?
सिवाय भगवान्के कोई अपना नहीं है । हम सब उनके ही अंश हैं । उनके सिवाय आफतमें रक्षा करनेवाला
कोई नहीं है । जैसे माँ कृपा करके बालकका पालन करती है,
पर बालकके पास ऐसी कोई शक्ति नहीं,
जिससे माँकी सहायता कर सके । ऐसे ही भगवान् हम सबकी माँ हैं
। हमारे पास ऐसी कोई चीज नहीं है, जिससे भगवान्की सहायता कर सकें । माँके बिना बालक बेचैन हो
जाता है, रोने लग जाता है तो उससे माँ वशमें हो जाती है । ऐसे ही हम भगवान्के
लिये व्याकुल हो जायँ तो भगवान् वशमें हो जायँगे । सर्वसमर्थ
भगवान्के रहते हुए हम दुःख पा रहे हैं; क्योंकि
उधर हमारी वृत्ति नहीं है ।
भगवान्को याद करनेमात्रसे वे प्रसन्न हो जाते हैं‒‘अच्युतः
स्मृतिमात्रेण’ । भगवान्से एक ही चीज माँगो कि ‘हे
नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । यह एक मन्त्र है, जिससे
भगवान्की स्मृति होगी । स्मृति होनेसे
आपमें शान्ति, आनन्द, दया, क्षमा, उदारता आदिका ठिकाना नहीं रहेगा । सम्पूर्ण दुःखोंका अत्यन्त
अभाव हो जायगा । केवल उनको हर समय याद रखो । आपका हित करनेवाला संसारमें इतना सस्ता
कौन है ?
ऐसो को उदार जग माहीं ।
बिनु सेवा जो द्रवै दीनपर राम सरिस कोउ नाहीं ॥
(विनयपत्रिका
१६२)
भगवान्को याद रखनेमात्रसे सब ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ पासमें आ जाती
हैं । भगवान्का भजन करनेवाले भक्तमें भगवान्की सब शक्ति
उतर आती है ।
(शेष
आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे
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